तनाव में खाया हुआ अमृत भी बन जाता है जहर

डॉक्टर सलोनी चावला से राजीव कुमार झा की बातचीत के अंश

तनाव में खाया हुआ अमृत भी बन जाता है जहर, तनाव से रहित रहना है, ना पीछे की चिंता करें और ना जो होने वाला है, उसकी। आज में जिएं। दुनिया की भाग दौड़ में हिस्सा लेने की ज़रूरत नहीं।

प्रश्न: वर्तमान दौर में मनुष्य की जीवन चर्या में उसके परंपरागत आहार और पोषण में बदलाव से जुड़ी बातें और इनसे उभरने वाले स्वास्थ्य विषयक संकटों के बारे में बताएं।

उत्तर: वर्तमान दौर में 2 वर्ग के लोग हैं। एक वह युवा जो पका पकाया बाज़ार के भोजन की तरफ़ जाते हैं। वहां उनको मिलावट वाला खाना भी मिलता है तथा बिना पोषण के आहार भी मिलता है। मिलावट की वजह से शरीर के सभी अंगों में बीमारियां आती हैं। और बिना पोषण के आहार जैसे-केमिकल्स, रंग, प्रिज़र्वेटिव्स डाले हुए – उनसे भी कई किस्म की शरीर में बीमारियां आती हैं।

तो उसी तरह दूसरे वर्ग वाले लोग हैं जो पौष्टिक आहार तो खाते हैं लेकिन तनाव ग्रस्त रहते हैं। जैसे – टीवी या मोबाइल के साथ साथ भोजन करना, खाते समय कुछ ना कुछ दिमाग में हलचल मची रहना। तनाव में इंसान के मस्तिष्क में कुछ ऐसे रसायन बनते हैं जो पूरे शरीर में जाकर सभी अंगों में बहुत किस्म के रोग उत्पन्न कर देते हैं। इसलिए तनाव में खाया हुआ अमृत भी ज़हर बन जाता है।

प्रश्न: खानपान में आने वाले बदलावों से आज किन बीमारियों का प्रचलन हो रहा है ?

उत्तर: जो मिलावट वाला खाना है, उससे कैंसर, गुर्दे को, जिगर में पथरी होना, चिड़चिड़ापन आ जाता है। और अपौष्टिक आहार खाने से कोलेस्ट्रॉल बढ़ना, मोटापा होना, डेफिशियेंसी की बीमारियां जो आंखों को, हड्डियों को, मांसपेशियां कमज़ोर होना, खून कम बनना, मसूड़ों में सूजन आदि जैसी कई बीमारियां हो जाती हैं।

जहां तक तनाव की बात की जाए, तो यह बाल झड़ना, हार्ट अटैक, पेट में दर्द होना, दस्त लगना, कब्ज़ होना, मुंह में छाले हो जाना, दांतों में कीड़ा लगना, अल्सर हो जाना, चिड़चिड़ापन, पेट में गैस बनना, कंधों में दर्द, डायबिटीज़, घबराहट जैसी बीमारियां आ जाती हैं।



प्रश्न: समुचित आहार और पोषण के अलावा शरीर और जीवन को सुंदर सुखी बनाने वाली अन्य दूसरी बातों के बारे में बताएं।

उत्तर: अपने मन को सुंदर और सुखी बनाना होगा। सकारात्मक विचार रखें, किसी के प्रति घृणा, द्वेष, ईर्ष्या न रखें। पोषण की बातें बचपन में ही सिखानी चाहिएं। एक नियमित दिनचर्या बनानी चाहिए जहां कुदरत के साथ ज़्यादा से ज़्यादा सहयोग हो। हर वक्त यूट्यूब, मोबाइल में बैठे रहने से अच्छा है कि मेलजोल बढ़ाएं, कुदरत की पनाहों में सैर करें, खेलें, मिलें-जुलें, कई प्रोग्राम रखें मिलकर ऑफलाइन।



तनाव से रहित रहना है, ना पीछे की चिंता करें और ना जो होने वाला है, उसकी। आज में जिएं। दुनिया की भाग दौड़ में हिस्सा लेने की ज़रूरत नहीं। संतोष बड़ा धन है। ज़रूरत से ज़्यादा पैसे के पीछे न भागें। मन खुश रहेगा तो शरीर स्वस्थ रहेगा, जीवन अपने आप सुंदर हो जाएगा।



प्रश्न: मानसिक तनाव भी आज तमाम जगहों पर एक बड़ी बीमारी बनती जा रही है। आज की ज़िंदगी में तनाव के क्या कारण हैं और इससे कैसे छुटकारा पाया जा सकता है ?

उत्तर: तनाव का सबसे बड़ा कारण है अपने आप से ज़रूरत से ज़्यादा उम्मीद रखना। दूसरों का पहनावा, धन, रुतबा, शौहरत देखकर उसकी नकल करना, ज़रूरत से ज़्यादा पैसा कमाने की कोशिश करना। लालच हमेशा बुरी बला है।बच्चों पर ज़रूरत से ज़्यादा दबाव डालना पढ़ाई का – मार्क्स लाने के लिए, उनको हर हॉबी में डालने के लिए, रियलिटी शोस में ले जाने के लिए। मोबाइल से भी बहुत तनाव लेना-फेसबुक पर ज़्यादा लाइक चाहिए, ज़्यादा दोस्त बनाने हैं, व्यूज़ देखने हैं।



यह छोटी-छोटी बातें अनावश्यक हैं जो बेवजह आपको तनाव दे रही हैं। और जल्दबाज़ी में, टीवी देख कर, मोबाइल देख कर खाना खाना भी तनाव देता है। टीवी पर तनाव देने वाले प्रोग्राम देखना यह सब तनाव देते हैं। तनाव से दूर रहने की सबसे अच्छा तरीका है –  संतोष बड़ा धन है। जितना ज़रूरत है उतना कमाओ, जितना आपका शरीर और मन बर्दाश्त कर सकता है उतना काम करो। कुछ बिगड़ नहीं जाएगा। लेकिन शांत रहना बहुत ज़रूरी है। बच्चों पर ज़्यादा दबाव डालने की ज़रूरत नहीं है।



सरकार ऐसी संस्थाएं बंद कर दे जहां मिलावट वाली चीजें बनती हैं। और पका पकाया भोजन भी कंपनियों में पौष्टिक बनाया जाए । मीडिया वाले अच्छे प्रोग्राम बनाएं जो देखने वालों को तनाव ना दें। घर का वातावरण अच्छा रखें। ज़्यादा समय मोबाइल, टीवी में देखने से अच्छा है कि मिलकर घूमने जाएं या मिलकर पौष्टिक आहार बनाएं, मिलकर कसरत करने जाएं, सैर करें, कुदरत की पनाहों में बैठें। यह सब तनाव को दूर करेगा और ज़िंदगी को खुशहाल करेगा।

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तनाव में खाया हुआ अमृत भी बन जाता है जहर, तनाव से रहित रहना है, ना पीछे की चिंता करें और ना जो होने वाला है, उसकी। आज में जिएं। दुनिया की भाग दौड़ में हिस्सा लेने की ज़रूरत नहीं।

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