
जहानाबाद। अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के अवसर पर, निर्माण भारती (हिंदी पाक्षिक) के प्रबंध संपादक, प्रतिष्ठित साहित्यकार और इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने संग्रहालयों के अद्वितीय महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने अपने वक्तव्य में संग्रहालयों को “अतीत संग्रह की यादगार का मंदिर” के रूप में वर्णित किया, जो न केवल ऐतिहासिक कलाकृतियों और ज्ञान का भंडार हैं, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शिक्षा और राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पाठक ने अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय परिषद के प्रयासों की सराहना करते हुए बताया कि 18 मई 1977 को इस दिन की स्थापना अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय समुदाय को श्रद्धांजलि अर्पित करने के उद्देश्य से की गई थी और तब से यह प्रतिवर्ष 18 मई को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि संग्रहालय विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, फैशन, खगोल विज्ञान, पुरातत्व, कला और प्राकृतिक इतिहास में मानव सभ्यता के विकास और उपलब्धियों को दर्शाते हैं, जिससे लोगों को ज्ञान प्राप्त करने और अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझने का अवसर मिलता है।
अपने संबोधन में, इतिहासकार पाठक ने अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद के एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाक्रम, “1952 ई. में संग्रहालयों के लिए धर्मयुद्ध” बैठक का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि इस बैठक के दौरान “संग्रहालय और शिक्षा” विषय पर गहन चर्चा हुई थी, जिसमें संग्रहालयों की व्यापक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए रणनीतियाँ विकसित की गईं। यही मंथन अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के निर्माण की प्रेरणा बना। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस का पहला आयोजन 1977 में मॉस्को में हुआ था, जब ICOM महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर एक वार्षिक कार्यक्रम की स्थापना का आह्वान किया था।
इस पहल का मुख्य लक्ष्य विश्व समुदाय का ध्यान मानवता के लिए संग्रहालयों के अमूल्य योगदान की ओर आकर्षित करना और यह संदेश देना था कि संग्रहालय आपसी समझ, संवाद और वैश्विक शांति को बढ़ावा देने के शक्तिशाली माध्यम हैं। सत्येन्द्र कुमार पाठक ने इस बात पर भी जोर दिया कि प्रत्येक वर्ष अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद एक विशिष्ट थीम निर्धारित करता है, जिसके माध्यम से दुनिया भर के संग्रहालयों को समाज के लिए उनके महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न गतिविधियों और कार्यक्रमों का आयोजन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि अपनी स्थापना के बाद से अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस की लोकप्रियता में लगातार वृद्धि देखी गई है। पिछले 15 वर्षों में इस दिवस में भाग लेने वाले संग्रहालयों और आगंतुकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि इस बात का जीवंत प्रमाण है कि इतिहास का अध्ययन हमें समाजों के अतीत के व्यवहार को समझने और वर्तमान को बेहतर ढंग से नेविगेट करने में किस प्रकार सहायता करता है। आज, विश्व भर के संग्रहालयों में पहले की तुलना में कहीं अधिक संख्या में लोग आते हैं, और विश्वविद्यालयों में इतिहास जैसे महत्वपूर्ण विषयों का अध्ययन करने वाले छात्रों की संख्या भी बढ़ी है, जो संग्रहालयों की बढ़ती प्रासंगिकता और आकर्षण को दर्शाता है।
अपने विस्तृत वक्तव्य के अंत में, सत्येन्द्र कुमार पाठक ने अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस की ऐतिहासिक यात्रा पर भी संक्षिप्त रूप से प्रकाश डाला। उन्होंने चौथी शताब्दी ई.पू. में महान दार्शनिक अरस्तू द्वारा अपने लाइसेयुम स्कूल में स्थापित किए गए एक प्रारंभिक संग्रहालय का उल्लेख किया, जहाँ उन्होंने अपने प्राणी विज्ञान संबंधी अनुसंधान के लिए नमूने एकत्र किए थे। इसके अतिरिक्त, उन्होंने 1951 में आयोजित “संग्रहालयों के लिए अंतर्राष्ट्रीय परिषद के धर्मयुद्ध” सम्मेलन को भी याद किया, जहाँ दुनिया भर के संग्रहालय पेशेवर “संग्रहालय और शिक्षा” के महत्वपूर्ण विषय पर एकत्रित हुए थे।
उन्होंने इस बात पर गर्व व्यक्त किया कि अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस ने वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण पहचान हासिल की है, जिसका प्रमाण 2009 में 90 देशों के 20,000 संग्रहालयों और 2012 में 129 देशों के 30,000 संग्रहालयों द्वारा इस दिवस का उत्साहपूर्वक मनाया जाना है। सत्येन्द्र कुमार पाठक का यह विस्तृत वक्तव्य संग्रहालयों की बहुआयामी भूमिका और उनके ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करता है, जो न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक हैं, बल्कि शिक्षा, समझ और वैश्विक शांति को बढ़ावा देने में भी एक अपरिहार्य शक्ति हैं।
संग्रहालय दिवस पर स्वर्णिम कला केंद्र की अध्यक्ष, लेखिका डॉ. उषाकिरण श्रीवास्तव ने कहा कि संग्रहालय अतीत का मंदिर है।