आपके विचार

समय का सदुपयोग और संबंधों की समझ

सुनील कुमार माथुर
स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार, जोधपुर (राजस्थान)

समय का मूल्य जीवन से भी अधिक है, क्योंकि गया हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता। अतः प्रत्येक क्षण का सदुपयोग अत्यावश्यक है। जैसे धनवान बनने के लिए एक-एक पैसे को जोड़ा जाता है, वैसे ही गुणवान व चरित्रवान बनने के लिए जीवन के हर क्षण का सही दिशा में प्रयोग करना आवश्यक है।

यदि हम अपने अतीत की ओर देखें तो पाएंगे कि हमारे पूर्वज कभी भी खाली नहीं बैठते थे। वे निरंतर कुछ न कुछ करते रहते थे। इससे न केवल समय का सदुपयोग होता था, बल्कि आत्मनिर्भरता और आर्थिक बचत भी सुनिश्चित होती थी। अपने हाथों से किया गया कार्य न केवल स्वच्छ और संतोषप्रद होता था, बल्कि सामाजिक सम्मान का कारण भी बनता था।

किन्तु आज का मानव दिन-रात “हाय धन, हाय धन” करता है, फिर भी शिकायत करता है कि मेहनत के बावजूद खर्च पूरे नहीं हो रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण यह है कि आज व्यक्ति ने अपने घर-परिवार के कार्यों से स्वयं को विलग कर लिया है। अब घर की सफाई, बच्चों की देखभाल, भोजन बनाना जैसे कार्य नौकरों के हवाले कर दिए गए हैं। परिणामस्वरूप मेहनत से अर्जित धन का बड़ा हिस्सा इन्हीं सेवाओं पर खर्च हो जाता है, और फिर भी अपेक्षित संतुष्टि नहीं मिलती।

वास्तव में, अब जबकि अधिकांश परिवार छोटे हैं, तो घरेलू कामों के लिए नौकर रखना कहाँ की बुद्धिमानी है? यदि थोड़ी सी मेहनत करके हम अपने कार्य स्वयं करें, तो न केवल पैसे की बचत होगी, बल्कि आत्मसम्मान और संतोष की अनुभूति भी होगी। समय तो बीत ही जाता है, परन्तु यादें और अनुभव शेष रह जाते हैं।

मित्र और दुश्मन: व्यवहार की उपज

कोई व्यक्ति जन्म से हमारा मित्र या शत्रु नहीं होता। यह हमारा व्यवहार, हमारी वाणी और दृष्टिकोण ही तय करते हैं कि सामने वाला हमारे लिए क्या बनता है। इसलिए जीवन में सबके साथ समान व्यवहार करें, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, वर्ग या स्थिति का हो। हम जैसा व्यवहार दूसरों से अपने लिए अपेक्षित रखते हैं, वैसा ही व्यवहार हमें भी उनके प्रति रखना चाहिए। यही सदाचार और सामाजिक सौहार्द की बुनियाद है।

हमारे बुजुर्ग कहते हैं कि —
“अच्छा दिल और अच्छा स्वभाव दोनों आवश्यक हैं।”
अच्छे दिल से रिश्ते बनते हैं और अच्छे स्वभाव से वे टिकते हैं।

यह भी सत्य है कि चरित्र और वस्त्र चाहे जितने भी उजले क्यों न हों, देखने वाला अक्सर दाग पर ही ध्यान देता है। अतः अपने आचरण, वाणी और व्यवहार में मधुरता बनाए रखें। कम बोलें, पर अच्छा बोलें। कभी किसी से मनमुटाव हो भी जाए, तो दरवाजे भले ही बंद कर लें, पर मन की एक खिड़की खुली रखें — ताकि सुलह-संवाद की संभावनाएं जीवित रहें


निष्कर्ष:
लेखक ने इस लेख के माध्यम से दो अत्यंत महत्त्वपूर्ण जीवन-सूत्रों की ओर ध्यान दिलाया है —

  1. समय का मूल्य और आत्मनिर्भरता,
  2. व्यवहार की विनम्रता और सामाजिक सौहार्द।

यह लेख आज के भौतिकतावादी, व्यस्त और आत्मकेंद्रित जीवन में एक साधना की तरह है, जो व्यक्ति को भीतर से सजग, सरल और सच्चा बनाता है।


Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

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