साक्षात्कार : साहित्यकार श्रेष्ठ साहित्य का सृजन करें : चौहान
सुनील कुमार माथुर
साहित्यकार को आज उसके श्रम का उचित लाभ नहीं मिल रहा है । लेखन आज एक तरह से मात्र अपनी भडांस निकालने तक ही सीमित होकर रह गया हैं चूंकि आज पत्र – पत्रिकाओं के कार्यालयों में डेक्स पर बैठकर कार्य करने वालों को न तो साहित्य के क्षेत्र में रूचि हैं और न ही वे कुछ नया सीखना चाहते हैं।
वे तो बस पेट भराई के लिए कार्य कर रहें है और साहित्य से उनका दूर तक कोई रिश्ता नहीं है नतीजन आज पत्र – पत्रिकाओं में साहित्य के नाम पर कुछ पत्र पत्रिकाओ को छोडकर शेष में खानापूर्ती ही हो रही हैं ।
यहीं वजह है कि आज पत्र – पत्रिकाओं के ग्राहक टूटते जा रहें है और पत्र – पत्रिकाएं बंद होने के कगार पर आ रही हैं तो कुछ का प्रकाशन बंद हो गया है या फिर वे केवल फाईल कापी तक ही सीमित होकर रह गयीं है । साहित्यकार चेतन चौहान से साहित्य के गिरते स्तर पर साहित्यकार सुनील कुमार माथुर ध्दारा लिया गया साक्षात्कार यहां प्रस्तुत किया जा रहा हैं…
- समाज के वर्तमान हालात को देखते हुए साहित्यकार का क्या दायित्व बनता हैं ?
चौहान : साहित्यकार को चाहिए कि वे देश के वर्तमान हालात को देखते हुए ऐसे साहित्य का सृजन करें जिससे देश की युवापीढ़ी को एक नई दशा व दिशा मिल सकें और वे अपना भला बुरा समझ सकें । वही दूसरी ओर उनमें देशभक्ति की भावना जागृत हो सकें ।
- आपकी नजर में श्रेष्ठ साहित्य लेखन कैसा होना चाहिए ?
चौहान : साहित्य ऐसा होना चाहिए जो न केवल व्यक्ति का श्रेष्ठ मनोरंजन ही करे अपितु पढने के बाद पाठक को चिंतन – मनन करने के लिए भी प्रेरित करें ताकि राष्ट्र की मुख्यधारा से कटा व्यक्ति भी पुनः राष्ट्र की मुख्यधारा से जुडकर समाज व राष्ट्र हित के लिए कार्य कर सकें ।
- क्या आज का साहित्यकार अपने मूल ध्येय से भटक गया हैं ?
चौहान : नहीं ऐसी बात नहीं है । आज भी साहित्यकार लेखन से पूर्व काफी चिन्तन – मनन करता हैं और फिर समाज व राष्ट्र के हित को ध्यान में रखकर अपनी लेखनी चला रहा हैं । आज उसे दुःख है तो इस बात का हैं कि आज साहित्यकारों व रचनाकारों को संपादक मंडल न तो उनके लेखन पर पारिश्रमिक दे रहें है और न ही लेखकीय प्रति निशुल्क डाक से प्रेषित की जा रही हैं । लेकिन रचनाकार अपनी मेहनत पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ कर रहें है । इसमें कोई दो राय नहीं है ।
- क्या पत्र – पत्रिकाओं में आज जो लेख प्रकाशित हो रहें है उनसे आप संतुष्ट है ?
चौहान : आज अगर हम चंद पत्र – पत्रिकाओं को छोड दे तो अधिकांश पत्र – पत्रिकाओं में केवल खानापूर्ती या यूं कहें कि केवल भर्ती हो रही हैं । आज अनेक पत्र पत्रिकाओ के कार्यालयों में साहित्य संपादक नहीं है जिसके कारण स्थानीय मेलों , त्यौहारों , पर्वों , महापुरुषों व स्थानीय समस्याओं के बारे में जानकारी प्रकाशित नहीं हो रही हैं और कोई इस संबंध में लिखकर देता हैं तो उन्हें प्रोत्साहन नहीं दिया जाता हैं और संपादक मंडल जो इन बातो से अनभिज्ञ हैं वह नेट से कुछ भी उठाकर छाप रहा हैं जिससे उनके पाठक टूट रहें है ।
अथार्त स्थानीय रचनाकार उपेक्षित हो रहा हैं जबकि आज से एक दशक पूर्व हर प्रेस में साहित्य संपादक पृथक से हुआ करते थे और वे रचनाकारों की लेखनी की कद्र करते थे ।
- श्रेष्ठ साहित्य लेखन हेतु आपके कोई सुझाव हो तो बताइये ?
चौहान : श्रेष्ठ साहित्य लेखन हेतु रचनाकारो व संपादक मंडल के बीच गहरा संबंध होना चाहिए । वही रचनाकारों को पर्याप्त पारिश्रमिक दिया जाना चाहिए चूंकि किसी भी विषय पर लेखन का कार्य करने से पूर्व उसे गहन चिंतन मनन करना पडता हैं । वही दूसरी ओर जहां तक हो सके पहले स्थानीय रचनाकारों व साहित्यकारों की रचनाओं को स्थान मिलना चाहिए चूंकि वे उस स्थान की माटी में घुले मिले होते हैं । अतः उन्हें वहां की अधिक व अच्छी जानकारी व पकड होती हैं ।
हर साहित्यकार श्रेष्ठ लेखन ही करता हैं फिर भी ऐसा कोई भी लेखन नहीं करना चाहिए कि व्यंग्य के नाम पर किसी व्यक्ति , जाति , धर्म या समुदाय की भावना को ठेस पहुंचे । जो भी लिखें वह जनहित को ध्यान में रखते हुए लिखे ।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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