साहित्य लहर

हे हाड़-मांस के पुतले

अजय एहसास

तू जाएगा धरती के तले
या तेरा मांसल चर्म जले
फिर भी तू समझ नहीं पाता
अनीति अधर्म ही अपनाता
तेरे घर में ही पाप पले
हे हाड़ – मांस के पुतले।

तू स्वार्थ नीति के चक्कर में
बस अपना लाभ सोचता है
मज़लूमो का शोषण करता
गिद्धों सा उन्हें नोचता है
मजलूम बेचारा हाथ मले
हे हाड़ – मांस के पुतले ।

तू दिन भर ही दौड़े भागे
रातों में ना सोए जागे
तू निशाचरों सा काम करे
इक पल भी ना आराम करे
तू चाहे कि दिन भी ना ढले
हे हाड़ – मांस के पुतले ।

तू पैसे के पीछे भागे
बस पैसे पर ही मरता है
जब कोई तुझसे कुछ मांगे
तो पास नहीं है कहता है
पैसा ना तेरे साथ चले
हे हाड़ – मांस के पुतले ।

धन की अभिलाषा में जीकर
रिश्तों को खोता रहता है
धन का तो थाह नहीं तेरा
हुआ वृद्ध तो रोता रहता है
रिश्तों का पौधा नहीं फले
हे हाड़ – मांस के पुतले ।

ना राम, लक्ष्मण से भाई
जो प्राण न्योछावर करते हो
अब भाई ऐसे मिले ना जो
भाई – भाई पर मरते हो
भाई अब भाई से क्यों जले ।
हे हाड़ – मांस के पुतले ।

तू बाहर से उजला उजला
पर तेरा मन ही है काला
तू संत बना पहने माला
पर काम करे कहने वाला
क्यों वेश बदलकर उन्हें छले
हे हाड़ – मांस के पुतले ।

इन्सान से तू शैतान बना
अपना बन अपनों को खाएं
तू मांस पे अपने इतराए
मासूमों से तू भिड़ जाए
इक दिन ये तेरा मांस गले
हे हाड़ मांस के पुतले
एहसास की तो बस श्वास चले
हे हाड़ – मांस के पुतले।।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

Devbhoomi
From »

अजय एहसास

सुलेमपुर परसावां, अम्बेडकर नगर (उत्तर प्रदेश)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

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