कविता : भ्रम टूट गया

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कविता : भ्रम टूट गया, अच्छा हुआ चलन नहीं रहा, अब किसी के विश्वास का, खुद के खुदा को आखिर, किसी की कोई तलाश कहा, दोस्ती के लिए तेरा अक्सर, पढ़ें मध्य प्रदेश, ग्वालियर से आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) की कलम से…

अच्छा हुआ दोस्त,
जो भ्रम टूट गया
साथ होने का तेरा वादा,
जो अब छूट गया ।।

तुझे बादशाही मुबारक
तेरे शहर की,
मुझे मेरे गांव का
मुसाफिर ही रहने दे ।।

अच्छा हुआ चलन नहीं रहा
अब किसी के विश्वास का
खुद के खुदा को आखिर
किसी की कोई तलाश कहा ।।

दोस्ती के लिए तेरा अक्सर ,
मेरे घर आना, जाना, हम प्याला
वक्त के साथ-साथ अच्छा हुआ
किताबी बातों की तरह छूट गया ।।

आज ठोकर खाई है
तब जाकर कहीं आज
मतलबी दुनिया की ये,
दोस्ती समझ आई ।।

हमने तो कोशिश की थी
रंग जमाने की यारी में,
तेरे विचारों की भी कहीं
बहुत गहरी खाई थी शायद ।।

दोस्ती के लिए, कहां रहा गया
वह दोस्ताना माहौल पहिले जैसा
मैं तो मुसाफिर हूं मेरे गांव का ही,
मैंने तेरे शहर आना अब छोड़ दिया।।

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