सच्चा शुभचिंतक

सुनील कुमार माथुर

समाज में तरह-तरह के लोग रहते हैं । कोई साथ में रहकर भी पीठ पीछे छुरा घोंप देते हैं और हमें पता ही नहीं चलता हैं और जब पता चलता हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती हैं । जो हमें हभारे मुंह पर हमारी गलतियों का अहसास कराते हैं वही लोग सही मायने में हमारे सच्चे हितैषी होते हैं । वे ही हमारे सच्चे मार्गदर्शक है और सच्चे शुभचिंतक है । चूंकि पीठ पीछे तो हर कोई बुराई करता हैं चूंकि उनमें सत्य बोलने व कहने का साहस नहीं होता हैं ।

ईश्वर के लिए उसका भक्त ही सबसे बडा होता हैं । ईश्वर अपने भक्तों पर कभी भी कोई संकट नहीं आने देता हैं । वह तो अपने भक्तों की हर हाल में मदद करके ही रहता हैं बस हम ही ऐसे हैं कि उसे पहचान नहीं पाते हैं । वह भले ही मदद के लिए स्वंय न आयें लेकिन किसी न किसी माध्यम से हमारी मदद अवश्य ही करता हैं । अतः जो संकट की घडी में हमारी मदद करता हैं हमारे लिए वहीं ईश्वर होता हैं । याद रखिये कि हर व्यक्ति में कोई न कोई हुनर अवश्य ही होता हैं भले ही वह किसी भी जाति , धर्म , क्षेत्र व भाषा और समुदाय का क्यों न हो । भले ही वह आपराधिक गतिविधियों में लिप्त क्यों न हो ।

हुनर तो हर किसी में होता हैं । बस जरूरत है तो पहल करने की और अपने हुनर को निखारने की । हुनर को निखारने के लिए किसी उम्र की जरूरत नहीं है अपितु जब भी समय मिलें तब अपनी प्रतिभा को निखारने में लग जाईये । अपने हुनर की कभी भी अनदेखी न करें । अगर आप ही अपने हुनर की अनदेखी कर देंगे तो दूसरों को क्या पडी हैं कि वो आपके हुनर को निखारने में आपकी मदद करें । जो अपनें हुनर व प्रतिभा को निखारता हैं वही तो जीवन में आगें बढता हैं और आत्म निर्भर बनकर राष्ट्र के विकास और उत्थान की नींव का पत्थर बनता हैं ।

मगर यह देश का दुर्भाग्य है कि सज्जन पुरूष कभी एक नहीं हो सकते और दुर्जन व्यक्ति कभी अलग नहीं हो सकते । आलस्य से सदैव दूर रहें । यह सत्य है कि धन से ही धर्म चलता हैं । अतः जीवन में सदैव सकारात्मक सोच रखिए और सद् कर्म करें । मेहनत से कमाये गयें इस धन को कभी भी गलत कार्यों में खर्च न करें । हम जो समय भजन-कीर्तन , सत्संग , कथा करने व सुनने में लगाते हैं वही समय सर्वश्रेष्ठ हैं । अतः जीवन में कभी भी किसी के साथ न तो बुरा व्यवहार करें और न हीं सौतेला व्यवहार करें । आज के समय में गलतियां निकालने वालों की कोई कमी नहीं है एक ढूंढो तो हजार मिलते हैं ।

आज के लोग दोगली नीति को अपना रहें है । अगर कोई परोपकार का कार्य करता हैं तो भी लोग उसमें गलतियां ढूंढने से बाज नहीं आते हैं और कमियों को बताकर परोपकार करने वालों को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं । उन्हें हताश व निराश करते हैं और उनके मजबूत इरादों व हौसलों को कमजोर करने का प्रयास करतें है जो घातक प्रवृत्ति की ही निशानी हैं । व्यक्ति को हमेशा नेक दरियादिल होना चाहिए और परोपकार के कार्य करते रहना चाहिए ।

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