चिकित्साकर्मी धरती के देवता बने
सुनील कुमार माथुर
अब तक तो यह बात हम अपने बडे बुजुर्गों के मुख से सुनते आयें थे या फिर पत्र पत्रिकाओ में पढा कि चिकित्साकर्मी इस धरती के देवता हैं । चूंकि वे किसी को अमर नहीं कर सकते हैं लेकिन मौत के मुंह में जाने से कुछ समय या वर्षों के लिए रोक जरूर सकतें है । कहते हैं कि भगवान हर समय व हर जगह उपस्थित नहीं रह सकते हैं इसलिए घर – परिवार में हमारे माता – पिता भगवान के प्रतिनिधि के रूप में विराजमान है और जो व्यक्ति अपने माता – पिता की सेवा करतें है उन्हें मंदिर या किसी तीर्थ स्थल पर जानें की जरूरत नहीं है अपितु माता – पिता की सेवा ही भगवान की सेवा हैं ।
ठीक उसी प्रकार चिकित्सक व चिकित्साकर्मी इस धरती पर भगवान के प्रतिनिधि के रूप में भगवान है जो पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ अपना मानवीय धर्म को निभाते हुए रोगी की निःस्वार्थ भाव से सेवा कर रहें है । यहीं वजह है कि आज जब गंभीर अवस्था में या गंभीर रोग से पीडित होता हैं तो चिकित्साकर्मी रोगी का दिल से व अपने परिवार का सदस्य समझ कर उपचार करते हैं और ऐसे गंभीर रोगी जब ठीक होकर अपने घर जातें है तो चिकित्साकर्मियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए हमेशा यहीं कहते सूना हैं कि आप भगवान है । आप देवता हैं जिन्होंने रोगी को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया अन्यथा न जानें क्या होता ।
ऐसे ही देवता की कहानी राजस्थान के जोधपुर जिले की पंचायत समिति लूणी क्षेत्र के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सालावास में देखने को मिली । प्राप्त जानकारी के अनुसार सालावास के मेल नर्स रावताराम ( ग्रेड द्वितीय ) का 12 अगस्त 2021 को निधन हो गया था तब उसके परिवार को संबल प्रदान करने के लिए केन्द्र के अधिकारियों व कर्मचारियों ने राशि एकत्र कर एक लाख बावन हजार एक सौ रूपये की एफ डी बिटिया संतोष ( दस वर्षीय ) को प्रदान कर अपना मानवीय धर्म को निभाया । चिकित्सा अधिकारियों व कर्मचारियों का ममतामय व स्नेह व विश्वास देखकर स्व0 रावताराम के परिजन भावुक हो गयें ।
बताया जाता हैं कि स्टाफ के मेल नर्स रावताराम के निधन पर उसकी इकलौती बेटियां संतोष को ( दस वर्षीय ) चिकित्सा विभाग के संयुक्त निदेशक जोधपुर जोन डाॅ जोगेश्वर प्रसाद व मुख्य ब्लाॅक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ मोहनदान देथा की प्रेरणा से गोद ले लिया तथा संतोष की शिक्षा की पूरी जिम्मेदारी ले ली । चिकित्सा अधिकारियों व कर्मचारियों के इस मानवीय मूल्यों की सर्वत्र सराहना की जा रही हैं जिसने यह साबित कर दिया हैं कि इंसानियत अब भी जिंदा हैं । बस जरूरत है तो आगें आकर पहल करनें की ।
कहा भी जाता हैं कि अपने लिए व अपने परिवारजनों के लिए तो हर कोई जीता है पर जो दूसरों के लिए करता हैं वही महान कहलाता हैं । इतना ही नहीं महान किताबी ज्ञान हासिल कर डिग्री प्राप्त कर के नहीं बना जा सकता हैं अपितु महान बनने के लिए व्यक्ति को सदैव सद् कर्म करने पडते हैं अर्थात व्यक्ति अपने कर्म से ही महान बनता हैं । मरने के बाद भी जो व्यक्ति याद किये जाते हैं वे अपने नाम से नहीं अपितु अपने आदर्श व्यक्तित्व की महक के कारण सदैव याद किये जाते हैं ।
Very true
Very good
Vary good
Nice👍
Nice
Very true
Very true
Very nice
Very nice
👍👌
Shandar article