कविता : मेरी प्यारी बहना
कविता : मेरी प्यारी बहना… बांध कलाई पर स्नेह का धागा, रक्षा कवच बन जाती है जब भी निकलूं घर से बाहर, विजय तिलक लगाती है मेरी प्यारी बहना, मेरे सुख-दुःख की साथी है। कैसे विदा करूंगा उसको अपने घर-आंगन से यह सोच के आंख मेरी भर आती है #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर प्रदेश
खुशियों के खातिर हमारे,सदा कष्ट उठाती है
रूठूं जो मैं कभी, पल भर में मुझे मनाती है
मेरी प्यारी बहना, मेरे सुख-दुःख की साथी है।
मेरे रोने पर रोती जो,मेरे हंसने पर मुस्काती है
मेरे हर इक काम में जो, सदा हाथ बंटाती है
मेरी प्यारी बहना, मेरे सुख-दुःख की साथी है।
होली हो या दीवाली, घर-आंगन मेरा सजाती है
अम्मा-बाबू की डांट से, अक्सर मुझे बचाती है
मेरी प्यारी बहना, मेरे सुख-दुःख की साथी है।
बांध कलाई पर स्नेह का धागा, रक्षा कवच बन जाती है
जब भी निकलूं घर से बाहर, विजय तिलक लगाती है
मेरी प्यारी बहना, मेरे सुख-दुःख की साथी है।
कैसे विदा करूंगा उसको अपने घर-आंगन से
यह सोच के आंख मेरी भर आती है
मेरी प्यारी बहना, मेरे सुख-दुःख की साथी है।