मौसम की मुस्कान
राजीव कुमार झा
जीवन रोज
बदलता रहता
मौसम
सबके घर में
आकर
ऐसा कहता,
बरसाती नदियों में
पानी
क्या सालों भर
बहता रहता?
गर्मी के मौसम में
पानी बिलकुल
जब नहीं बरसता
प्यासे मन को
पास बुलाकर
बरसा का पानी
तब हंसता
जीवन धूप
सरीखा है
आज सुबह का
रंग कहां अब
फीका है
बालू पर
हरे हरे तरबूज उगे
नदी किनारे
कितने लोग
आकर चले गए
समुद्र कब
अशांत हो जाएगा
यह कहना
खूब कठिन है
आशिन से पहले
बाद्ल का
खूब बरसना भी
उतना ही तय है
आकाश से
पानी मूसलाधार
बरसता
दूर देहात में
लोगों का घर द्वार
उजड़ता
लेकिन जीवन के
दुख से
सबका मन
क्यों नहीं पिघलता
ठंड की चादर
कितनी लंबी है
मौसम के
सुस्त बाजार में
शायद उतनी ही
मन की मंदी है
हम उत्साह जगाते
पास तुम्हारे आकर
कभी तनावमुक्त
हो जाते!
मौसम को हर दिन
अपने पास बुलाते
संग तुम्हारे
खुशियों के पास
चले जाते
दिनभर बैठे रहते
रामनाम की
माला जपते
जीवन की धूनी में
तपते
अली सुंदरी !
संन्यासी सा
यह जीवन हो
हम आत्मसुख
बस पाएं
जीवन धर्म निभाएं
तुमको पास
सदा हम पाएं
बारिश में
बादल बन जाएं!
कितने सुंदर
दिन आये
उसको पास बुलाया !
आंगन में
आने से पहले
पांव धुलाया
जंगल में कहीं
सुनायी देती,
पायल की रुनझुन!
तुम बेहद सुंदर हो
बेहद सुंदर परिधान
पहन कर आयी हो!
कितनी मुस्काती
सुबह गुलाब के
फूल तोड़ कर लायी!
सूरज को तुमने
पुष्पहार पहनाया
उसने तुमको
गले लगाया !
याद करो,
तुम उसी शहर की
वह सुंदर बरसाती
कितने साल पीछे
छूट गये ?
यादों के मौसम में
धुंध उतर आती,
तुम कोई गीत
मन की चुप्पी में
आज सुनाती,
बारिश में
कागज की रंगबिरंगी
नाव
सजाती
कितनी सुंदर लगती!
मोती सी चमकीली!
वीणा के तारों को
मानों छेड़ दिया हो
आधी रात से पहले
बारिश होगी !
फिर तारे
उग आएंगे
अपने पास बुलाएंगे
अरी रोशनी !
सारी रात
आनंदित हो
सुबह बयार की बेला
यह गुमसुम मेला
कब उल्लासभरे
गीत सुनायी देंगे!