जीवन की मिठास

जीवन की मिठास ही तो हमें आदर्श जीवन जीने की कला सिखाती है। अगर जीवन में मिठास न हो तो फिर वह जीवन जीना भी क्या जीना मुसीबत में कभी भी किसी को अकेला न छोडे। अपितु समस्या का समाधान मिलकर खोजिए। आपका जीवन सफल हो जायेगा। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
आदर्श जीवन जीना भी एक कला हैं। चूंकि हमारे जीवन में अनेक उलझनें है जिसके कारण इंसान प्रायः दुःखी रहता हैं। उदास और नर्वस रहता हैं। उसके चेहरे की सारी खुशियां लुप्त हो जाता है फिर भला ऐसे में वह क्या मीठे बोल आप से बोल पायेगा अगर दो मीठे बोल बोल भी लेगा तो उसमें भी बनावटीपन होगा।
चूंकि जहां उदासी, परेशानी है वहां कड़वाहट का ही आधिपत्य होता है। मिठास का नहीं। याद रखिए जलेबी कितनी भी उलझी हुई क्यों न हो लेकिन वह उस उलझन के बावजूद भी हमें मिठास होने का संदेश देती है तो क्या हम इंसान होकर भी दो प्रेम के मीठे बोल नहीं बोल सकते। हम इतने निष्ठुर क्यों है। यह एक विचारणीय विषय है।
आज प्रायः हम समाज में यही देख रहे हैं कि जहां एक व्यक्ति का दूसरे से स्वार्थ सिद्ध होता है तभी तक वह प्रेम पूर्वक व्यवहार करता है और ज्यों ही स्वार्थ की सिद्धि होती है त्यों ही मुंह फेर लेता हैं। लेकिन जीवन में यह बात याद रखें कि हम किसी से बात न करे तो कोई बात नहीं। हम बात करने के लिए बाध्य नहीं है। लेकिन जब भी किसी से बात करे तब शालीनता के साथ प्रेम पूर्वक बातचीत करें। आपके व्यवहार में अपनापन झलकना चाहिए न कि क्रोध, गूस्सा।
जीवन की मिठास ही तो हमें आदर्श जीवन जीने की कला सिखाती है। अगर जीवन में मिठास न हो तो फिर वह जीवन जीना भी क्या जीना मुसीबत में कभी भी किसी को अकेला न छोडे। अपितु समस्या का समाधान मिलकर खोजिए। आपका जीवन सफल हो जायेगा।