प्रगतिशील एवं अग्रगामी विचारों के धनी : मुंशी प्रेमचन्द
सुनील कुमार माथुर
मुंशी प्रेमचन्द इस देश की अनमोल धरोहर है । प्रेमचंद के साहित्य में साम्प्रदायिकता एवं जातीय संघर्ष नहीं है । उन्होंने सामाजिक कुरीतियों व प्रथाओं का विरोध करके साहित्य के माध्यम से मानवीयता का प्रचार-प्रसार किया । प्रेमचंद आज भी प्रासंगिक है । आज के बाजारवादी युग में भी प्रेमचंद का साहित्य सन्मार्ग की ओर ले जाता है । मुंशी प्रेमचन्द के पात्र आज भी जिंदा है ।
मुंशी प्रेमचन्द की रचनाओं से बडी आत्मीयता महसूस होती है…
आज का स्त्री विमर्श नारी मुक्ति का नहीं देह मुक्ति का आन्दोलन है । मुंशी प्रेमचन्द के साहित्य में असली नारी विमर्श हैं । उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया । उन्होंने हिन्दी साहित्य के माध्यम से जनचेतना जागृत की । प्रेमचंद के साहित्य में भारत की आत्मा प्रतिबिम्बित होती हैं । उनकी लेखनी ने गरीब किसान मजदूर के दुःख को उद् घाटित कर सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक सता को चुनौती दी । राजनैतिक क्षेत्र में जो कार्य महात्मा गांधी ने किया , साहित्य के क्षेत्र में वहीं कार्य मुंशी प्रेमचन्द ने किया ।
मुंशी प्रेमचन्द प्रगतिशील एवं अग्रगामी विचारों के धनी थे । उनके साहित्य में शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति दर्शित होती है । उनकी अनेक कहानियों व उपन्यासों पर फिल्में बन चुकी है । उन्होंने भारतीय साहित्य में कई विधा का आगाज किया । उन्होंने कहानियों के माध्यम से छूआछूत मिटाने का प्रयास किया । ऊनकी दृष्टि मानव की प्रवृत्ति पर थी । वे महान उपन्यासकार तो थे ही , साथ ही तीन सौ से अधिक कहानियां भी उन्होंने लिखी हैं ।
उनकी रचनाओं में मार्मिकता , यथार्थता एवं स्पष्टवादिता थी आज भी उनकी रचनाएँ सटीक , कालजयी एवं सार्थक हैं ।संवेदनशील व्यक्तियों के लिए आज भी प्रेमचंद जी बडे आदर्शवादी हैं । गोदान उपन्यास में अधिकारियों, किसानों एवं गरीबों आदि का मार्मिक एवं सुन्दर चित्रण किया गया है प्रेमचंद जी तो भारत का जीवन हैं । उनका साहित्य राष्ट्रीय चरित्र जागृत करने वाला है ।
राष्ट्र आज भी उन्ही ज्वलंत मुद्दों से जूझ रहा है, जिन्हें प्रेमचंद ने काफी पहले रेखांकित कर दिया था…
मुंशी प्रेमचन्द को पढते हुए हम सब बडे हुए है । उनकी रचनाओं से बडी आत्मीयता महसूस होती है । ऐसा लगता है कि इन रचनाओं के पात्र हमारे आसपास ही मौजूद है । हिन्दी साहित्य के इतिहास में उपन्यास सम्राट के रूप में अपनी पहचान बना चुके मुंशी प्रेमचन्द के पिता अजायब राय श्रीवास्तव डाक मुंशी के रूप में कार्य करते थे । प्रेमचंद जी के साहित्यिक और सामाजिक विमर्श आज भूमंडलीकरण के दौर में भी उतने ही प्रासंगिक है और उनकी रचनाओं के पात्र आज भी समाज में कहीं न कहीं जिन्दा हैं ।
उन्होंने अपने को किसी वाद से जोडने के बजाय तत्कालीन समाज में व्याप्त ज्वलन्त मुद्दों से जोडा । राष्ट्र आज भी उन्ही ज्वलंत मुद्दों से जूझ रहा है जिन्हें प्रेमचंद ने काफी पहले रेखांकित कर दिया था । चाहे वह जातिवाद या साम्प्रदायिकता का जहर हो , चाहे कर्ज की गिरफ्त में आकर आत्महत्या करता किसान हो , चाहे नारी की पीडा हो , चाहे शोषण और सामाजिक भेदभाव हो । उनकी कहानियों और उपन्यासों के पात्र सामाजिक व्यवस्थाओं से जूझते है और अपनी नियति के साथ ही साथ भविष्य की इबारत भी गढते है ।
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