गांव जाना चाहता हूं

सुनील कुमार

घुट रहा है दम मेरा
शहर की इन फिजाओं में
अब सुकून भरी छांव चाहता हूं
इसलिए गांव जाना चाहता हूं।

तरस गए देखे बिन अपनों को नैन
कटते नहीं अब तो मेरे दिन-रैन
सीने से लग कर अपनों के
अपनत्व का भाव चाहता हूं
इसलिए गांव जाना चाहता हूं।

सूने-सूने लगते हैं मेरे दिन-रैन
मिलता नहीं कहीं इक पल भी अब चैन
खत्म करना अब मैं सब दुराव चाहता हूं
इसलिए गांव जाना चाहता हूं।

बहुत ऊब गया मन इन शहरी पकवानों से
मां के हाथों खाना रोटी-दाल चाहता हूं
इसलिए गांव जाना चाहता हूं।

एकाकी बहुत है यहां सबका मन
खाली-खाली सा लगता है जीवन
मिलता नहीं यहां गांव वाला वो अपनापन
मिल जुलकर मनाना सब तीज-त्यौहार चाहता हूं
बांटना खुशियां और पाना प्यार चाहता हूं
इसलिए गांव जाना चाहता हूं।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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सुनील कुमार

लेखक एवं कवि

Address »
ग्राम : फुटहा कुआं, निकट पुलिस लाइन, जिला : बहराइच, उत्तर प्रदेश | मो : 6388172360

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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