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‘हिंदुत्व’ पर वैश्विक कान्फ्रेंस पर विवाद

वीरेंद्र बहादुर सिंह

दुनिया भर में ‘हिंदुत्व’ के लिए किस तरह के परिसंवाद आयोजित हो रहे हैं, यह भारत के लगभग सभी नागरिकों, धर्म के रखवालों और राजनेताओं को पता है?

गत 10 से 12 सितंबर के दौरान दक्षिण एशिया और अमेरिका की यूनिवर्सिटियों के प्रोफेसरों, लेखकों, आर्टिस्टों, बुद्धिजीवियों का गुप्तरूप से तीन दिनों का ऑनलाइन सेमिनार आयोजित किया गया था। सेमिनार के एजेंडे के अनुसार जिस तरह इस्लाम धर्म और आतंकवाद अलग-अलग हैं, उसी तरह हिंदू धर्म और ‘हिंदुत्व’ भी अलग-अलग हैं। यानी कि हिंदू धर्म भी अन्य धर्मों की ही तरह उसे पालन करने वाले नागरिकों का धर्म है। पर भारत में वर्तमान सत्ता पक्ष भाजपा जिस ध्येय के साथ शासन कर रही है, वह ‘हिंदुत्व’ है और यह एक खतरनाक आतंकवाद है, जो ‘फासिस्ट’ लक्ष्य की ओर धकेल रहा है।

यह निष्कर्ष भी निकाला गया कि भारत में ‘हिंदुत्व’ के नाम पर अल्पसंख्यक और अन्य जातियां खुद को काफी असुरक्षित महसूस कर रही हैं। उन पर भारी अत्याचार और क्रूरता की जा रही है। सेमिनार आयोजक, जो सामने नहीं आए, उनका कहना है कि इस कान्फ्रेंस का मुख्य लक्ष्य ‘हिंदुत्व’ के नाम पर भारत के अल्पसंख्यकों पर आगे चल कर दुनिया भर में आतंकवाद फैलाने के नाम पर भारत की सरकार, राष्ट्रीयता और हिंदू धर्म के लिए काम करने वाले संगठनों के इरादों का खुलासा करना है। इस ऑनलाइन संवाद में काफी हद तक झूठ फैलाने वाले ‘हिंदुत्व’ की क्या योजना है, उसके भयावह विचार प्रस्तुत करने वाले तमाम भाषण रेकार्ड किए गए हैं, जो भाजपा, भारत और हिंदू धर्म, संस्कृति से पीड़ित तत्वों द्वारा पेश किए गए हैं।

वैश्विक हिंदुत्व के बढ़ते प्रसार को रोकना इस सेमिनार के आयोजन का उद्देश्य था। आप ‘Dismantling Global Hindutva’ की वेबसाइट पर जाएंगें तो लिखा हुआ देख सकते हैं कि कान्फ्रेंस अब समाप्त हो चुका है। तमाम सेशंस के वीडियो हम आने वाले दिनों में लोड करेंगें। समग्र कान्फ्रेंस का उद्देश्य पेश करती आयोजक दो महिलाओं की शार्ट वीडियो वेबसाइट पर देखी जा सकती है। वेब पेज में ‘होम’, ‘एबाउट’, ‘प्रेस’ और ‘अटेंट’ पर क्लिक करेंगें तो इस मिशन की ग॔दी मुराद और भारत को, हिंदू धर्म को और ‘हिंदुत्व’ को विश्व स्तर पर बदनाम करने का कृत्य देख कर आप सन्न रह जाएंगें। मात्र हिंदू धर्म के मानने वाले ही नहीं, भारत या विदेश में रहने वाले और खुले विचारों वाले लोग भी स्वीकार करेंगें कि किस हद तक दुनिया और उसकी अपेक्षा भारत में परस्पर जहर फैलाने का खेल किस तरह रचा जा रहा है। कोई अन्य धर्म के क्यों नहीं, केवल हिंदू धर्म ही क्यों हिटलरवादी माना जा रहा है।

