पहलगाम आतंकी हमला: शांति की घाटी में हिंसा की छाया

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले ने देश को गहरे शोक और आक्रोश में डुबो दिया। चार सशस्त्र आतंकियों ने दोपहर लगभग 2:30 बजे पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं, जिसमें 28 लोगों की मृत्यु हुई और 20 से अधिक घायल हुए। मृतकों में 24 भारतीय नागरिक, दो स्थानीय निवासी और दो विदेशी पर्यटक (नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात से) शामिल थे।
हमला और उसकी पृष्ठभूमि
बैसरन, जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ कहा जाता है, पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय स्थल है। हमले के समय, पर्यटक वहां घुड़सवारी, पिकनिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले रहे थे। आतंकियों ने अचानक हमला कर दिया, जिससे चारों ओर अफरा-तफरी मच गई। इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान-आधारित लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़े संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली है। उन्होंने 85,000 से अधिक बाहरी लोगों की बसावट के कारण ‘जनसांख्यिकीय परिवर्तन’ के विरोध में यह हमला किया।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सऊदी अरब यात्रा बीच में छोड़कर दिल्ली लौटकर कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की आपात बैठक बुलाई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हमले की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि “हम न केवल इस घटना को अंजाम देने वालों को खोजेंगे, बल्कि उन लोगों तक भी पहुंचेंगे जिन्होंने पर्दे के पीछे बैठकर इस कायराना हरकत की साजिश रची है.” गृह मंत्री अमित शाह ने घटनास्थल और अस्पताल का दौरा किया, जहां घायलों का इलाज चल रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इस हमले की व्यापक निंदा हुई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर सहित कई वैश्विक नेताओं ने इस आतंकवादी कृत्य की भर्त्सना की और भारत के साथ एकजुटता व्यक्त की।
आत्मचिंतन और आगे की राह
यह हमला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमारी सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त है? क्या हमें आतंकवाद के खिलाफ अपनी रणनीतियों में बदलाव की आवश्यकता है? यह समय है जब हम न केवल सैन्य बल से, बल्कि संवाद और समझ से भी स्थायी समाधान की ओर बढ़ें। इसके साथ ही, हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि आतंकवाद को किसी धर्म या समुदाय से जोड़कर न देखा जाए। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि “आतंकवाद इस्लाम की शांति की नीति के विपरीत है”।
निष्कर्ष
पहलगाम का यह हमला केवल एक स्थान पर हुआ हमला नहीं है, बल्कि हमारे सामूहिक विवेक पर एक प्रहार है। यह हमें याद दिलाता है कि शांति और सुरक्षा की रक्षा के लिए हमें सतर्क और संवेदनशील रहना होगा। हमें मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी त्रासदियाँ न दोहराई जाएं।