मन से जीने की आजादी
मन से जीने की आजादी, मां की ममता की वजह से बच्चे हर वक्त प्रफुल्लित रहते हैं। ठीक उसी प्रकार मन की आजादी से न केवल मन और मस्तिष्क में श्रेष्ठ विचारों का आगमन होता है अपितु घर – परिवार, समाज और राष्ट्र का हर नागरिक प्रसन्नचित रहता है और सर्वत्र आनंद ही आनंद छाया रहता है. #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
मन से जीने की आजादी का अपना एक अलग ही अंदाज होता हैं। मन से जीने की आजादी का मतलब मनमानी करने से नहीं है अपितु अपने मन के अनुरूप स्वच्छंदता पूर्वक जीवन व्यतीत करना हैं जब हम भीतर से प्रसन्न होंगे तभी तो बाहर से प्रसन्न होकर जीवन व्यतीत कर पायेंगे। चेहरे की मुस्कान ही हमें आनंदित कर देती हैं चूंकि यह कुदरत का एक करिश्मा हैं।
जो साहित्यकार मन की आजादी से जीवन व्यतीत करता है वह अपनी कलम से न तो अश्लील साहित्य का सृजन करता है और न ही अपनी कलम को बेचता हैं। उसके मन में जो सकारात्मक भाव हैं उसे जन – जन तक पहुंचा कर प्यार का पैगाम फैलाता हैं और मानवीय मूल्यों की रक्षा करने में भी अपनी अहम भूमिका अदा करता हैं आपकी सकारात्मक सोच, प्यार व स्नेह की डोर से ही हमारे आपसी रिश्ते मजबूत होते हैं और वे समय के साथ-साथ इतने प्रगाढ़ होते जाते हैैं कि फिर इस प्यार व स्नेह की डोर में कभी भी शंका की गांठ नहीं बंधती हैं और न ही कटुता की दरार पैदा होती है।
जहां प्रेम और स्नेह हैं वही तो जीवन स्वर्ग मय है, वरना नर्क मय जीवन किस काम का जीवन में घमंड व अंहकार की आग ही तो व्यक्ति को बर्बाद कर रही है। जहां घमंड व अंहकार की आग है वहां जीवन कभी भी आनंददायक नहीं हो सकता मनुष्य तो क्या पशु पक्षी व जीव – जन्तु भी मन की आजादी चाहते हैं। वे मन की आजादी के कारण ही तो दिन भर अपनी महक सर्वत्र फैलाये रहते हैं। मन में ममता का भाव का होना नितांत आवश्यक है।
मां की ममता की वजह से बच्चे हर वक्त प्रफुल्लित रहते हैं। ठीक उसी प्रकार मन की आजादी से न केवल मन और मस्तिष्क में श्रेष्ठ विचारों का आगमन होता है अपितु घर – परिवार, समाज और राष्ट्र का हर नागरिक प्रसन्नचित रहता है और सर्वत्र आनंद ही आनंद छाया रहता है व जीवन की खुशियों मे़ चार चांद लग जाते हैं। जहां प्यार व स्नेह हैं वहीं तो मन की आजादी है जो व्यक्ति को निडर व निर्भय बनाती हैं।
प्रिशा माथुर ने एक साथ तीन अवार्ड जीते