सितंबर के पहले सप्ताह में अमेरिका स्थित हिंदं संगठनों (आरएसएस की शाखा सहित) हिंदू धर्म के प्रोफेसरों, तमाम लेखकों और नागरिकों ने इस कान्फ्रेंस की घोषणा होते ही इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए जोरदार होहल्ला मचाया था। अमेरिका के इतिहास के सब से युवा ओहायो के 30 वर्षीय नागर जाति के सेनेटर नीरज अंताणी ने इस कान्फ्रेंस की पोल खोलते हुए एक पत्र भी जारी की किया। दुखद बात तो यह है कि अमेरिका की हार्वर्ड, प्रिस्टन, बर्कली और स्टेनफर्ड सहित शिखर की 53 यूनिवर्सिटियों ने प्रायोजक बन कर इन लोगों का समर्थन किया। अमेरिका में देश-विदेश के भारतीयों द्वारा 10 लाख से अधिक संख्या में सरकार, यूनिवर्सिटियों और मीडिया ने इस कान्फ्रेंस का एजेंडा हम समझे नहीं पाए, यह कह कर खिसक जाने का ईमेल किया है। भारतीय समाज के दबाव बनाने पर तमाम यूनिवर्सिटियां इस प्रोजेक्ट से हट गई हैं।

यह एक खतरनाक आतंकवाद है, जो ‘फासिस्ट’ लक्ष्य की ओर धकेल रहा है।

अब कान्फ्रेंस के आयोजक आक्रामक हो गए हैं उन्होंने अमेरिका और एशिया की तमाम यूनिवर्सिटियों, एनजीओ, मायनोरिटी संस्थाओं के साथ दृढ़ता से खड़े होने के इरादे का दबाव बनाया है। पेनलिस्ट और वक्ताओं ने यह कह कर पुलिस सुरक्षा मांगी है कि ‘हिंदू फासिस्ट’ ग्रुप धमकियां दे रहे हैं कि हम ‘हिंदुत्व’ के खिलाफ बोलने वालों को जान से मार देंगें। हिंदू समुदायों की कमजोरी इस बात से साबित होती है कि अमेरिका की तमाम मीडिया ने हेडलाइन बनाई है कि ‘डेथ थ्रेट्स सेंट टू पार्टिसिपेंट्स आफ यूएस कान्फ्रेंस आन हिंदू नेशनलिज्म।’ हिंदू नेशनलिज्म पर अमेरिका की कान्फ्रेंस में भाग लेने वालों को मिली मारने की धमकी)।

कान्फ्रेंस के प्रवक्ता ने ‘द गार्जियन अखबार को बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के अंतर्गत सरकार हिंदू नेशनलिस्ट एजेंडे की ओर बढ़ रही है। भारत में रहने वाले 20 करोड़ अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं और उनके साथ अमानवीय भेदभाव किया जा रहा है। कान्फ्रेंस के एक आयोजक ने मीडिया को बताया कि ‘हिंदुइज्म’ खतरनाक नहीं है, पर हिंदुत्व की राजनीतिक विचारधारा को भारत की गैर सांप्रदायिकता के लिए अति खतरनाक मानते हैं। यह कान्फ्रेंस उसी के खिलाफ आवाज उठाने के लिए की गई थी। भारत का दुर्भाग्य यह है कि अमेरिका में सालों से स्थाई रूप से रहने वाले तमाम भारतीय प्रोफेसरों ने ही इस कान्फ्रेंस में हिस्सा ले कर ‘हिंदुत्व’ के खिलाफ आवाज उठाई है।

सांता क्लारा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रोहित चोपड़ा, जो कान्फ्रेंस के एक आयोजक भी माने जाते हैं, उन्हें बहुत ही अश्लील भाषा में मारने की धमकी मिली है। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के साऊथ एशियन स्टडीज प्रोग्राम के डायरेक्टर बेन बाएर ने कान्फ्रेंस को लोकतांत्रिक ढ़ंग सै आगे बढ़ाने की हिमायत की है। पर भारतीय यह सवाल उठा रहे हैं कि अन्य किसी धर्म के लिए तो इस तरह का वैश्विक कान्फ्रेंस नहीं आयोजित किया गया, फिर हिंदू धर्म, वह भी जो कभी भारत नहीं गए, जबकि भारत के अल्पसंख्यकों की अन्य देशों की तुलना में काफी सुखद स्थिति है, फिर भी इस तरह का आयोजन क्यों हो रहे हैं?

