होली खेलें पर फूहड़ता से नहीं

ओम प्रकाश उनियाल
होली रंगों का उत्सव है। हर जगह अलग-अलग तरीके से मनायी जाती है। मनाने का तरीका जो भी हो लेकिन इस दिन रंगों के छींटों में सब रंगे हुए नजर आते हैं। जब तक रंगों की बौछार न हो, अबीर-गुलाल न उड़े और गली-मौहलों में होली के गीत गाते हुए होल्यारों की टोली न गुजरे तो होली की रंगत नहीं आती। त्योहार कोई-सा हो आपसी भाईचारे और प्यार-प्रेम का संदेश देते हैं।
त्योहार किसी भी धर्म का हो सम्मान करना चाहिए। होली तरह-तरह के गुलाल व पानी में घोलने वाले रंगों से खेलने का चलन है। इनमें ऐसे रसायन मिले होते हैं जिनसे त्वचा पर एलर्जी होने की संभावना रहती है। ये रंग आंखों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। अब तो बाजार में हर्बल रंग आसानी से मिलते हैं। जो कि जरूर थोड़े मंहगे होते हैं लेकिन किसी प्रकार से हानिकारक नहीं होते।
इसके अलावा प्रकृति ने जो प्राकृतिक रंग फूल-पत्तियों के माध्यम से धरा पर बिखेरे हुए हैैं उन्हें पीसकर भी रंग बनाए जा सकते हैं। कच्ची हल्दी जो कि हर शुभ-कार्य में उपयोग में लायी जाती है सबसे बेहतर रंग छोड़ती है। मगर कोई भी अब थोड़ा कष्ट नहीं उठाना चाहता। बाजार में जैसे भी मिलावटी रंग मिलते हैं उनको खरीदने पर ही जोर रहता है।
होली में गुब्बारों में पानी व रंग भरकर फेंककर मारना तो किसी को भी चोटिल कर सकता है। कुछ लोग कीचड़ आदि से अब भी होली खेलते हैं। खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में कहीं-कहीं देखने को मिलता है। न जाने कितने लीटर पानी इस दिन हम बेकार कर देते हैं। जरा भी पानी का मूल्य नहीं समझते। पानी की बचत के लिए केवल सूखे हर्बल रगों का उपयोग करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
नशा करके हुड़दंग करना भी एक चलन-सा बना हुआ है। जिसके कारण लड़ाई-झगड़े होते हैं व दुर्घटनाएं अधिक घटती हैं। होली मनाने का मतलब यह तो नहीं कि फूहड़ता व बेहूदगी दिखाई जाए। त्योहार मनाने का आनंद तभी संभव होता है जब सादगी और सौहार्दपूर्ण तरीके से मिलजुलकर मनाया जाए।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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