कैथी और मगध

सत्येन्द्र कुमार पाठक, करपी, अरवल, बिहार
लिपि विज्ञान में कैथी लिपि को कथी, कैथी, कायथी, कायस्थी, मागधी या कायस्तानी कहा जाता है । ब्राह्मी लिपि का उत्तरी और पूर्वी भारत के हिस्सों में कैथी लिपि का उपयोग किया जाता था। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के क्षेत्रों में कैथी लिपि प्रचलित थी । कैथी लिपि का उपयोग मुख्य रूप से कानूनी, प्रशासनिक और निजी अभिलेखों के लिए किया जाता था । इंडो-आर्यन भाषाओं के लिए अनुकूलित अंगिका, अवधी, भोजपुरी, बज्जिका, मैथिली, मगही और नागपुरी भाषाओं में कैथी का उपयोग किया जाता था । 16वीं सदी से 20वीं सदी के मध्य तक कैथी प्रचलित थी । प्रोटो-सिनाईटिक वर्णमाल में फोनीशियन वर्णमाला व अरामी वर्णमाला में ब्राह्मी, गुप्ता, सिद्धं, नागरी, कैथी, चाइल्ड सिस्टम,सिलहटी नगरी लिपि का सहयोगी लिपि में देवनागरी, नंदीनगरी,गुजराती, मोदी लिपि थी ।
19वीं शताब्दी के मध्य तक कैथी लिपि के स्वरों और व्यंजनों के हस्तलिखित रूप है । बाबू राम स्मरण लाल द्वारा 1898 ई. में कैथी लिपि में लिखी गई भोजपुरी कहानी है। कैथी लिपि का लेखन, रिकॉर्ड रखने और प्रशासन से जुड़ा सामाजिक-पेशेवर समूह ने शाही दरबारों और बाद में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन में राजस्व रिकॉर्ड, कानूनी दस्तावेज, शीर्षक कर्म और सामान्य पत्राचार बनाए रखा था । गुप्त काल में कैथी का प्रयोग होने के कारण गुप्त लिपि का गया था ।शेरशाह सूरी के सिक्कों पर कैथी लिपि प्रयोग किया गया है। मुगल काल में कैथी लिपि का व्यापक रूप से उपयोग किया गया था।, ब्रिटिश राज के दौरान कैथी लिपि को 1880 ई. में बिहार की अदालतों की आधिकारिक लिपि के रूप में मान्यता दी गई थी ।
कैथी बंगाल के पश्चिम में उत्तर भारत की सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली लिपि थी। स्कूल प्राइमरी की संख्या 77368 में 1854 ई. कैथी लिपि एवं देवनागरी में 25,151 और महाजनी में 24,302 थे । ‘ हिंदी क्षेत्र में व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली लिपियों में कैथी को व्यापक रूप से तटस्थ माना जाता था । कैथी का इस्तेमाल हिंदुओं और मुसलमानों द्वारा समान रूप से किया जाता था । पत्राचार, वित्तीय और प्रशासनिक गतिविधियों के लिए और देवनागरी का इस्तेमाल हिंदुओं द्वारा और इससे कैथी भाषा समाज के अधिक रूढ़िवादी और धार्मिक रूप से इच्छुक सदस्यों के लिए प्रतिकूल हो गई थी । हिंदी बोलियों के देवनागरी-आधारित और फ़ारसी-आधारित लिप्यंतरण पर जोर देते थे। उनके प्रभाव के परिणामस्वरूप और कैथी की अविश्वसनीय रूप से बड़ी परिवर्तनशीलता के विपरीत देवनागरी प्रकार की व्यापक उपलब्धता के कारण, देवनागरी को बढ़ावा दिया गया, विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी प्रांतों में, जिसमें वर्तमान उत्तर प्रदेश शामिल है ।
19वीं सदी के अंत में अवध में जॉन नेसफील्ड, बिहार में इनवर्नेल के जॉर्ज कैंपबेल और बंगाल समिति ने शिक्षा में कैथी लिपि के इस्तेमाल की वकालत की। कानूनी दस्तावेज कैथी में लिखे गए थे और 1950 से 1954 तक बिहार की जिला अदालतों की आधिकारिक कानूनी लिपि थी। बिहार की अदालतें पुराने कैथी दस्तावेजों को पढ़ने के लिए संघर्ष करती हैं। कैथी लिपि को बिहारी लिपि, मागधी लिपि कहा जाता था । आजादी के पूर्व जमींदारों का दसतावेज कैथी में लिखा जाता था । कैथी को भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका, बज्जिका और त्रिहुति भाषा का प्रयोग होता था ।
भोजपुरी – पूर्वी गुमटी, आरा में साइनबोर्ड, अंग्रेजी (ऊपर), भोजपुरी कैथी (नीचे-बाएं), और उर्दू (नीचे-दाएं) के साथ का प्रयोग भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में किया जाता था और इसे कैथी की सबसे सुपाठ्य शैली माना जाता था। मगही – मगह या मगध का मूल निवासी यह भोजपुरी और त्रिहुति के बीच स्थित है। तिरहुति – तिरहुति का प्रयोग मैथिली भाषी क्षेत्रों में किया जाता था और इसे सबसे सुंदर शैली माना जाता था। प्रथम भोजपुरी त्रैमासिक बगसार समाचार 1915 में कैथी लिपि में प्रकाशित हुई थी। जॉर्ज अम्ब्राह्म ग्रियर्सन द्वारा 1899 ई. में थैंकर स्पिक एंड कंपनी कलकत्ता से प्रकाशित पुस्तक कैथी कैरेक्टर, 1881 ई. की कायथी, 1902 ई. की भारतीय भाषा विज्ञान सर्वेक्षण खण्ड v भाग ।। एवं किंग आर क्रिस्टोफर की न्यूयार्क ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से1995 ई. में प्रकाशित पुस्तक एक भाषा दो लिपियाँ में कैथी लिपि का उल्लेख मिलता है ।