जीवन में अपना लक्ष्य निर्धारित करके आगें बढना चाहिए

सुनील कुमार माथुर
व्यक्ति को हमेशा जीवन में अपना लक्ष्य निर्धारित करके आगें बढना चाहिए । जब तक लक्ष्य निर्धारित नहीं होगा तब तक भले ही कितनी भी भागदौड़ व परिश्रम कर लीजिये कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है । आज हमने परमात्मा को पाने के लिए कोई भी लक्ष्य निर्धारित नहीं कर रखा हैं । उसे मात्र अपनी इच्छा पर छोड दिया हैं । जब हम खाली बैठे होते हैं तब ही पूजा पाठ कर लेते हैं , नहीं किया तो नहीं किया ।
जबकि होना तो यह चाहिए कि हमारे दूसरें कार्य भले ही छूट जाये या उनमें विलम्ब हो जाये लेकिन ईश्वर का भजन-कीर्तन , पूजा – पाठ नहीं छूटना चाहिए । लेकिन आज जो कुछ भी हो रहा हैं वह सब उल्टा हो रहा हैं । न जानें क्यों इंसान भजन-कीर्तन , पूजा पाठ को प्राथमिकता क्यों नहीं दे पा रहा हैं । ईश्वर ही तो हमें समय-समय पर सही मार्ग दिखाता हैं और उसकी कृपा-दृष्टि से ही तो हमारे सारे कार्य बिना बाधा के संपादित हो पा रहें है।
अगर आप ईश्वर की भक्ति में व पूजा पाठ में विश्वास करते हैं तब फिर आपकों ज्ञान मार्ग का रास्ता पूछने की कोई आवश्यकता नहीं है । आपके नेक कर्म ही आपकों ज्ञान मार्ग पर ले जाकर आपको अपनी मंजिल तक पहुंचा देगा । लेकिन आज इस कलयुग में लोग स्वंय तो भक्ति के मार्ग पर चलते नहीं लेकिन दूसरों को भक्ति का मार्ग दिखाने वाले अनेक लोग हैं ।
वे भले ही ज्ञान का मार्ग न जानें पर दूसरों को गलत रास्ता बताकर अपने आपकों बडा ही तीस मारका समझते हैं । व्यक्ति का कल्याण तभी होगा जब वह अपने आपकों मन से ईश्वर के चरणों में समर्पित कर दे । हमें अपना मन ईश्वर की भक्ति में लगाना चाहिए न कि इस नश्वर संसार की भौतिक सुख सुविधाओं में । आज हम इस संसार की मोहमाया में उलझ कर ईश्वर की भक्ति को भूल गयें है ।
बेकार की गपशप में घंटों बर्बाद कर देते हैं परन्तु भजन-कीर्तन, सत्संग व कथा के लिए हमारे पास समय नहीं है । यह कैसी विडम्बना है । यहां जाने का अर्थ हम दो – तीन घंटे की बर्बादी समझते हैं यही सोच हमें ईश्वर से मिलने में बाधा पैदा कर रही हैं । यह एक घटिया व छोटी सोच हैं ।
हम किसी की आर्थिक रूप से व शारीरिक रूप से मदद नहीं कर सकते हैं तो कोई बात नहीं लेकिन कुछ समय अपने लिए ही निकाल कर ईश्वर के नाम का तो स्मरण कर ही सकते हैं । ईश्वर का नाम भजने में कौन सा धन खर्च होता हैं । आप ईश्वर के नाम का स्मरण करके तो देखिए फिर कहना कि मन को कितनी आत्म संतुष्टि मिलती हैं और हृदय गद् गद् हो जाता हैं ।
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