कविता : महाकुंभ का शाही स्नान
कविता : महाकुंभ का शाही स्नान, खुशियों से तुम सजा दो अपनें आने वाले कल को, महाकुम्भ का हिस्सा बनों भक्तों पाओगे मोक्ष को। १२ वर्षों के पश्चात बनता है इस महाकुंभ का योग, जहाॅं करोड़ों श्रद्धालु धोते स्नान से खुद रोग को।। भारत में आयोजित होता है ये विशाल, भव्य मेला, #गणपत लाल उदय, अजमेर (राजस्थान)
चलों चलें हम सब मिलकर अब करनें शाही स्नान,
अमृत की बूंदे जहां गिरी थी वो है यह चार स्थान।
प्रयागराज हरिद्वार उज्जैन नासिक है जिनके नाम,
महाकुंभ का आयोजन है सदियों पुराना विधान।।
पवित्र घड़े का पर्व भी कहते पुरानी कथा अनुसार,
संस्कृति-परम्पराओं का संरक्षण है जिसमे शुमार।
औषधीय गुण बढ़ जाते है इस महाकुंभ के दौरान,
वैज्ञानिक भी बता रहें इसकी महिमा अपरम्पार।।
खुशियों से तुम सजा दो अपनें आने वाले कल को,
महाकुम्भ का हिस्सा बनों भक्तों पाओगे मोक्ष को।
१२ वर्षों के पश्चात बनता है इस महाकुंभ का योग,
जहाॅं करोड़ों श्रद्धालु धोते स्नान से खुद रोग को।।
भारत में आयोजित होता है ये विशाल, भव्य मेला,
मुख्यतः साधु-संत साध्विया तपस्वी रहते है चेला।
तांता लगता है तीर्थ यात्रियों का जगह-जगह ठेला,
हिन्दू ग्रंथों में लिखा है अमरत्व-मंगलकारी बेला।।
पौष पूर्णिमा से होता है इस महाकुंभ का शुभारंभ,
पवित्र डूबकी लगाकर भक्त कहते भोले बम-बम।
सब पापों से छुटकारा मिलता दुःख दर्द होता कम,
समुद्रमंथन उपरांत प्राप्त हुआ था ये अमृतकुंभ।।