विवाह करने से बढ़ती है उम्र, पर विवाह कैसा होना चाहिए?

विवाह करने से बढ़ती है उम्र, पर विवाह कैसा होना चाहिए? इतना कुछ जानने के बाद मन यह सवाल उठेगा कि आप का वैवाहिक जीवन कैसा है? कुछ लक्षण ऐसे हैं, जिनका अंदाजा लगाया जा सकता है कि… नोयडा, उत्तर प्रदेश से स्नेहा सिंह की कलम से…

किसी भी प्रिय पात्र से प्यार करने के बाद अधिक से अधिक दो साल बाद विवाह कर लेना चाहिए। अमेरिका की नार्थ केरोलीना की ड्यूक यूनीवर्सिटी मेडिकल सेंटर में किए गए अध्ययन के अनुसार विवाह करने वाली महिलाओं की उम्र बढ़ जाती है। आजीवन कुवांरी रहने वाली अथवा पति से अलग हो कर अकेली रहने वाली महिलाएं अनेक बीमारियों और शारीरिक परेशानियों का शिकार हो जाती हैं। वे शादीशुदा महिलाओं की अपेक्षा कम जीती हैं। विवाह करने वाली महिलाओं का हृदय अन्य महिलाओं के हृदय की अपेक्षा कम से कम पांच प्रतिशत अधिक मजबूत होता है।

यहां एक बात का खुलासा करना जरूरी हो जाता है कि यहां केवल सुखी वैवाहिक जीवन की बात की जा रही है। विवाह से पीड़ित स्त्री की बात नहीं हो रही है। एक बात का खुलासा करना और जरूरी है कि सुखी वैवाहिक जीवन यानी संपन्न जीवन जीने वाले दो स्वतंत्र व्यक्तित्व की बात हो रही है। एकरूप हो गए दो स्वतंत्र व्यक्तित्व की बात हो रही है।

सच्चा वैवाहिक जीवन कैसा होता है?
वैवाहिक जीवन को समझने के लिए अर्धनारीश्वर के स्वरूप पका उदाहरण दिया जा है। शिव और शक्ति, नर और नारी इस तरह एकरूप हो जाते हैं कि उन्हें दो अलग-अलग न जाना जाए, इसे सच्चा विवाह कहते हैं। इससे सुख देने वाली कल्याणकारी घटनाएं साकार होने लगती हैं। निर्माण करने वाले ने प्रजनन के लिए स्त्री-पुरुष को एक-दूसरे से अलग बनाया है। जिससे दोनों परस्पर आकर्षित हों। सेक्स विवाह का स्तंभ है। परंतु विवाह में मात्र सेक्स ही नहीं हो सकता।

विवाह से लाभ और नियम की बात खत्म हो जाए तो?
विवाह मानवसमाज का आयोजन है। दोनों के सहजीवन द्वारा जो संतति होती है, उनके अधिकार सुरक्षित करने के लिए किया गया आयोजन है। इसमें जैसे-जैसे नीति-नियम बनते गए, वैसे-वैसे विवाह का महत्व कम होता गया। अभी नए-नए कानून बनते जा रहे हैं और विवाह की विभावना को नष्ट करते जा रहे हैं। विवाह में कोई कायदा, नियम, करार सुख नहीं दे सकता। कायदा और करार तो व्यापार जैसे फायदे के लिए व्यवहार में होते हैं।

उन्हें विवाह नहीं करना चाहिए
विवाह में किसी का फायदा या अधिकार नहीं होता। दोनों एकरूप हो जाएं तो उसके बाद जो होता है, वह दोनों के सहयोग से हो, यह जरूरी है। अगर दोनों एकरूप नहीं हो सकते तो यही ठीक रहेगा कि वे विवाह न करें। हर लड़के-लड़की को यह समझने की जरूरत है। बड़ों को भी चाहिए कि वे इस बात को बच्चों को समझाएं। प्यार में दोनों ठीक से ओतप्रोत हो जाएं तो ही विवाह करें। विवाह करने के बाद प्यार की हद पार कर जाएं, यही विवाह है। जैसे कि चाय और चीनी दोनों दूध रूपी प्रेम के प्रवाह में मिल कर एकरूप होते हैं तो चाय नाम का पेय तैयार होता है। उसी तरह पति और पत्नी प्रेम के प्रवाह में मिल कर एकरूप होते हैं तो दांपत्य नाम का कल्याणकारी पेय तैयार होता है।

