संवाद से भी रोगों का उपचार संभव

सुनील कुमार माथुर
डाॅक्टर को इस धरती के भगवान कहा जाता हैं जो गर्व व गौरव की बात हैं । चूंकि वे रोगी का उपचार कर उन्हें नया जीवन प्रदान करते हैं । जीवन रक्षक बनकर वे गंभीर से गंभीर रोगों का उपचार करने के साथ ही साथ लोगों की जिन्दगी बचाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। इतना ही नहीं वे निरन्तर शोध कार्य कर के उपचार के नये – नये तरीके ढूंढ निकालते हैं इसलिए उनके जज्बे को सलाम है ।
अगर हम आज से ढाई – तीन दशक पहले की बात करे तो उस वक्त डाॅक्टरो का एकमात्र लक्ष्य रोगी को सही समय पर सही उपचार उपलब्ध कराना था । उनका लक्ष्य मानव जीवन को बचाना था । उनमें सेवा की भावना थी । यहां तक की उस वक्त मेडिकल दवाओं के जो प्रतिनिधि डाॅक्टरो को दवाओं के सेम्पल देकर जाते थे । डाॅक्टर उन सैम्पल को अपने घर या क्लिनिक ले जाने के बजाय उसी दिन व उसी वक्त जरूरतमंद लोगों को निशुल्क दे दिया करते थे और उनको अच्छी तरह से देखते थे और उनसे संवाद करते थे जिससे रोगी आधा तो ऐसे ही ठीक हो जाता था और डाॅक्टर सरकारी वेतन व सुविधाओं से संतुष्ट थे ।
लेकिन वर्तमान दौर में आज पैसा ही माई बाप बन गया हैं । चाहे सरकारी अस्पताल हो या प्राईवेट । रोगी कहीं पर भी संतुष्ट नहीं है । सरकारी अस्पतालों में आज उपचार के नाम पर खानापूर्ती हो रही हैं । वही दूसरी ओर प्राइवेट अस्पतालों में बिना बिमारी के भी डाॅक्टर उट पटांग जांचे करा रहें है । बिना वजह अस्पताल में भर्ती रखकर उपचार के नाम पर लम्बा चौडा बिल बनाया जा रहा हैं और लूट के इन्ही पैसों से अस्पताल का विस्तार कर रहें है । सरकार सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनी बैठी हैं ।
एक व्यक्ति को ऐसा बहम हो गया कि वह बीभार हैं । उसके शरीर में हर वक्त दर्द रहता हैं । वह दिन भर खुद भी परेशान रहता था और उसके परिजन भी परेशान थे । कभी कभार तो दिन में तीन – तीन बार अस्पताल ले जाना पडता था । डाॅक्टर हर बार नई दवा लिख देता और फीस ले लेता । एक अस्पताल वाले ने तो बिना वजह ही सात दिन अस्पताल में भर्ती रखकर बडा सा बिल थमा दिया ।
जब उस व्यक्ति को दूसरे अस्पताल ले गये तो वहां एक परिचित डाॅक्टर मिल गये । उन्होंने उस व्यक्ति के स्वास्थ्य की जांच की तो वे पूरी तरह से स्वस्थ पाये गये फिर भी उनका संतुष्टि के लिए एक एक्स-रे कराया । इसी दौरान परिजन बोले डाॅक्टर साहब इन्हें कुछ भी नहीं है । मात्र बहम हैं । इसी दौरान उस डाॅक्टर ने रोगी की सारी पर्चिया चैक की तो कहा कि इन्हें तो कोई रोग भी नहीं है फिर सात दिन अस्पताल में भर्ती क्यों रखा ?
अस्सी वर्षीय उस रोगी को अपने पास बैठाकर डाॅक्टर ने केवल पांच – सात मिनट रोगी से संवाद किया और कहा बाबूजी आपकों कोई रोग नहीं है और आप पूरी तरह से स्वस्थ हैं । सब कुछ खाओ पीओ और सुबह – शाम घूमा करें इस संवाद का रोगी पर इतना असर पडा कि दो साल हो गये मगर उन सज्जन ने आज तक नहीं कहा कि मेरे शरीर में दर्द हो रहा हैं । अपितु आराम से घूम फिर रहें है और सबसे यही कहते हैं कि मैं पूरी तरह से ठीक हूं । डाॅक्टर साहब कहते हैं कि आप ठीक हैं ।
कहने का तात्पर्य यह है कि अगर डाॅक्टर चिकित्सा के क्षेत्र को व्यवसाय न बनाकर मानव कल्याण के नाम पर रोगी से थोडी देर के लिए भी संवाद कर ले तो रोगी को काफी बडी तादाद में स्वास्थ्य लाभ हासिल हो सकता हैं और उनकी दुआओं से डाॅक्टर अपने क्षेत्र में प्रगतिशील विचारों के बन सकते हैं । लोग प्रायः यह कहते हैं कि चिकित्सा के क्षेत्र का व्यवसायीकरण हो गया हैं तो फिर डाॅक्टर इस धरती पर भगवान कैसे हुए ?
आप उन लोगों से पूछे जिन्होंने निजी अस्पतालों में उपचार कराया है कि डाँक्टर भगवान है या व्यापारी । लेकिन आज भी ऐसे चिकित्सकों की कमी नहीं है जो गरीब लोगों का रियायती दर पर उपचार करते हैं । हां उनकी संख्या अंगुलियों पर गिनी जा सकती हैं । अब भी समय है कि डाँक्टर रोगी से संवाद कर उनका उपचार करे चूंकि पैसा ही सब कुछ नहीं है जनता की दुआओं में भी बहुत बडी शक्ति हैं । बस पहल करके तो देखिए।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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