गर्मी

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
ठंडी जाती गर्मी आती,
बड़ा खराब मौसम लाती ।
आग का गोला बन धरती जलती,
गरम-गरम सारा दिन लू चलती ।
चाय गर्म का दौर खत्म,
हाय-हाय गर्मी का सितम ।
भिन्न- भिन्न कोल्ड ड्रिंक सब पीते,
ताल-तलैया, कुए-बाबरी सब रीते ।
सूरज की किरणें तीर छोड़ती रहतीं पैने,
ओंठ सूखते, पल-पल प्यास, दर्द सब सहने ।
बड़े आदमी एसी-कूलर का लुफ्त उठाते,
छोटे हाथ का पंखा झल-झल काम चलाते ।
गर्मी आती बड़ा सितम है ढाती,
बूंद-बूंद के लिए हर प्राणी को तरसाती ।
रातें कुछ ठंडी हो जातीं,
भोर सुहानी बन जातीं ।
साथी ! गर्मी में कम खाओ,
भरी दोपहरी में कहीं न जाओ।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »मुकेश कुमार ऋषि वर्मालेखक एवं कविAddress »ग्राम रिहावली, डाकघर तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, (उत्तर प्रदेश) | मो : 9876777233Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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