विवाह में स्वतंत्र व्यक्तित्व हो सकता है?
इस समय स्वतंत्र व्यक्तित्व की बात कर के अपना हित साधने की मांग करने वाले लोगों ने विवाह को छिन्न-भिन्न कर दिया है। चाय जरा भी उबले बगैर अपना व्यक्तित्व दृढ़ता से अखंड बनाए रखे और चीनी भी उबले बगैर दृढ़ता से अपने व्यक्तित्व को बनाए रखे तो कभी भी चाय नहीं बन सकती। एक-दूसरे में समा जाएं, इस तरह के विवाह की बात हम कर रहे हैं। इसके लिए सभी तरह के आग्रह, पूर्वग्रह, शर्तें सब छोड़कर बस मन को काबू में रखें और प्रवाह में बहते रहें। यह ऐसा प्रवाह है, जो मुसाफिरी का आनंद प्राप्त कराता है। इसका कोई ध्येय नहीं। विवाह को भी सफल बनाने का ध्येय नहीं। किसी तरह की उतावल भी नहीं। यहां ऐसे वैवाहिक जीवन में रहने वाली महिलाओं के उम्र की बात हो रही है।



वैवाहिक जीवन का शरीर पर कैसा असर
विवाह के बाद सुबह खुशी के साथ होती है। पूरा दिन एक-दूसरे को प्यार का प्रतिसाद देने में बीत जाता है। दिन बीतने के बाद व्यक्तिगत क्षणों में ईश्वरप्रदत्त सुख के सहभागी बनते हैं। यहां कोई मर्यादा या बंधन न रखें, ऐसा होता है या नहीं, इस तरह का कोई नियम न रखें। दोनों सहमत हों, वह सब करने की आजादी। भोगते रहें। उसके बाद आनंद-संतोष के साथ गहरी नींद परम आराम में ले जाएं। इस स्थिति में शरीर में सुखदायी हार्मोंस रिलीज होते रहते हैं।



यहां बताया गया क्रम उदाहरण के रूप में है। जरूरी नहीं कि सब इसी तरह हों। विवाह में ऐसा ही होता है या वैसा ही होता है, इसका कोई नियम नहीं है। जो भी हो, वह दोनों को हो, यह नियम है। सुख दोनों को, समस्या दोनों की, मेहनत दोनों की और सफलता दोनों की। इस तरह का विवाह तन-मन को सुख कर शरीर को निरोग और फिट रखता है। इंसान को अधिक रचनात्मक बनाता है। मन में आनंद हो और रचनात्मक विचार चल रहे हों तो स्वास्थ्य अच्छा रहेगा ही। अगर स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहेगा तो उम्र लंबी होगी ही, यह स्वाभाविक भी है।



 आप का वैवाहिक जीवन कैसा है?
इतना कुछ जानने के बाद मन यह सवाल उठेगा कि आप का वैवाहिक जीवन कैसा है? कुछ लक्षण ऐसे हैं, जिनका अंदाजा लगाया जा सकता है कि आपका वैवाहिक जीवन अच्छा चल रहा है। कोई लक्षण अनिवार्य नहीं है, मात्र अंदाजा लगाया जा सकता है। उदाहरणस्वरूप आप जितनी देर साथ बैठ कर बातें करते हैं, उतने समय आप एक-दूसरे की आंख में आंख डाल कर बातें करते हैं। हंसी-मजाक की किसी बात में आप को या उन्हें बुरा नहीं लगता। हर बात में साथ मिल कर हंस सकते हैं। अगर आप दोनों को किसी बात के लिए मना करना हो तो जरा भी घबराए बगैर या बिना संकोच के मना कर सकते हैं। अगर हर समय मना करना हो तो मना करते समय मन में अफसोस होता है।



सेक्स की बात आते ही तुरंत मन में आनंद व्याप जाता हो। दोनों घर में अकेले हों तो एक साथ बैठने की आदत हो। दोनों घर में अकेले एक-दूसरे के साथ हों और कोई बात न हो रही हो फिर भी अच्छा लगता हो। उनके आगमन के साथ ही मन सुकून आता हो या कोई दिक्कत न होती हो। उनका आगमन आपको शांति प्रदान करता हो, आप उनके पास होती हैं तो आप को स्नेह का अनुभव होता हो, अपनेपन का अनुभव होता हो। अगर आप को उनकी मनपसंद बात में आनंद आता हो, उन्हें आप की मनपसंद बात अच्छी लगती हो तो समझ लीजिए कि आप दोनों सचमुच एक-दूसरे के लिए बने हैं। आप अपनी गलती को जरा भी डरे बगैर स्वीकार कर सकती हों और वे भी अपनी गलती निडरता से स्वीकार कर सकते हों।




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