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भारतीय राजनीति के अजातशत्रु अटल बिहारी वाजपेयी

नवनीत कुमार शुक्ल

आज 25 दिसंबर को पूरे भारतवर्ष में जहाँ एक ओर क्रिसमस का त्यौहार मनाया जा रहा है वहीं दूसरी ओर भारतीयों के दिलों पर राज करने वाले राजनीति के अजातशत्रु अटल जी का जन्मदिन भी हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। सभी धर्मों से पहले राष्ट्रधर्म और राजधर्म को मानने वाले भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी का योगदान भारतीय राजनीति में सदा ही अमूल्य ही रहेगा।

इस बात में कोई दो राय नही है कि एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार के अध्यापक के पुत्र अटल बिहारी वाजपेयी विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के ना केवल प्रधानमंत्री बने, बल्कि विविधता से भरे देश को उन्होंने सफलतम नेतृत्व भी प्रदान किया, और सभी धर्म एवं समाज के लोगों को एकसाथ रहने के लिए प्रेरणा देते रहे जिससे समाज में समरसता का भाव मजबूत हुआ।

25 दिसंबर 1925 को जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी जी की शुरूआती शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई। राजनीति विज्ञान में उन्होंने स्नातकोत्तर किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में राष्ट्रधर्म का पाठ अटल बिहारी वाजपेयी ने बखूबी पढ़ा और अपने संपूर्ण राजनीतिक कैरियर में इसे उन्होंने कभी छुपाया भी नहीं।

गर्व से कहा कि मैं स्वयं सेवक हूं। यहाँ तक कि भारतीय जनता पार्टी के दूसरे नेताओं ने जब यह शर्त रखी कि या तो कोई नेता जनता पार्टी से जुड़ा रह सकता है अथवा आरएसएस से तो अटल जी के नेतृत्व में सरकार से निकलने में वाजपेयी जी ने ज़रा भी देर नहीं की। अपनी जड़ों से कैसे व्यक्ति जुड़ा रहता है इसका उत्तम उदाहरण अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रस्तुत किया आजकल ऐसे उदाहरण बहुत कम देखने को मिलते हैं।

अटल जी नेे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में भी भारत छोड़ो आंदोलन में बाकी नेताओं के साथ हिस्सा लिया था और जेल भी गए थे। जेल में ही उनकी मुलाकात भारतीय जनसंघ के श्यामा प्रसाद मुखर्जी से हुई थी और यही से उनका राजनीतिक सफर शुरु हो गया था। 1954 में बलरामपुर से वह पहली बार मेंबर ऑफ पार्लियामेंट चुने गए तो 1968 में दीनदयाल उपाध्याय की मौत के बाद जन संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए।

1977 में इंदिरा गाँधी की तानाशाही से परेशान होकर भारतीय जनसंघ और भारतीय लोकदल में गठबंधन हुआ जिसे जनता पार्टी का नाम मिला और इंदिरा गांधी की इमरजेंसी के बाद इसे सफलता भी मिली इस सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने, किंतु जल्द ही जनता पार्टी में बिखराव हुआ।

बिखराव के बाद 1980 में लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व उप राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत जैसे नेताओं के साथ मिलकर अटल बिहारी वाजपेयी ने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की तथा 1995 में अटल जी को भाजपा का प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित किया गया और 1996 में हुए चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनी और अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री भी बने, किंतु 13 दिन में ही अटल जी को पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

इसके बाद भाजपा ने दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स यानी एनडीए का गठन किया और भाजपा फिर सत्ता में आई लेकिन इस बार भी दुर्भाग्य से उनकी सरकार 13 महीने ही चली लेकिन उसके बाद बनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया तथा उस दौरान आर्थिक सुधारों के लिए अटल जी ने बहुत सी योजनाएं शुरु की थी जिसके बाद छः से सात प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई और समूचे विश्व में भारत का नाम मजबूती से लिया जाने लगा।

सत्ता में आने के बाद 1998 में राजस्थान के पोखरण में पांच अंडरग्राउंड न्युक्लियर बम के सफल टेस्ट ने अटल बिहारी वाजपेयी की चर्चा पूरे विश्व में फैला दी थी और भारत परमाणु शक्ति संपन्न देशों की अगली कतार में मजबूती से खड़ा हो गया था जिसके बाद विश्व के कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबन्ध भी लगाये किन्तु उन प्रतिबंधों का वाजपेयी जी ने डटकर सामना किया तथा विश्व को अपनी परमाणु शक्ति के बारे में यह विश्वास दिला पाने में सफल रहे कि भारत एक शांतिप्रिय देश है और वह परमाणु हथियारों का कभी भी पहले प्रयोग नहीं करेगा।

आजीवन अविवाहित रहने के निर्णय के फल के रूप में देश सेवा उनका चिर स्थाई विचार रहा तथा अटल जी पदलोलुपता की निकृष्ट विचारधारा से परे रहे जिसे उन्होंने अपने ऊपर कभी हावी होने नहीं दिया। सात दशकों से अधिक भारतीय राजनीति में अपना स्थान अक्षुण्ण रखने वाले अटल बिहारी वाजपेई के वैचारिक प्रेरणा के स्त्रोत स्वर्गीय पंडित दीनदयाल उपाध्याय एवं डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे राष्ट्रवादी महानुभाव रहे।

अटल जी के राजधर्म और राष्ट्रसेवा के अद्भुत कार्य के कारण भारत सरकार और भारतीय जनमानस दोनों ने भारत रत्न की पदवी से उन्हें खुशी- खुशी नवाजा। अटल जी को भारतरत्न पुरस्कार तो मिला ही, किंतु उससे भी बढ़कर भारतीय जनमानस के हृदय में उनका स्थान कहीं ज्यादा बड़ा है, यहाँ तक कि विपक्षी राजनीतिक पार्टियों ने भी भारत के संसदीय इतिहास में हमेशा अटल बिहारी जी को सम्मान देते हुए उदाहरण स्वारूप प्रस्तुत किया है।

भारतरत्न के अतिरिक्त अटल जी को 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार, 1994 में ही सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार, 1996 में पद्मविभूषण और पंडित गोविंद बल्लभ पंत पुरस्कार अटल बिहारी बाजपेयी जी को प्राप्त हुए हैं इसके साथ 2015 में ‘फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवॉर्ड’ (बांग्लादेश सरकार द्वारा प्रदत्त) वाजपेयी जी की प्रमुख उपलब्धियों में शामिल किया जा सकता है।

अटल जी एक उच्च कोटि के लेखक एवं कवि भी थे और उन्होंने राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन जैसी कालजयी पत्र- पत्रिकाओं का संपादन भी किया। उच्च कोटि के कवि अटल बिहारी वाजपेयी जी की कई कविताएं आज भी बड़े शौक से गुनगुनायी जाती हैं। उनके व्यक्तित्व का अद्भुत करिश्मा और उनकी अतुलनीय भाषण- शैली का गुणगान आज भी लोगों से सुनने को मिलता है। अटल जी अपनी सच्ची देशभक्ति एवं निस्वार्थ सेवा के कारण चिरकाल तक भारतीयों के दिलों पर राज करेंगे।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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नवनीत कुमार शुक्ल

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