मदर्स डे एक दिन ही क्यों…ॽ

मदर्स डे एक दिन ही क्यों…ॽ इसलिए केवल एक ही दिन मदर्स डे मनाना मां के प्रति एक औपचारिकता निभाना ही कहा जा सकता हैं। अतः हर रोज मदर्स डे है। एक दिन मदर्स डे मनाकर मां के महत्व को कम न करे। # सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)
मां आज की युवापीढी पाश्चात्य संस्कृति में इतनी रम गयी हैं कि वह अपनी मां का मदर्स डे हर साल म ई माह के दूसरे रविवार को मनाकर इतिश्री कर रहा हैं वे यह भूल रहे हैं कि मदर्स डे तो हर रोज मनाया जाना चाहिए, चूंकि मां हर रोज सबसे पहले उठती हैं और सबके सोने के बाद सोती हैं।
इतना ही नहीं हर रोज सुबह से देर रात तक सभी की फरमाइशे पूरी करती है लेकिन कभी भी किसी से कोई शिकायत नहीं करती है। कभी नही थकती हैं। उस मां के नाम केवल एक दिन मदर्स डे मनाकर हम क्या सिध्द करना चाहते हैं।
हम जिंदगी भर मां की सेवा करे, उसका सम्मान करे, उसकी सेवा करे तो भी उसके त्याग के समक्ष हमारी सेवा शून्य हैं। मां ममता की मूर्त हैं, करुणा का सागर हैं, धैर्यवान, सहनशील, आदर्श संस्कार देने वाली शिक्षिका हैं, गृह लक्ष्मी हैं और हम सभी की पालनहार हैं।
इसलिए केवल एक ही दिन मदर्स डे मनाना मां के प्रति एक औपचारिकता निभाना ही कहा जा सकता हैं। अतः हर रोज मदर्स डे है। एक दिन मदर्स डे मनाकर मां के महत्व को कम न करे।
हर रोज मदर्स डे मनाओं और मां का लाड दुलार, प्यार, ममता व वात्सल्य का भाव बनाये रखें। मां का महत्व उनसे पूछिए जिनकी मां इस समय दुनियां में नहीं हैं।
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