इस कान्फ्रेंस के वक्ताओं ने भारत के टीवी न्यूज चैनलों को भी ‘फासिस्ट’ लोगों का साथ देने वाला बताया है। अमेरिका में कार्यरत हिंदू संगठनों को यह शंका है कि भारत में अस्थिरता लाने का यह बहुत ही खतरनाक खेल है। सीआईए और विदेशी सरकारें भी इसमें शामिल हैं। अमेरिका के तटस्थ प्रोफेसर या जो वर्तमान भारत को जानते हैं, वे निडरता से अपनी राय प्रकट करने के लिए बाहर नहीं आते। सचमुच में ‘हिंदुत्व’ क्या है, इसमी समझ देने वाली कान्फ्रेंस अमेरिका और यूरोप में हिंदू संगठनों और आरएसएस द्वारा आयोजित करनी चाहिए। अब ऐसी एक कान्फ्रेंस ‘हिंदुत्व फार ग्लोबल गुड’ हिंदू हेरिटेज फाऊंडेशन आफ अमेदिका 1-3 अक्टूबर के दौरान आयोजित की जा रही है।

यह निष्कर्ष भी निकाला गया कि भारत में ‘हिंदुत्व’ के नाम पर अल्पसंख्यक और अन्य जातियां खुद को काफी असुरक्षित महसूस कर रही हैं।

18 महत्वपूर्ण भारतीय प्रोफेसर हिंदुत्व के बारे में नासमझी दूर करने वाले लेक्चर्स देंगे। अगर इसमें अमेरिका के गोरे प्रोफेसर शामिल किए जाते तो इसका वैश्विक प्रभाव अधिक पड़ता। भारत के बहुसंख्यक नागरिक और शासक पक्ष भाजपा को भी जितना जरूरी है, उतना आत्ममंथन करना चाहिए। अमुक राज्य की या छोटेबड़े गांव की घटनाओं को दुनिया के सामने ले जाना चाहिए कि भारत में ऐसा होता है। अमेरिका को कौन कह सकता है कि तुम्हारे यहां माॅल, शाॅप, गैस स्टेशन या स्कूल में शूटिंग होती है। चीन में उइगर मुसलमानों पर जो अत्याचार होता है, वह ह्युमन राइट्स की दयाजनक स्थिति की पराकाष्ठा के समान है। विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत बहुत बेहतर है। यह भारत का दुर्भाग्य ही है कि वह कुछ कहता नहीं है।

तालिबानों से आरएसएस की तुलना करने पर भी बौद्धिक और वास्तविक तर्क और दलीलों के साथ भी उत्तर नहीं दिया गया। भारत के फिल्म स्टार भी वर्तमान सरकार से डर कर अपना मंतव्य नहीं देते। यह प्रचार भी दुनिया में हो चुका है। सोशल मीडिया में सभ्य भाषा के साथ भारत के नागरिकों के प्रतिभाव ले कर रखा जा सकता है। टेक्नोलॉजी के इस युग में भी भारत के लिए दुनिया के सामने डरावना चेहरा खड़ा किया जा रहा है तो ऐसे में भारतीय मीडिया मैनेजमेंट का और बौद्धिकों के मौन का दोष है। बात भारत को गलत भारत बताने की नहीं है। सवाल और थोड़ा दोष सरकारों का भी है कि तालिबानी शासन होने की बात को चला नहीं लेना चाहिए।

