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पत्र-पत्रिकाओं की महत्ता सदैव बनी रहेगी : माथुर

पत्र-पत्रिकाओं की महत्ता सदैव बनी रहेगी : माथुर, इस प्रकार हर माह रचनाएं आमंत्रित कर उनका हस्तलिखित पुस्तक के रुप में प्रकाशन करते रहे। इससे बच्चों में लेखन के प्रति रूझान बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर उनमें चिंतन मनन व कुछ नया करने की इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास जागृत होगा। #चेतन चौहान (सेवानिवृत्त शिक्षक व वरिष्ठ साहित्यकार)

प्रश्न : सुनील जी आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व व्हाट्सएप के युग में पत्र पत्रिकाओं का महत्व क्या कम हो गया हैं?
उतर : नहीं, पत्र-पत्रिकाओं का महत्व पहले भी था, आज भी है और भविष्य में भी रहेगा। चूंकि पत्र पत्रिकाओं को जब चाहों तब उसे पढ कर समय आसानी से व्यतीत किया जा सकता हैं। चूंकि पत्र पत्रिकाएं हमारी श्रेष्ठ मित्र हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व व्हाट्सएप का जीवन में कोई महत्व नहीं है। सभी का अपनी-अपनी जगह अपना अपना महत्व है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता।

प्रश्न : आज बाल साहित्य के क्षेत्र में श्रेष्ठ लेखन कार्य कम क्यों हो गया है?
उतर : इसके एक नहीं अनेक कारण हैं। इसे संक्षिप्त में यूं कहा जा सकता है कि आज नकलची लेखक बढ गये हैं। संपादक मंडल नियमित रूप से श्रेष्ठ लेखन कार्य करने वालों को लेखकीय प्रति व पारिश्रमिक नहीं दे रहे़। लेखकों को कोई प्रोत्साहन नहीं, पूरा का पूरा संपादकीय पृष्ठ गूगल से उठाये जा रहे है।

इतना ही नहीं साहित्यकार को गूगल से साम्रगी चुराने की सीख भी दी जा रही है। उनकी न मानों या दूसरे शब्दों में कहें कि उनकी चापलूसी न करों तो वे आपको ब्लैक लिस्ट कर रहे हैं। इतना ही नही वार्षिक शुल्क दो तो ही रचनाएं प्रकाशित कर रहे हैं। ऐसे में भला कौन साहित्यकार श्रेष्ठ लेखन का कार्य करेगा। हां छपास के रोगी अनेक है जो अपना नाम व फोटो छपवाने हेतु इधर उधर से कुछ न कुछ लिखकर ऐसे संपादक मंडल को सहयोग कर रहे हैं और उनका कार्य भी धड़ल्ले से चल रहा हैं।

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प्रश्न : बाल पत्रिकाओं का धीरे-धीरे प्रकाशन बन्द क्यों हो रहा हैं?
उतर : आज का युग इलेक्ट्रॉनिक क्रांति का युग है इस युग में संपादक मंडल को रचनाएं टाइप नहीं करनी पड रही हैं। उन्हें पका पकाया माल मिल रहा हैं। वही रचनाओं का तत्काल प्रकाशन हो रहा है व भी मय फोटो व नाम पते सहित। आज भेजो सुबह प्रकाशित।

अब लेखकों को रचना के प्रकाशित होने का इंतजार नहीं करना पड़ रहा है। आज बाजार में जो पत्र पत्रिकाएं बिक रही हैं वे काफी मंहगी हैं जो आम पाठक की खरीद क्षमता से बाहर हैं। इतना ही नहीं साहित्य सामग्री कम व विज्ञापन ढेर से होते हैं। ऐसे में प्रकाशन तो बंद होना ही हैं ‌

प्रश्न : बच्चों को पत्र पत्रिकाओं से फिर से जोडने के लिए किस तरह के प्रयासों की आवश्यकता है?
उतर : इसके लिए घरों में बच्चों के लिए नियमित रूप से बाल पत्रिका मंगाई जानी चाहिए। स्कूल व हर मौहल्ले में सार्वजनिक बाल पुस्तकालय व वाचनालय हो।





प्रश्न : बाल साहित्य लेखन कैसा होना चाहिए?
उतर : बाल साहित्य लेखन ज्ञानवर्धन, शिक्षाप्रद, प्रेरणादायक, रचनात्मक व बच्चों की रूचि के अनुरूप होना चाहिए।



प्रश्न : बाल रचनाकारों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
उतर : बाल रचनाकार अपनी-अपनी स्कूलों में शिक्षकों से सम्पर्क कर बाल संपादक मंडल का गठन करे व अपनी स्कूल के बच्चों से रचनाएं आमंत्रित करे व इसके लिए एक ही साईज का कागज इस्तेमाल करे ताकि बाद में श्रेष्ठ रचनाओं का चयन कर उनकी कच्ची बाइडिंग कर ले फिर सभी बच्चों के पढने के लिए स्कूल के वाचनालय में रख दें।





इस प्रकार हर माह रचनाएं आमंत्रित कर उनका हस्तलिखित पुस्तक के रुप में प्रकाशन करते रहे। इससे बच्चों में लेखन के प्रति रूझान बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर उनमें चिंतन मनन व कुछ नया करने की इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास जागृत होगा।


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पत्र-पत्रिकाओं की महत्ता सदैव बनी रहेगी : माथुर, इस प्रकार हर माह रचनाएं आमंत्रित कर उनका हस्तलिखित पुस्तक के रुप में प्रकाशन करते रहे। इससे बच्चों में लेखन के प्रति रूझान बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर उनमें चिंतन मनन व कुछ नया करने की इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास जागृत होगा। #चेतन चौहान (सेवानिवृत्त शिक्षक व वरिष्ठ साहित्यकार)

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