साहित्य लहर
कविता : ख़त का जमाना
कविता : ख़त का जमाना… वो भी क्या जमाना था जब खतों का आना-जाना था। आते ही हाथों में खत झूम उठता तन-मन सारा था पढ़कर प्रियवर का संदेश मन प्रसन्न हो जाता था वो भी क्या जमाना था जब खतों का आना-जाना था। #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर प्रदेश
वो भी क्या जमाना था
जब खतों का आना-जाना था।
कोरे कागज पर जज्बातों को
लिखता सारा जमाना था।
कभी खुशी-कभी ग़म का
खत में होता फ़साना था
वो भी क्या जमाना था
जब खतों का आना-जाना था।
आते ही हाथों में खत
झूम उठता तन-मन सारा था
पढ़कर प्रियवर का संदेश
मन प्रसन्न हो जाता था
वो भी क्या जमाना था
जब खतों का आना-जाना था।
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