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साहित्य लहर

कविता : बापू जिस पथ पग रखते थे

कविता : बापू जिस पथ पग रखते थे… भाषा हमारी प्रतिबिंब है हमारा, बापू अक्सर कहते थे अपनी एक आवाज से ,कोटि जन जागृत करते थे। बापू एक विचार नहीं एक जीवन दर्शन हैं  सत्य-अहिंसा का अनुपम दर्पण हैं। #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर प्रदेश

बापू जिस पथ पग रखते थे
कोटि जन उस ओर चल पड़ते थे।
सत्य-अहिंसा का पालन बापू हमेशा करते थे
अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करते थे।

दुःख-दर्द आमआदमी का बापू खूब समझते थे
इसीलिए जनमानस में बापू रचते-बसते थे।
विदेशी सत्ता के विरुद्ध उठ खड़ा होना
कोई काम नहीं आसान था
बापू के वचनों पर जन-जन को विश्वास था।

त्याग और बलिदान बापू के रग-रग में बसते थे
प्रलोभन और स्वार्थ से वो दूर सदा रहते थे।
साफ-सफाई में बापू बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे
अवसर मिले जहां भी उनको श्रमदान करते थे।

भाषा हमारी प्रतिबिंब है हमारा, बापू अक्सर कहते थे
अपनी एक आवाज से ,कोटि जन जागृत करते थे।
बापू एक विचार नहीं एक जीवन दर्शन हैं
सत्य-अहिंसा का अनुपम दर्पण हैं।

एक बात हम जान लें, गांठ मन में बांध लें
दो अक्टूबर पर्व नहीं बापू के पूजन का
ये पर्व है बापू के विचारों को अपनाने का
बापू के सपनों को सच बनाने का।

कविता : ख़त का जमाना


कविता : बापू जिस पथ पग रखते थे... भाषा हमारी प्रतिबिंब है हमारा, बापू अक्सर कहते थे अपनी एक आवाज से ,कोटि जन जागृत करते थे। बापू एक विचार नहीं एक जीवन दर्शन हैं  सत्य-अहिंसा का अनुपम दर्पण हैं। #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर प्रदेश

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