बाइस साल में उत्तराखंड

ओम प्रकाश उनियाल
यहां के राजनीतिज्ञों में स्व-विवेक व स्व-निर्णायक क्षमता की भारी कमी देखी गयी। प्रदेश का नेतृत्व हर बार कमजोर ही रहा। जरा सोचिए…
उत्तराखंड राज्य बाईस साल पूरे कर तेईसवें साल में प्रवेश कर चुका है। इतने सालों में उत्तराखंड कितना समृद्ध हुआ इसका सही आंकलन तो यहां के वासिन्दे ही भली-भांति कर सकते हैं। यह बात भी सिरे से नकारी नहीं जा सकती कि राज्य का विकास हुआ ही नहीं। कुछ विकास तो हुआ जरूर। मगर जो दल सत्ता में बैठा उसके कारिन्दों ने पहले अपना और अपनों का विकास किया।
राज्य का जिस प्रकार से विकास अब तक होना चाहिए था उसका खास परिणाम इस अवधि में देखने को नहीं मिला। राज्य को राजनैतिक उलझनों में उलझाकर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, कमीशनखोरी को ज्यादा बढ़ावा दिया गया। यही कारण है कि प्रदेश में आज भी भू, वन, खनन, शराब माफियों व अपराधियों की तूती बोलती है। अपराध भी इस शांत प्रदेश में अपना ग्राफ बढ़ाते ही जा रहे हैं। ठगी व जघन्य अपराध इस देवभूमि में हो रहे हैं।
शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कें, परिवहन सेवाएं अभी भी राज्य के अंतिम छोर तक पहुंचने को हाथ-पैर मार रही हैं। जहां विकास हुआ भी है वहां गुणवता की कमी अखरती है। केंद्र व राज्य सरकार की अनेकों योजनाएं राज्य में चलती रही हैं जिनमें चंद को छोड़कर बाकी भ्रष्टाचार की भेंट अधिक चढ़ी हैं। धरातल पर सुनियोजित ढंग से कुछ भी नहीं हुआ। हां, एक क्षेत्र में राज्य ने बहुत प्रगति की। राजनैतिक उथल-पुथल मचाने में। मुखिया बदलने का सिलसिला इन सालों में बखूबी चला। अर्थात राजनैतिक अस्थिरता का बोलबाला।
यहां के राजनीतिज्ञों में स्व-विवेक व स्व-निर्णायक क्षमता की भारी कमी देखी गयी। प्रदेश का नेतृत्व हर बार कमजोर ही रहा। जरा सोचिए, जब पहाड़ के जनप्रतिनिधि ही पहाड़ की उपेक्षा करते रहे हों तो भला उनसे पहाड़ के हित की अपेक्षा कैसे की जाती? राजनैतिक प्रयोगशाला के तौर पर अभी तक उत्तराखंड का उपयोग किया गया है। जहां राजधानी का मुद्दा नहीं सुलझा हो। सुलझाने के बजाय दो राजधानियां बनाकर उलझा दिया गया हो।
इससे ज्यादा समझदारी और क्या हो सकती है? कुल मिलाकर यही निष्कर्ष निकलता है कि पहाड़ की भोली-भाली जनता को यहां के राजनीतिज्ञों ने ही छला है। चाहे वे किसी भी दल के रहे हों। जिस उद्देश्य को लेकर पृथक राज्य की मांग की गयी थी उसे तो दरकिनार कर दिया गया। अभी कई मूल समस्याएं खड़ी हैं प्रदेश के सम्मुख। जब तक यहां का राजनैतिक ढर्रा नहीं सुधरेगा तब तक पहाड़ के जनमानस उपेक्षित ही रहेगा।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड) | Mob : +91-9760204664Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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