प्रेम का सुन्दर गुलदस्ता मधुर मुस्कान
सुनील कुमार माथुर
मनुष्य को सदैव मिलजुल कर रहना चाहिए और हंसते मुस्कुराते हुए कार्य करना चाहिए । जब भी किसी से मिलें तब प्रेम व स्नेह के साथ मिलें । सबके साथ रहें व मिलजुल कर रहें । चूंकि एकता में ही बल है । जहां राग – द्वेष व ईर्ष्या हैं वही पर फूट हैं । अतः राग – द्वेष व ईर्ष्या के माहौल से दूर रहें और प्रेम व स्नेह को जीवन में अंगीकार करें ।
आपकी एक मधुर मुस्कान ही आपके श्रेष्ठ व्यक्तित्व की असली व सही पहचान हैं । अतः जीवन में कभी भी अपनी मधुर मुस्कान को न खोये । जहां भी रहे , प्रेम व स्नेह के साथ रहें । मीठी वाणी बोले और सबके साथ रहिए । प्रेम ही हमारी प्रगाढ़ता का सुन्दर गुलदस्ता है जो मधुर मुस्कान रूपी जल से सींचा जा सकता हैं ।
हमें अपनी जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ सुचारू रूप से निभाना चाहिए । वही व्यक्ति को अपनें आपको इतना योग्य बनाना चाहिए कि कभी किसी के सामने हाथ न पसारना पडे । रिश्ते तो प्रेम के होते हैं जबकि धन से तो केवल सौदे ही होते हैं । ब्याह – शादी में जो कन्या पक्ष से दहेज व नकद राशि मांगते हैं वे कन्या पक्ष से अपने पुत्र का रिश्ता नहीं करते हैं अपितु लडके का सौदा ही करते हैं ।
व्यक्ति को हमेशा अपने आप पर इतना तो भरोसा होना ही चाहिए कि वह मेहनय – मजदूरी या कोई अन्य रोजगार करके अपना व अपने परिवार वालों का भरण – पोषण कर सकें । कहने का तात्पर्य यह है कि हमेशा अपने मेहनत की कमाई का खाओं । चूंकि खुद की कमाई ही सबसे उतम सम्पत्ति है जब हमें प्रभु ने इतना अमूल्य मानव जीवन दिया है तो फिर उसे स्वाभिमान के साथ जीना सीखें । अपने बलबूते पर कठोर परिश्रम करके धन अर्जित करें और अपनी जरूरतों को पूरा करें ।
अपने माता – पिता की संपत्ति को देखकर अंहकार न करें । उनके द्धारा अर्जित संपत्ति को एवं धन -दौलत को बेकार के कार्यों में बर्बाद न करें । जीवन में व्यवहारिक बनें । सबके साथ सम्मान व प्रेम पूर्वक व्यवहार करें । जहां प्रेम , प्यार- मुहब्बत हैं वही जीवन में स्वर्ग है । हमारे दुःख का कारण हमारी बढती लालसाएं व इच्छाएं है जो कभी भी पूरी नहीं होती हैं । एक इच्छा की पूरी तरह से पूर्ति हो भी नहीं पाती हैं कि दूसरी इच्छा जागृत हो जाती हैं ।
जो लालसाओ व इच्छाओं पर पर समय रहते अंकुश लगा लेते हैं । उन पर कंट्रोल करना जान लेते हैं वही व्यक्ति सही मायने में जीवन में सफल हो पाता हैं । व्यक्ति को जीवन में आपनी सामर्थ्य के अनुसार समय- समय पर दान – पुण्य भी करते रहना चाहिए । कोई भी दान छोटा नहीं होता हैं अपितु परमात्मा तो अपने भक्तों का भाव देखते हैं । दान – पुण्य करते समय किसी फल की कामना मन में नहीं होनी चाहिए अपितु नि स्वार्थ भाव से करना चाहिए ।
दान – पुण्य करने से कोई गरीब नहीं होता हैं अपितु उस पर परमात्मा का आशीर्वाद बना रहता हैं । भक्ति निस्वार्थ भाव से करें व जब भी भक्ति करे तब एकाग्रचित होकर करें । जब यह मानव जीवन मिला हैं तो फिर दान – पुण्य करते रहना चाहिए । गुस्से का त्याग कीजिए और जीवन में मानवीय धर्म को अपनाइए । प्रेम , स्नेह , ममता व वात्सल्य की भावना रखिये और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना सीखें ।क्रोध पर काबू पाइए और जरूरतमंद लोगों की निस्वार्थ भाव से सहायता करें ।
जहां प्रेम व स्नेह है, वही पर ईश्वर हैं। अतः ईश्वर में आस्था रखें और सुखी जीवन व्यतीत करें।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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