अमेरिका की रूटगेर्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एऊडे टुस्के पर आरोप है कि वह हिंदू फोबिक हैं। उन्हें कान्फ्रेंस का दिल माना जाता है। कान्फ्रेंस के आयोजकों का दुनिया भर में जोरदार नेटवर्क है। ‘वर्ल्ड रिलीजियंस’ पर पूर्वाग्रहित अध्ययन करने वाले 9 सौ प्रोफेसर साऊथ एशिया की 50 एनजीओ के साथ जुड़े हैं। कान्फ्रेंस में पहले दिन 10 सितंबर को ‘ह्वाट इज ग्लोबल हिंदुत्व’, ‘द पालिटिकल इकोनाॅमी आफ हिंदुत्व’, ‘कास्ट एंड हिंदुत्व’ पर लेक्चर्स रेकार्ड किए गए थे। अगले दिन ‘जेंडर एंड सेक्सुअल पालिटिक्स आफ हिंदुत्व’, ‘कोंटोर्स आफ नेशंस’, ‘हिंदुत्व साइंस एंड हेल्थ केयर’, और तीसरे अंतिम दिन ‘हिंदुत्व प्रोपेगंडा एंड द डिजिटल ईकोसिस्टम’, ‘हिंदुइज्म एंड हिंदुत्व, तथा ‘इस्लामिक फोबिया, ह्वाइट सुप्रेमेसी एंड हिंदुत्व’ पर लेक्चर्स थे।

अगर प्रचंड विरोध न हुआ होता तो लाइव ऑनलाइन लेक्चर्स दुनिया सुन सकती थी। अब ये रेकॉर्डेड लेक्चर्स दुनिया भर के सोशल मीडिया में घूमेंगें। अमेरिका के गोरे भी वहां रहने वाले भारतीयों से असुरक्षित महसूस कर उन पर हमला कर सकते हैं। दुनिया भर के अन्य देश भी भारत के लिए किसी हद तक गैरसमझ और वैमनस्यता मान सकते हैं। इस कान्फ्रेंस का समर्थन करने वालों की सूची वेबसाइट पर जा कर नजर डालेंगे तो पता चलेगा कि ‘हिंदू फोबिया’ फिर बढ़ेगी। ‘टाइम’ पत्रिका ने नरेंद्र मोदी को दुनिया के सौ प्रभावशाली नेताओं की सूची में नाम दिया गथा है, साथ ही सीएनएन के पत्रकार फरीद जकरिया ने नोट लिखा है कि ‘मोदी देश को गैर सांप्रदायिकता से दूर ले जा कर हिंदू नेशनलिज्म की ओर ले जा रहे हैं। भारत के मुसलमानों, जो अल्पसंख्यक हैं, उनके हक छीने जा रहे हैं और पत्रकारों को धमकी दी जा रही है या जेल भेजा जा रहा है।

सांता क्लारा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रोहित चोपड़ा, जो कान्फ्रेंस के एक आयोजक भी माने जाते हैं, उन्हें बहुत ही अश्लील भाषा में मारने की धमकी मिली है।

अमेरिका की यूनिवर्सिटियों में हिंदू धर्म, हिंदू राष्ट्र और हिंदू संस्कृति के अध्ययन के लिए ‘चेर’ या फैकल्टी एक या दो हो होंगीं। लाइब्रेरी में भी हिंदू देवी-देवताओं पर पुस्तकें हैं, पर सनातन संस्कृति, वेद, उपनिषद, भगवद् गीता के तत्वज्ञान की सांप्रतता पर पुस्तकें या प्रचार नहीं है। भारत को टाइम, न्यूजवीक, सीएनएन, अल जजीरा, फोकस, बीबीसी जैसे वैश्विक न्यूज चैनल और ग्लोबल सरक्युलेटेड गार्जियन, वाशिंग्टन पोस्ट, वाल स्ट्रीट जनलल जैसे अखबार शुरू करने की जरूरत है। अपनी न्यूज एजेंसियों को भी और वजनदार बनाने की जरूरत है।

जब भी अल्पसंख्यकों और सामाजिक,आर्थिक पिछड़े नागरिक पर अन्याय या दमन होता हो, तुरंत सख्त कार्रवाई कर के उसे दुनिया के सामने रखना चाहिए। भारत के तमाम धर्म के लोग खुद कान्फ्रेंस का आयोजन कर उनकी क्या अपेक्षा है, इसके लेक्चर की सीरीज बना कर पूरी दुनिया के सामने रखना चाहिए। पारदर्शक बन कर भारत को शांत और सुखी बनाने के लिए समय की मांग है। विदेशी हमें अंदर ही अंदर फिर से न लड़ा बैठें, यह।हम सभी को ध्यान रखना होगा।

Devbhoomi Samachar

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