बालकथा : मिनिओंस और डायनासोर
वीरेंद्र बहादुर सिंह
सुंदर सवेरा था। मिनिओंस अपने घर के बाहर मस्ती कर रहे थे। सारे भाई मिल कर अलग-अलग गेम्स खेल रहे थे। मिनिओंस की मम्मी ने घर के अंदर से चिल्ला कर कहा, “बच्चों, शांति से खेलना। बेकार की दौड़भाग कर के लड़ाई-झगड़ा मत करना। अगर किसी एक भी चोट लगी तो मैं कभी किसी को खेलने नहीं दूंगी।” मम्मी की बात सुन कर सभी मिनिओंस ने कहा, “मम्मी, आप बिलकुल चिंता मत कीजिए। हम सभी शांति से खेलेंगे, झगड़ा नहीं करेंगे।”
थोड़ी देर बाद मिनिओंस को कुछ अलग तरह की आवाज सुनाई देने लगी। सभी मिनिओंस उस ओर देखने लगे, जिधर से वह आवाज आ रही थी। मिनिओंस को उस ओर कुछ दिखाई नहीं दिया तो उन्हें लगा कि कि शायद भ्रम हुआ है। वे सभी फिर अपने खेल में लग गए। थोड़ी देर बाद उन्हें फिर से वह आवाज सुनाई दी। इस बार आवाज थोड़ी नजदीक से आई थी। उन्होंने जब इस बार आवाज की दिशा में देखा तो उन्हें एक बहुत बड़ी परछाई दिखाई दी। वह परछाई डायनासोर जैसी लग रही थी। उसे देखकर मिनिओंस काफी डर गए। वे सभी जल्दी से अपने घर की दीवार के पीछे छुप गए और यह देखने लगे कि उनके घर की ओर कौन आ रहा है। उन्होंने देखा कि एक डायनासोर आ रहा है।
पहले तो वे उसे देख कर खूब डर गए। पर जब वह नजदीक आया तो उनकी समझ में आ गया कि यह तो डायनासोर का बहुत बड़ा बच्चा है। बच्चे को देखकर मिनिओंस ने राहत की सांस ली। उन्हें लगा कि एक नया दोस्त मिल गया। उन्हें डायनासोर के बच्चे के साथ खेलने में मजा आएगा। वे सभी बाहर निकल कर डायनासोर के बच्चे के पास आए। मिनिओंस ने सोचा कि डायनासोर के बच्चे को दोस्त बना कर वे उसकी पीठ पर बैठ कर पूरा जंगल घूम आएंगे। पर उनकी यह धारणा गलत निकली। डायनासोर का बच्चा इतना शरारती और गुस्से वाला था कि जैसे ही मिनिओंस उसके पंहुचे, वह उन्हें मारने-पीटने लगा। थोड़ी ही देर में उसने सभी मिनिओंस को परेशान कर दिया। किसी पर धूल फेंकी तो किसी पर पत्थर। मिनिओंस को परेशान करने में डायनासोर के बच्चे को मजा आ रहा था। उन्हें परेशान होते देख वह हंस रहा था।
उसे पता नहीं था कि वह उन्हें कितना हैरान कर रहा है। मिनिओंस को इधर-उधर भागते देख डायनासोर के बच्चे को बहुत मजा आ रहा था। मौज में आकर वह नाचने लगा। नाचने में वह इस तरह मस्त हो गया कि उसने ध्यान नहीं दिया और एक गहरे गड्ढे में गिर गया। डायनासोर के गड्ढे में गिरने से मिनिओंस ने राहत की सांस ली। स्वस्थ हो कर वे गड्ढे के पास गए तो देखा डायनासोर का बच्चा पीड़ा से कराह रहा था। मिनिओंस को देख कर उसने मदद मांगी। मिनिओंस ने कहा, “देखा, तुम्हें अपने कर्मों का फल मिल गया न? हम तो तुम्हारे पास दोस्ती करने आए थे और तुम हमें परेशान करने लगे। तुम ने हम लोगों को बिना वजह परेशान किया, इसलिए ईश्वर ने तुम्हें दंड दिया है। अब तुम यहीं रह कर अपना दंड भोगो।”
डायनासोर का बच्चा मदद के लिए गिड़गिड़ाने लगा। डायनासोर के बच्चे गिड़गिड़ाने की आवाज सुन कर मिनिओंस की मम्मी बाहर आई। उसने पूछा, “क्या हुआ? यह आवाज किसकी है?” मिनिओंस ने मम्मी को पूरी बात बताई तो मम्मी ने डायनासोर के बच्चे को समझाया, “बेटा, बिना वजह किसी को परेशान करने वाले को भगवान दंड देते हैं। अगर तुम ने ऐसा न किया होता तो आज गड्ढे में न गिरते।”
डायनासोर के बच्चे ने ‘साॅरी’ कह कर फिर कभी ऐसा न करने का वचन दिया। मिनिओंस की मम्मी ने बच्चों की मदद से डायनासोर के बच्चे को गड्ढे से बाहर निकाला। उसी दिन से सभी बहुत अच्छे दोस्त बन गए। इसके बाद डायनासोर के बच्चे ने मिनिओंस को कभी परेशान नहीं किया।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »वीरेंद्र बहादुर सिंहलेखक एवं कविAddress »जेड-436-ए, सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उत्तर प्रदेश) | मो : 8368681336Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
---|