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घर परिवार में आपसी प्रेम और सहयोग सदैव कायम रहना चाहिए

घर परिवार में आपसी प्रेम और सहयोग सदैव कायम रहना चाहिए, हमारे देश में वसुधैव कुटुंबकम् की अवधारणा पर सामाजिक जीवन की बुनियाद सदियों से यहां की प्रमुख विशेषता है और परिवार को उसकी मूलभूत इकाई के रूप | बिहार से राजीव कुमार झा की कलम से…

हमारे देश में वसुधैव कुटुंबकम् की अवधारणा पर सामाजिक जीवन की बुनियाद सदियों से यहां की प्रमुख विशेषता है और परिवार को उसकी मूलभूत इकाई के रूप में देखा जा सकता है लेकिन आधुनिक काल में हमारी सामाजिक व्यवस्था में काफी बदलाव आया है और विस्थापन की उभरती प्रवृत्तियों ने संयुक्त परिवार की प्रथा को धीरे धीरे तहस नहस करना शुरू.

किसी और इसके प्रभाव से अब एकल परिवार व्यवस्था को यहां काफी प्रोत्साहन मिल रहा है!यह बहुत स्वाभाविक भी है और मनुष्य परिवार के रूप में अपने घर परिवार कुटुंब बंधु बांधवों से अलग होने की कल्पना कभी कर भी नहीं सकता है लेकिन समाज में जीवन की बदलती परिस्थितियों में अब एकल परिवारों का उदय इसे बहुत अस्वाभाविक घटना भी नहीं कहा जा सकता है.

किसी परिवार में एक माता- पिता के सारे बच्चे एक साथ तो सदैव नहीं ही रहते हैं वे बड़े होने पर और खासकर शादी विवाह के बाद भाईयों में बंटवारा हो जाता है. इस प्रकार एकल परिवार बहुत स्वाभाविक रूप से अस्तित्व में आते हैं लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि बंटवारे के बाद घर के पुराने आपसी रिश्ते नातों को आदमी भूल जाय और आज ऐसी बातें भी समाज में उभरती दिखाई देती हैं.

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महानगरों और शहरों में लोग अब जाकर गांव ज्वार के अपने सगे भाई बंधुओं को भूल जाते हैं और उन्हें पराया समझने में लगते हैं, यह नहीं होना चाहिए, संयुक्त परिवार व्यवस्था की जगह एकल परिवार व्यवस्था को अपनाने का यह मतलब नहीं है और पारिवारिक संबंधों में बंटवारे के बावजूद आपसी प्रेम और सहयोग सदैव कायम रहना चाहिए.

मुसलमानों को यहां हम उदाहरण के रूप में देख सकते हैं . उनमें एकल परिवार व्यवस्था का प्रचलन है और उनमें चचेरे भाई-बहनों में शादी विवाह भी होता है लेकिन वे परिवार की अवधारणा को मानते हैं और अपने आपसी घरेलू रिश्तों नातों को कभी नहीं भूलते हैं इसीलिए संगठित होकर सारी दुनिया में कभी वे काफी शक्तिशाली होकर उभरे और सबके लिए उनकी एकता उदाहरण के तौर पर
देखी जा सकती है.


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