आपके विचार

हिंदी भाषा के प्रसार से ही पूरे राष्ट्र में एकता की भावना मजबूत होगी

डॉ.विक्रम चौरसिया (क्रांतिकारी)

आज अभिभावक बच्चों को हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी सीखने के लिए प्रेरित कर रहे है , कुछ दिन पहले एक मित्र के घर गया हुआ था,उनके घर पर बड़ी बहन का एक 8 वर्ष का बालक थे जैसे ही हमने बात हिंदी में करना शुरु किया दीदी चिल्लाते हुए बोली विक्रम भैया बाबू से इंग्लिश में ही बाते कीजिए अब आप ही सोच लीजिए आज इस वैश्वीकरण ने हमें किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया ,कही ना कही कह सकते है की यहीं से भाषा के साथ ही हिंदी का पतन शुरू हो जाता है।

आज प्रत्येक व्यक्ति को मातृभाषा के विकास के लिए समर्पित होने की जरूरत है , पिछले वर्ष ही हमने देखा कि विख्यात कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र के राज्य उत्तर प्रदेश जो कि सबसे बड़ा हिंदी भाषी राज्य है , आज भी सबसे अधिक हिंदी भाषी लोग हैं, फिर भी बोर्ड के परीक्षाओं में बच्चों ने हिंदी जो कि हमारी मातृभाषा में ही असफल हुए थे। मेरे आत्मीय साथियों सोचकर देखिए जिले के कलेक्टर , वकिल , न्यायाधीश , एसपी या कोई भी अन्य अधिकारी जिसे लोगों को समझाना है, यदि ऐसी भाषा में बात करे जो लोग समझ ही न पाए तो आखिर वो अपनी बात आमजन तक कैसे पहुंचा सकते है।

लोग कैसे समझ पाएंगे कि उनके लिए सरकार की क्या योजनाएं हैं और उन योजनाओं का लाभ उन्हें कैसे प्राप्त होगा? क्या इस देश में मात्र 2.5 से 3 प्रतिशत अंग्रेजी की समझ रखने वाले लोग, देश में कानून का शासन चला पाएंगे ? यह संभव नहीं है। हम सभी हिन्दी की शक्ति और क्षमता से भली-भांति परिचित है, महात्मा गांधी ने कहे थे , कि राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है। प्रत्येक 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने का कारण है हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार राजेन्द्र सिन्हा का 50वां जन्मदिन, जिन्होंने देश मे हिंदी भाषा को स्थापित करने के लिए लंबा संघर्ष किए थे।

स्वतंत्रता के बाद हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर राजेन्द्र सिंह ने अथक प्रयास किए। लेकिन देखते हैं कि हिंदी दिवस के बाद हिंदी को सरकार , प्रशासन व आम जनता भी भूल जाते है , फिर अगले वर्ष ज़ोरो शोरों से हिंदी के शुभचिंतक नज़र आते है। आओ आज शपथ लेते हैं की जब विनाश के ज़िम्मेदार हम है तो विकास के भी होंगे, हिंदी को बचाएंगे भी और देश का गौरव बढ़ाएंगे भी।

हिंदी को आज समाज के लोग निगलते जा रहे है,अंग्रेज़ी को स्थापित करने से वे पढ़े लिखो की सूची में अपने आप को देखते है और अपना शीश गर्व से ऊपर रखते है। पर हिंदी भाषा को धीरे धीरे खत्म करने की वजह अपने आप को नही मानते।अगर अंग्रेज़ी भाषा से अपना शीश गर्व से ऊंचा हो जाता है तो, अपने ही देश की भाषा को विनाश की ओर ले जाने से सर लज्जा से झुक क्यों नही जाता? केंद्र व राज्य सरकारों का मूल कामकाज हिंदी में होना भले संभव न हो, लेकिन यह तो हो ही सकता है कि सरकारें अपने सभी दस्तावेजों और वेबसाइटों का सहज हिंदी में अनुवाद अनिवार्य रूप से कराए।

इसके लिए संसाधनों की कमी का बहाना बनाते रहने से हमारी मातृभाषा लगातार पिछड़ती जाएगी और एक दिन हम अपने ही देश में अंग्रेजी के गुलाम बन जाएंगे,हमे भी अपने बच्चों को मातृभाषा भाषा हिंदी से ही शिक्षा की आधार की शुरुआत करनी होगी,भाषा वही जीवित रहती है जिसका प्रयोग जनता करती है, लोगों के बीच संवाद का सबसे बेहतर माध्यम हिन्दी है, इसलिए इसको एक-दूसरे में प्रचारित करना चाहिये। इस कारण हिन्दी दिवस के दिन सभी से विनम्र निवेदन कर रहा हूं कि वे अपने बोलचाल की भाषा में हिंदी का ही प्रयोग करें। हिंदी भाषा के प्रसार से पूरे देश में एकता की भावना और मजबूत होगी।

चिंतक/आईएएस मेंटर/सोशल एक्टिविस्ट/दिल्ली विश्वविद्यालय 9069821319
लेखक समाजिक आंदोलनो से जुड़े रहे है व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहे हैं ।

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights