साहित्य लहर

कविता : चांदनी

कविता : चांदनी… अपना मन इतने दिनों तक तुम्हें याद करता शहर में कोई बहुत दिनों से दूर जाकर रहता मौसम आया उसके बारे में पूछता सबका पता ठिकाना लेकर हवा हंसती सुबह आई तुम गीतों की गंगा नहाई अंधेरे निकल पड़ी #राजीव कुमार झा

उत्साह से
भर उठा मन
चांद की मुस्कान
लेकर
सुबह आई
सबके द्वारे खड़ा
सूरज
रातभर
गहरी नींद में
धीरज से

सोये रहे सब
गांव अपना
चांदनी में शांत
सुरम्य लगता
मानो सुबह
तुम आ रही
कार्तिक के मेले से
घूमकर
धूप तुमसे पूछकर
घर के सामने

मैदान में आई
आलस से दूर
अपना मन
इतने दिनों तक
तुम्हें याद करता
शहर में कोई
बहुत दिनों से दूर
जाकर रहता

मौसम आया
उसके बारे में पूछता
सबका पता ठिकाना
लेकर
हवा हंसती सुबह
आई
तुम गीतों की
गंगा नहाई
अंधेरे निकल पड़ी

मोह और अंहकार


कविता : चांदनी... अपना मन इतने दिनों तक तुम्हें याद करता शहर में कोई बहुत दिनों से दूर जाकर रहता मौसम आया उसके बारे में पूछता सबका पता ठिकाना लेकर हवा हंसती सुबह आई तुम गीतों की गंगा नहाई अंधेरे निकल पड़ी #राजीव कुमार झा

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