ऐसा गांव हमारा था

अजय एहसास

सुघर सलोने बच्चे,
जहां करते थे अठखेली
जहां सुनाती दादी अम्मा
किससे और पहेली
सुनते सुनते सो जाता था
वो जो घर का प्यारा था
ऐसा गांव हमारा था।

ताल तलैया पोखर
थी बगिया खेत खलियान
कहीं सुनाता घंटा
था होता कहीं अज़ान
मिलजुल कर रहते थे सब
न कुछ तेरा न हमारा था
ऐसा गांव हमारा था।

हमारा गाँव

सांझ भये गांवों में
लग जाती थी चौपाले
बात-बात में कितनी ही
दी जाती थी मिसालें
बात बात में ही मिल जाता
ज्ञान भी बहुत सारा था
ऐसा गांव हमारा था ।

घर के दरवाजे पर बारिश
में रुकता जब पानी
सारा दिन उस पानी में
बच्चे करते शैतानी
कीचड़ में जब सन जाता
तो लगता और भी प्यारा था
ऐसा गांव हमारा था ।

वो हुक्का पीते दादा
दादी भी कहती आधा
छप्पर एक उठाने को
पूरा गांव था देता कांधा
झोपड़ियों से भरा पड़ा
वो गांव बड़ा बेचारा था
ऐसा गांव हमारा था ।

मां की डांट से आहत हो
बाबू के पास थे आते
रोते देख हमें बाबूजी
दस पैसे दे जाते
बाबूजी का वो दस पैसा
भी लाखों से न्यारा था
ऐसा गांव हमारा था ।

घर के कोने में चूल्हे पर
साग थी छौकी जाती
घी मक्खन और तेल मसालों
की थी खुशबू आती
मुंह में था पानी आ जाता
जीभ स्वाद से हारा था
ऐसा गांव हमारा था ।

माटी की दीवार पे बैठी
ढिबरी भी इठलाती थी
तेल खत्म होता था ज्यों ज्यों
त्यों त्यों वह लहराती थी
खुद अधियारों में रहकर
जो देता हमें उजियारा था
ऐसा गांव हमारा था ।

ढाक के पत्तल पे पंगत में
बैठ के थे सब खाते
शादी हो या उत्सव सब
परिवार सहित जुट जाते
किसी एक की परेशानी में
पूरा गांव सहारा था
ऐसा गांव हमारा था ।

बैलों की गलमाला
खेतों में रुनझुन बजती
बाबू जी की रसोई भी
थी खेतों में सजती
उस मेहनत की साक्षी धरती
आसमान भी सारा था
ऐसा गांव हमारा था।

गांव जाना चाहता हूं

गांव में बैलों के कोल्हू से
गन्ने पेरे जाते
गुड और रस पीने को हम
कितने फेरे जाते
कितना मीठा सा था वो रस
तनिक नहीं भी खारा था
ऐसा गांव हमारा था ।

कितनी हसीं लगती थी
तब गांव की वो बारातें
मेहमानों की खातिर को
चारपाई मांगे जाते
खूबसूरती को तब
शामियाने ने ही सहारा था
ऐसा गांव हमारा था ।

मिट्ठू दादा खूंटा गढ़ते
चारपाई भी बनाते
अपनी कलाकृतियों से
दूल्हे के पीढ़े को सजाते
पढ़े लिखे तो ना थे उनसे
पढ़ा लिखा भी हारा था
ऐसा गांव हमारा था ।

नहर किनारे बैठ शाम को
यारों को भी बुलाते
दिन भर की सारी बातें
हम आपस में बतियाते
गुस्सा प्रेम खुशी का वो
‘एहसास’ का अच्छा किनारा था
ऐसा गांव हमारा था ।

सुख की चाहत में हम असली
सुख को ही खो बैठे
देश जगाने चले थे लेकिन
आज खुद ही हम सो बैठे
पता नहीं था कि वो पल
फिर मिलना नहीं दुबारा था
ऐसा गांव हमारा था।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

Devbhoomi
From »

अजय एहसास

सुलेमपुर परसावां, अम्बेडकर नगर (उत्तर प्रदेश)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights