तपते पहाड़ और मैदान

ओम प्रकाश उनियाल
मैदानी इलाकों में सूरज की तपिश से धरती तप रही है। तापमान बढ़ रहा है। गर्मी से राहत पाने के लिए लोग पहाड़ों की तरफ रुख कर रहे हैं। कहीं-कहीं तो पहाड़ भी वनों में आग लगने के कारण गर्म हो रहे हैं। अक्सर, गर्मियों के मौसम में ही वनों में आग लगने की घटनाएं अधिक घटती हैं।
गरमी की मार से हर जगह पानी के स्रोतों का सूखना, धरती का जल-स्तर बहुत कम होना, सूखा पड़ना जैसे हालात बन जाते हैं। पहाड़ों की तरफ पर्यटकों का रुख किसी भी पहाड़ी राज्य की आर्थिकी को तो बढ़ा देता है लेकिन हिमालय पर जिस तरह का प्रभाव व दबाव पड़ रहा है उससे पर्यटकों व हिमालय के आंचल में बसे पर्वतीय राज्यों को कोई चिंता नहीं है।
हिमालयी राज्यों की अर्थव्यवस्था व रोजगार पर्यटन पर ज्यादा निर्भर है। पर्यटक नहीं आएंगे तो बेरोजगारी बढ़ेगी, कई व्यवसाय ठप हो जाएंगे, सरकार का कोष घटेगा। पर्यटकों का हाल यह है कि पहाड़ों में मौज-मस्ती करते हैं और लौटने पर अपने पीछे छोड़ जाते हैं गंदगी।
जहां-तहां प्लास्टिक की बोतलें, पॉलिथीन, पाउच व अन्य ऐसी सामग्री फेंक जाते हैं जिससे पहाड़ों की आबोहवा, वातावरण तो दूषित होता ही है जंगली जानवरों को भी उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। ग्लेशियर पिघलते हैं। नदियां व जलीय-जीव प्रभावित होते हैं। पहाड़ इसी तरह प्रभावित होंगे तो उनका सौंदर्य धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा।
एक तो पहले ही विकास के नाम पर पहाड़ों का सीना चीर-चीरकर बदहाल किया जा रहा है। दूसरे, उन पर गंदगी का बोझ डालकर उनका अस्तित्व मिटाया जा रहा है। हिमालयी राज्यों के पहाड़ों को इस दूषित होते वातावरण से बचाने के लिए पर्यटकों और राज्य सरकारों को आपसी तालमेल बिठाकर संतुलन बनाकर जागरूक करना होगा।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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