दिल के टुकड़े-टुकड़े

सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
रिश्ते बडे ही नाजुक होते हैं जिन्हें निभाना भी एक कला हैं। जरा ऊंची आवाज में कहा नहीं कि दिल के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। कहने को तो यह बात सही लगती हैं और शत प्रतिशत लोग आपकी इस बात का समर्थन भी करते हैं लेकिन जब आप किसी के परिवार में दखल अंदाजी करते हैं और उनकी खुशहाल जिंदगी में जहर घोलने का प्रयास करते हो तो क्या वह उचित नहीं है। जब आपके उनके सुखमय जीवन में बिना किसी वजह दखल देते हैं तो उनके भी दिल के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं और उन्हें मजबूर होकर ऊंची आवाज में कहना पड़ता हैं कि हमारे परिवार में दखल अंदाजी न करें। रिश्तेदारी अपनी जगह है और परिवार चलाना अलग बात हैं। आप बिना वजह किसी के घर में तांक-झांक करना बंद कर दे। आप अपने घर में मस्त रहें और वो अपने घर में मस्त रहें। तभी जीवन में आनंद ही आनंद है, वरना जिंदगी एक बोझ बन कर रह जायेगी और रिश्तेदारी की डोर को जबरन “लोग क्या कहेंगे” की तर्ज पर ढोते रहिए लेकिन हासिल कुछ भी नहीं होने वाला। मात्र जीवन में रोना ही रोना हैं।
अहंकार न करें : जीवन में कभी भी उच्च शिक्षा, पद प्रतिष्ठा, मान सम्मान मिलने पर अहंकार न करें, चूंकि देने वाला व छीनने वाला एक ही व्यक्ति हैं। अहंकार व घमंड करने वालों को अंत में अपमानित ही होना पड़ता हैं। लोग अपने धन दौलत के आगे किसी को कुछ नहीं समझते हैं। धन दौलत, पद प्रतिष्ठा, मान सम्मान, नौकर चाकर, गाड़ी बंगले कब हाथ से चले जायें कोई नहीं जानता, लेकिन नम्रता और विनम्रता का भाव आपके जीवन में हैं तो आपका जीवन मंगलमय हैं। अतः जीवन में कभी भी अहंकार न करें और सादगी के साथ सभी के साथ सद् व्यवहार करें।
मित्रता में कोई स्वार्थ नहीं : मित्रता में कोई स्वार्थ नहीं होता है बल्कि पूर्ण विश्वास ही होता हैं। जहां हंसी मजाक करते हुए सभी तरह की बातें खुल कर बता दी जाती हैं। जो बात हम अपने परिवारजनों को नहीं बता सकते, वो बात भी निसंकोच होकर हम अपने मित्रों को धड़ल्ले से बेहिचक होकर बता देते हैं चूंकि मित्र हमारे सच्चे हितैषी होते हैं जो दुःख सुख में साथ देते हैं। इसलिए मित्र सोच समझ कर ही बनाइए ताकि बाद में पछताना न पड़े। भले ही दोस्तों की संख्या जीवन में कम हो लेकिन मित्र हो तो ऐसा हो जो दुःख की घड़ी में भी हमारे साथ अग्रिम पंक्ति में समस्या के समाधान हेतु खड़ा रहें।
राहों में पत्थर न होते : झरनों से इतना मधुर संगीत सुनाई नहीं देता अगर उसकी राहों में पत्थर न होते। इन पत्थरों से जब पानी टकराने लगता हैं तब यह मधुर आवाज हमें कानों में सुनाई देती हैं और मन हर्षित हो उठता हैं। ठीक इसी प्रकार जीवन में बाधाएं न आये तो हमें कठिनाइयों का आभास कैसे होगा। बढ़ते जीवन पथ पर हमारी सफलता को देखकर कोई उसकी (सफलता पर हमारी आलोचना न करें) आलोचना न करें यह कैसे संभव हो सकता हैं।
आलोचना वे लोग ही करते हैं जो खुद तो कुछ करते नहीं और कोई करता हैं तो उससे ईर्ष्या करते हुए उसके कार्यों में केवल खामियां ही ढूंढ़ते हैं और कार्य करने वाले को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं। ऐसे लोग पत्थर के समान होते हैं जो एक तरह से हमारे सच्चे हितैषी कहलाते हैं। चूंकि वे हमारे कार्यों में भले ही जबरन खामियां ढूंढें लेकिन हमें अपनी कमियों को दूर करने का एक सुनहरा अवसर अवश्य ही प्रदान करते हैं। अतः आलोचकों की आलोचना से भी हमें कभी-कभी बहुत कुछ सीखने का मौका मिलता हैं। इसलिए आलोचना से कभी भी न घबरायें। आलोचक तो एक पत्थर के समान है जो हमारे जीवन को एक तरह से निखारने का प्रयास करते हैं।
Nice article