सामाजिक कुरीतियों का हो अवसान

सुनील कुमार

समाज समस्याओं का पालना है। जिस प्रकार पालने में पालित-पोषित शिशु कभी-कभी परिवार के लिए विकराल रूप धारण कर लेता है उसी प्रकार समाज में पालित-पोषित कुरीतियां/गलत परंपराएं कभी-कभी समाज के लिए इतना विकराल रूप धारण कर लेती हैं जिसकी हमने कभी कल्पना ही नहीं की होती है।

आज हमारे समाज में ऐसी अनेकों कुरीतियां, रूढ़ियां व्याप्त हैं जिनका हम सदियों से अंधानुकरण करते चले आ रहे हैं। ये कुरीतियां या गलत परंपराएं हमें निरंतर रसातल की ओर ढकेलती जा रही हैं। फिर भी इनके उन्मूलन के लिए का हम कोई सार्थक पहल नही कर रहे हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कोई भी सामाजिक परिवर्तन एक दिन में नहीं होता।

यह तो एक सतत चलने वाली प्रक्रिया होती है जिसके परिणाम काफी समय बाद समाज में परिलक्षित होते हैं। पर इसके लिए सही समय पर पहल बहुत ही जरूरी होती है। आज समाज में व्याप्त रूढ़ियों,गलत परंपराओं व कुरीतियों से समाज का हर वर्ग पीड़ित है। समाज का हर व्यक्ति इन से छुटकारा पाना चाहता है।

मगर न जाने क्यों पहल करने से डरता है।अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि सामाजिक परिवर्तन के लिए पहल करे कौन ? हर किसी के मन में एक अनजाना सा भय व्याप्त है कि यदि मैंने ऐसा किया तो लोग क्या कहेंगे,हमारा समाज क्या कहेगा। वास्तव में समाज में परिवर्तन तभी संभव है जब समाज का हर व्यक्ति परिवर्तन की पहल के लिए पूर्णत: तैयार हो।

वर्तमान में हमारे समाज में ऐसी अनेकों रूढ़ियां व गलत परंपराएं व्याप्त हैं जिनका हम सदियों से अंधानुकरण करते चले आ रहे हैं।उदाहरण के लिए समाज में ऊंच-नीच काभेद,लड़का-लड़की में अंतर, कन्या भ्रूण हत्या,बाल-विवाह,दहेज प्रथा, भिक्षावृत्ति, विधवा तिरस्कार, मृतक भोज व पशुबलि प्रथा जैसे अनेकों कर्मकांड व धार्मिक अनुष्ठान आज भी हमारे समाज में व्याप्त हैं।


जबकि हम अच्छी तरह‌ से जानते हैं कि ये रूढ़ियां,गलत परंपराएं हमारे परिवार,समाज और राष्ट्र के विकास में बाधक हैं फिर भी हम इनका अंधानुकरण करते चले जा रहे हैं।हम इन गलत परंपराओं के उन्मूलन के लिए पहल करने से डरते हैं।यदि हम वास्तव में अपने समाज में परिवर्तन चाहते हैं,

अपने परिवार और समाज का भला चाहते हैं तो हम सभी को सामाजिक रूढ़ियों और गलत परंपराओं के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करनी होगी साथ ही साथ सामाजिक परिवर्तन के लिए अपने स्तर से पहल करनी होगी। तभी हम अपने समाज में सार्थक परिवर्तन कर पाएंगे अन्यथा गलत परंपराओं व रूढ़ियों के मकड़जाल में ऐसे ही फंसे रहेंगे,और सामाजिक परिवर्तन के लिए एक-दूसरे का मुंह ताकते रहेंगे।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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सुनील कुमार

लेखक एवं कवि

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बहराइच, उत्तर प्रदेश | मो : 6388172360)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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