दीपक की रोशनी

दीपक की रोशनी, जैसे प्रकाश फैलाने के लिए दीपक सोने का ही हो, यह आवश्यक नहीं है। दीपक मिट्टी का होगा तो भी उतना ही प्रकाश देगा जितना सोने का दीपक। ठीक उसी प्रकार आपका पद कोई सा भी क्यों न हो, बस हमेंशा इस बात का ध्यान रखें कि आपका कर्म नेक हो, दूसरों के लिए प्रेरणादायक हो, सकारात्मक हो और सबको अच्छा लगे। ऐसा कृत्य हो। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)
जिस तरह से दीपक की बाती तेल के संग मधुर संबंध बनाकर स्वंय अपने प्राणों की आहुति देकर समाज में अंधेरे में उजाला कर राहगीरों को राह दिखाने का नेक कार्य करते हैं तो फिर इंसान क्यों नहीं। इंसान को भी चाहिए कि वह परोपकार के कार्य कर जरूरतमंदो की सेवा करें। याद रखिए सेवा ही धर्म है और सेवा ही कर्म हैं तब भला नेक कार्य करने में कैसी शर्म? सेवा ही इंसान को बडा बनाती है। केवल किताबों को पढने से कोई बडा आदमी नहीं बनता हैं बडा आदमी बनने के लिए निस्वार्थ सेवा का भाव जीवन में होना नितांत आवश्यक है । अपनों के लिए तो हर कोई जीता हैं, जो दूसरों के लिए जीएं वहीं सही मायने में जीना हैं।
सत्य बडा कडवा होता हैं- आज की दुनियां चापलूसों से भरी पडी हैं। लोग अपनी तारीफ सुनना चाहते हैं। वे अंहकार में अंधे हो जाते हैं और अपने आगे किसी को भी कुछ नहीं समझते हैं। वे यह मानते है कि जो कुछ भी है वह मैं ही हूं, बाकि सब मेरे सामने बोने हैं। छोटे हैं। नासमझ हैं। अंहकार की यह काली पट्टी इंसान का जीवन बर्बाद कर देती है। यही वजह है कि आज का इंसान झूठ को अधिक पसंद करता है और जब आप सत्य बोलते है तो अपने भी पराए हो जाते हैं जो न्याय संगत बात नहीं है।
अभिमान और अनुभव- अभिमान और अनुभव दोनों अलग हैं। जो अभिमान में जीता हैं उसका अंत में विनाश ही होता हैं। इसलिए अभिमान न करे अपितु आदर्श जीवन व्यतीत करने के लिए अनुभवो का सहारा लेना चाहिए। अनुभव से इंसान बहुत कुछ सीखता हैं। इसलिए व्यक्ति को अपने से बडों व अनुभवी लोगों का संग करना चाहिए।
जैसे सच्चे साधु संतों, महापुरुषों, कथावाचक का संग करना चाहिए ताकि आपका जीवन स्वर्गमय हो जाये और आपके जीवन से क्रोध, लोभ, लालच, अंहकार, हिंसा, अनैतिक गतिविधियों जैसी गंदगी दूर हो सके। अनुभव हमारे जीवन को एक नई सोच, नई राह दिखाते हैं और व्यक्ति को हर मुश्किल से निकलने की राह दिखाते है इसलिए अंहकार का त्याग कर अनुभवों को जीवन में आत्मसात करें।
कमरतोड़ मंहगाई से फीकी होती त्योहारों की रौनक
खुश रहें, मस्त रहें- जीवन जीना भी एक कला है। इसलिए जब भी किसी से बातचीत करें तब सोच समझकर बात करे भले ही सामने वाला आयु में आप से छोटा ही क्यों न हो। इसलिए जीवन में कभी भी हताश व निराश न हो अपितु सदैव खुश रहें और मस्त रहें। बात बात में निराश हो जाना व्यक्ति की नकारात्मक सोच को ही दर्शाता है। इसलिए सदैव सकारात्मक सोच के साथ आगे बढे और खुशहाल जीवन व्यतीत करें।
किसी को भी छोटा न समझें- जीवन में अनेक उतार चढ़ाव आते ही रहते है, लेकिन इंसान को उनसे घबराना नहीं चाहिए। हर इंसान के जीवन में कठिनाइयां आती है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम इन कठिनाईयों से हार मान बैठे। याद रखिए जीवन में कभी भी किसी को छोटा न समझे। सूई की जगह सूई व तलवार की जगह तलवार ही काम आती हैं। इसलिए सभी का मान सम्मान करें।
