दिल्ली में टेलीविजन इंडस्ट्री दोस्ती, मंतव्य और गुफ्तगू
एजेके मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के लोग और विक्रम चानना की ह्वाटसअप कालिंग!
दिल्ली में टेलीविजन इंडस्ट्री दोस्ती, मंतव्य और गुफ्तगू… वहां स्कूल के लोग उसे मेरे कहने पर पैसे दे देते लेकिन किसी के साथ दुराचार से मना करते। शायद मेरे बारे में भी उसे अलग से बताने की कोशिश वह करते। मट्टू यहां पटना में संजय जोशी के साथ एनओयू भी गया था उस समय वहां मैं पढ़ता था और पर्सनल कांटैक्ट प्रोग्राम के तहत यूनिवर्सिटी में क्लास अटेंड करने जाना पड़ता था। #राजीव कुमार झा
दिल्ली में लोग अपनी जुगाड़ दोस्ती इधर उधर की अन्य बातों से निजी तौर पर टेलीविजन में काम करते थे। मेरा एडजस्टमेंट नहीं हुआ। ज्ञानपीठ में नौकरी करने के दौरान मैं पास में ही डिफेंस कॉलोनी में रहता था और हैबिटेट सेंटर के अलावा इसके आसपास के अन्य कल्चरल सेंटर में इनवाइटी के तौर पर रोज जाता था और हजारों प्रोग्राम मैंने अटेंड किए। एजेके एमसीआरसी, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के लोग भी आते थे। मैं बातचीत नहीं करता था।
दिवाकर ने भी खुद ही मुझे टोका था। इंडीपेंडेंट प्रोड्यूसर सारा पैसा खा जाता है और दो चार हजार 30 मिनट की डाक्यूमेंट्री में स्क्रिप्ट पर खर्च करता है। इसलिए मैं रोज हजारों रुपए प्रूफ वगैरह ही पढ़कर कमा लेता था। मैंने भी अपना मीडिया फर्म बनाया है। आपने राजेन्द्र जी को मेरे बारे में बताया। वे डायरेक्टर के तौर पर मेरी सेवा लेना चाहें तो ले सकते हैं। मैं नासमझ नहीं था लेकिन उतनी अक्ल नहीं थी शायद इसलिए एमसीआरसी में अपनी पढ़ाई में उस तरह की असहज परिस्थितियों से गुजरा। लेकिन मैं बच गया और इस मायने में खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं।
अब मेरा किसी से कोई सरोकार नहीं है। जो लोग जो चीजें मुझे नापसंद हैं मैं उनसे काफी दूर रहता हूं। पैसे के लोभ में दिल्ली मुंबई के टेलीविजन इंडस्ट्री में बाहर के काफी लोग कार्यरत हो गये हैं। निकृष्ट कार्य संस्कृति के इन लोगों का तौर तरीका घृणित स्वार्थ से परिपूर्ण है। मुझे डायबिटीज भी हो गया है। यह अभी शुरुआती दौर में है। रोज सुबह में दवा खाता हूं। दिल्ली में जो भी लोग चाहे वह नवाज हो रजा हैदर हों अपल सिंह हो या संजय जोशी हों इन सारे लोगों के दो चार पांच हजार बकाया रुपए मैं चुका देना चाहता हूं और इन लोगों को धन्यवाद देना चाहता हूं।
एजेके एमसीआरसी के अपने बैच के ह्वाट्सएप ग्रुप में जिस दिन मैं शामिल हुआ उस दिन आपने मुझे फोन किया और मैंने अपने प्रति आपके प्रेम और स्नेह को महसूस किया। यह भाव सबके मन में नहीं रहता और कई बार अपनी तरफ से दूसरों को अपने ऐसे मनोभावों को जताते मुझे उपेक्षा के मनोभावों का भी सामना करना पड़ा है लेकिन मैं सज्जनता को समझता हूं। संजय मट्टू ने मेरे साथ में काफी गंदा बर्ताव किया था मैंने कुछ नहीं कहा और बिहार जैसी जगह में जहां मेरे बारे में लोगों की तमाम तरह की विवादास्पद धारणाएं खत्म हो जाती हैं.
यहां पर आने के बाद दिल्ली के तथाकथित इज्जतदार लोगों की लंपटता मुझे अत्यधिक आहत करती है। मट्टू का मैंने कुछ भी नहीं लिया था मैंने किसी से उसके बारे में कुछ भी नहीं पूछा शायद आपसे भी उसकी चर्चा मैं नहीं करता था। इसके बावजूद उसने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया। यहां पटना भी वह स्टोरी टेलिंग में आया। मेरे घर पर आकर अपने पैसों के बारे में पूछताछ करना चाहता था। तब मैं पावापुरी में था। मैंने उसको वहां आने के लिए कहा।
वहां स्कूल के लोग उसे मेरे कहने पर पैसे दे देते लेकिन किसी के साथ दुराचार से मना करते। शायद मेरे बारे में भी उसे अलग से बताने की कोशिश वह करते। मट्टू यहां पटना में संजय जोशी के साथ एनओयू भी गया था उस समय वहां मैं पढ़ता था और पर्सनल कांटैक्ट प्रोग्राम के तहत यूनिवर्सिटी में क्लास अटेंड करने जाना पड़ता था। पढ़ने में शुरू से मैं कमजोर रहा और मैं बमुश्किल हिंदी में एम. ए. पास कर पाया। वहां एनओयू में जोशी का कोई फ्रेंड प्रोफेसर था जिससे मट्टू और जोशी ने बेहद लज्जास्पद चर्चाएं की थीं। मेरा रिजल्ट भी खराब हो गया। अब यह यूनिवर्सिटी अपनी नयी बिल्डिंग में नालंदा शिफ्ट हो गयी है।