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सेवा का भाव

सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

जीवन में हर कोई सुखी रहना चाहता हैं लेकिन इसके लिए कोई भी नियमित रूप से प्रयास नहीं करता हैं। तनिक सा सुख क्या मिल जाता है कि वह आगे के समय के लिए सुख को भूल जाता हैं और फिर जैसे ही कोई विपदा या परेशानी आती है कि वह फिर से सुख पाने के लिए परमात्मा के समझ गिड़गिड़ाने लगता है। उसे कोसता हैं। भला बुरा कहने लगता हैं। अगर जीवन में सुखी रहना ही चाहते हो तो इसका एक ही मंत्र है कि उनसे जुड़े रहिए जिनकी पसंद आप हैं। अगर आप एकाग्रचित्त होकर परमात्मा का ध्यान करें तो वह दिन दूर नहीं है जब आप परमात्मा की गोद में विराजमान हो जायेंगे

नास्तिक लोग मजाक में लोग कहते हैं कि रोज रोज मंदिर जानें का दिखावा क्यों करते हो, क्यों नहीं तुम खुद ही उनके पास चले जाते। इन नास्तिकों को कौन समझाए कि परमात्मा ने ही हमें इस नश्वर संसार में दीन दुखियों की सेवा निस्वार्थ भाव से करने के लिए भेजा हैं। लेकिन हम ही इतने स्वार्थी हैं कि यहां आकर सेवा का भाव भूल गए और यह तेरा है, यह मेरा है के चक्कर में पड़ गये जो उचित नहीं है। जो कुछ भी है वह उस परमात्मा का दिया हुआ ही हैं। अतः हमें अपने निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर सेवा भाव से कार्य करना चाहिए। यही सुखी रहने का मूल मंत्र है।

सुन्दर रिश्ते : कहते हैं कि सुन्दरता से बढ़कर चरित्र है। प्रेम से बढ़कर त्याग है। दौलत से बढ़कर मानवता हैं, परन्तु सुन्दर रिश्तों से बढ़कर इस दुनियां में कुछ भी नहीं है। आज रिश्ते कांच की तरह से टूट रहें हैं। कुछ लोगों में धैर्य, सहनशीलता, त्याग की भावना का अभाव नजर आ रहा हैं तो कहीं स्वार्थ आपस में टकरा रहें हैं तो कहीं लोग बिना वजह दूसरों के घरों में ताक-झांक कर रहे हैं और दूसरों के घरों में दखल अंदाजी कर उनके घरों में फूट डाल रहे हैं। नतीजन रिश्ते हर वक्त टूट रहे हैं। जिन रिश्तों को हमारे बड़े बुजुर्गों ने संभाल कर रखा और प्रेम, स्नेह, मिलनसारिता, धैर्य, सहनशीलता, क्षमा, त्याग, नम्रता और विनम्रता क़ो अपना कर वट वृक्ष का आकार दिया था और सभी एक साथ एक ही थाली में भोजन करते थे।

वे ही आज एक दूसरे के दुश्मन बन गये हैं और एक-दूसरे की शक्ल सूरत तक नहीं देखना चाहते हैं। यह कैसी विडम्बना है। अगर हमारे रिश्ते, मित्रता, अपनापन इसी प्रकार टूटते रहे तो वह दिन दूर नहीं है जब हम इस नश्वर संसार में अकेले पड़ जायेंगे और किसी को भी अपना नहीं कह पायेंगे। अब भी वक्त है कि हम अपने परिजनों को फिर से एकजुट करें। उनके साथ अच्छा व्यवहार करें। अंहकार का त्याग कर बिखरे रिश्तों को फिर से जोड़े। याद रखिए फूल की महक सर्वत्र फैलने के बावजूद भी वह पुष्प को बिना महक के नहीं रहने देती। पुष्प की महक तो दूसरों को देने के बाद में भी उसमें समा ही रहती हैं।

अच्छी सोच के अनेक लाभ : समाज में आदर्श जीवन व्यतीत करना भी एक कला है और फिर जिसने इस कला को सीख लिया समझो उसका जीवन धन्य हो गया। इसके लिए व्यक्ति की सोच हमेंशा सकारात्मक रहनी चाहिए। सकारात्मक सोच हमें सदैव नई ऊर्जा और शक्ति प्रदान करती हैं और हमारा व्यवहार सभी के साथ समान रूप से बना रहता हैं। यही वजह है कि अच्छी भूमिका, अच्छे व्यवहार और अच्छे विचार वालें लोगों को हमेंशा याद किया जाता है। मन में भी, शब्दों में भी और जीवन में भी। अतः जीवन में कभी भी किसी का न तो बुरा करें और न ही दूसरों के बारे में बुरा सोचे। हमारी अच्छी सोच ही हमारी सर्वश्रेष्ठ पूंजी है जिसे बनाये रखना हमारा परम दायित्व है।

संयम रखें : आदर्श जीवन व्यतीत करने के लिए व्यक्ति को अपने आप पर संयम रखना चाहिए। लेकिन आज का इंसान तो जानवरो से भी खतरनाक साबित हो रहा है। बात बात पर हिंसा पर उतारू हो जाता हैं। बात बात में गाली गलौज करने लगता हैं। ऐसा लगता हैं कि गुस्सा उसके नाक पर ही हरदम बैठा रहता हैं। आज लोगों की वाणी पर संयम नहीं रहा हैं। उसकी भाषा व बोली में फूहड़ता झलक रही है। जो उचित नहीं है। वाणी पर संयम होना चाहिए, क्योंकि वाणी से दिये घाव कभी भी नहीं भरते हैं जबकि चोट के घाव दवा लगाने से भर जाते हैं और फिर पहले जैसा हो जाता हैं। इसलिए जब भी बोलें तब सोच समझ कर ही बोलें। इस नश्वर संसार में सबसे ज्यादा सुखी वहीं हैं जिसने यह जान लिया कि संसार में सुखी कोई नहीं है। अपनी जिंदगी में सबसे बड़ा धनवान वो इंसान हैं जो दूसरों को अपनी मुस्कुराहट देकर उनका दिल जीत लेता हैं।


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देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

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