बुरे नहीं फिर भी लोग नाराज- कई बार मन में विचार आता हैं कि हम किसी का न तो बुरा करते हैं और न ही किसी के बारे में बुरा सोचते है लेकिन फिर भी लोग हम से न जानें क्यों नाराज रहते हैं। अरें मेरे भाई, ऐसा केवल आपके साथ ही नहीं होता हैं अपितु हर किसी के साथ होता है चूंकि जीवन में हर किसी को हम संतुष्ट नहीं कर सकते। चूंकि समाज में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो अपना जीवन अंहकार में जीते हैं और बाद में वे दुःख ही पाते है। इसलिए जीवन में सीधे सीधे ही बात करनी चाहिए न कि घूमा फिरा कर।
अभिवादन करें- जब भी आप से कोई मिलें या फोन पर बात करें तो उनका अभिवादन करें। नमस्कार। जयश्री कृष्णा या राधे राधे अवश्य बोलें। इससे सामने वालें को आपके बारे में सकारात्मक सोच का आभास होगा और उन्हें आपके साथ बातचीत करने में भी आनन्द की अनुभूति होगी। किसी का अभिवादन करने में न तो धन खर्च होता है न जुबान घिसती हैं अपितु अपने पन का अहसास होता है।
सच्चा आशीर्वाद- जब हम अपने से बडों के या अपने गुरूजनो, सच्चे साधु संतों, महापुरुषों और कथावाचक के पांव छूते हैं तो वे हमें सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हैं। यही आशीर्वाद हमारा जीवन बदल देता हैं और हमें अपने लक्ष्यों को हासिल करने में काफी मददगार साबित होता हैं, चूंकि यह आर्शीवाद दिल से दिया हुआ होता हैं। बडों का आशीर्वाद कभी भी खाली नही जाता हैं। अतः सुबह-शाम माता-पिता के व अपने से बडों के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।
सशक्त नारी, सशक्त समाज- सरकार ने महिलाओं की राजनीति में भागीदारी के लिए आरक्षण को तो बढा रही हैं लेकिन जब तक शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नही की जायेगी तब तक सशक्त नारी सशक्त समाज की कल्पना केवल कल्पना ही बनकर कागजों तक ही सीमित रह जायेगी। इसलिए पद के अनुसार नारी की योग्यता निर्धारित की जाये। अंगूठा छाप या कम पढे लिखे लोगों को राजनीति में लाना सदन की गरिमा को धूमिल करना ही कहा जा सकता हैं। एक शिक्षित नारी ही राष्ट्र को सही दशा व दिशा दे सकती हैं। सरकार जितना जोर नारी की राजनीति में भागीदारी पर दे रही हैं, उतना ही जोर नारी की अस्मिता को बचाने पर दे। तभी सशक्त नारी सशक्त समाज का सपना साकार हो सकेगा।
हमारा अस्तित्व- इस नश्वर संसार में कोई छोटा बडा नहीं है। सबका अपनी अपनी जगह अपना अपना महत्व है। आप अपने आपकों बडा अधिकारी समझते है तो आप अपने आफिस में या बाजार में झाड़ू-पोछा तो नहीं करते हैं। यह कार्य तो सफाईकर्मी ही करता हैं। इसलिए जो कार्य जिसका है उसे ही करने देना चाहिए। किसी को छोटा समझ कर घृणा न करे।
इसी तरह कोई आपकी चुगली करें या नींदा करें तो तनिक भी न घबराएं। अपितु यह सोचे कि समाज में हमारा भी अस्तित्व है। तभी तो लोग हमारी नींदा कर रहें हैं। अगर हमारा अस्तित्व न होता तो कौन हमें याद करता। यह सोचों की आप भाग्यशाली हैं कि लोग आपके कार्य की समय समय पर सराहना भी करते हैं तभी तो वे आप से ईर्ष्या कर आपकी निंदा करते है, वरना किसे चिंता है जो आप पर अंगुली उठाने की हिम्मत करे़। कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन में मिट्टी का दीपक बनकर अंधेरे में उजाला फैलाएं।
जैसे प्रकाश फैलाने के लिए दीपक सोने का ही हो, यह आवश्यक नहीं है। दीपक मिट्टी का होगा तो भी उतना ही प्रकाश देगा जितना सोने का दीपक। ठीक उसी प्रकार आपका पद कोई सा भी क्यों न हो, बस हमेंशा इस बात का ध्यान रखें कि आपका कर्म नेक हो, दूसरों के लिए प्रेरणादायक हो, सकारात्मक हो और सबको अच्छा लगे। ऐसा कृत्य हो। जहां सकारात्मक सोच हो, निष्ठा, ईमानदारी, देशभक्ति का भाव हो वहां हर रोज दीपावली के दीपक जगमगाते रहते हैं।
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