फर्क है पत्थरबाजी और निशानेबाजी में

नवाब मंजूर
पत्थरबाज…
निशानेबाज नहीं होते
बस इधर उधर फेंकते हैं
ज्यादातर सामने।
फेंक फेंककर लगा देते हैं ढ़ेर
जाने कहां से लाते हैं?
बड़े बड़े पत्थर!
तोड़ते तो नहीं होंगे पहाड़ों से
उसमें तो बहुत मेहनत लगता है
फेंकने में क्या है?
जिधर तिधर फेंक दो
चाहे नुकसान हो जाए
अंगों का
दुकानों का
लहू निकल आए
या पूंजी डूब जाए!
किसी का…
कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें?
निशानेबाज होते तो
ओलंपिक में जाते
या करते पार्टिसिपेट
निशानेबाजी की प्रतियोगिता में
जीतते मेडल और
पाते ईनाम
करते अपना और देश का
दुनिया में नाम!
पर नहीं उन्हें तो बस,
बस फूंकनी है
धर्म से ताल्लुक नहीं होता इनका
धर्म में तो जोड़ते हैं तिनका तिनका
बस एक टैग लगा रहता है माथे पर
गुड़ दे दो फिर भी कहेंगे गोबर!
बस यही हाल है पत्थरबाजों का
निशानेबाजों से बिल्कुल अलग
सोच भी , नियत भी
जो किसी दृष्टिकोण से नहीं सही।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »मो. मंजूर आलम ‘नवाब मंजूरलेखक एवं कविAddress »सलेमपुर, छपरा (बिहार)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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