हिंसा से समाज में बिखराव व अशांति
ओम प्रकाश उनियाल
जानवरों की भांति इंसानों में भी कुछ हिंसक प्रवृति के इंसान होते हैं। सभी बेजुबान तो हिंसक नहीं होते। मनुष्य के पास तो सोचने-समझने व बोलने की शक्ति है इसके बावजूद भी वह छोटी-छोटी बातों को लेकर हिंसा पर उतर आता है। आव देखा न ताव बस मर-मिटने व लड़ने-झगड़ने को तैयार। ऐसी प्रवृति के लोगों की वजह से ही समाज में तनाव का माहौल बनता है।
बिखराव की स्थिति बनती है समाज में। यदि जरा-जरा-सी बात पर तूल देने लगें तो स्वच्छ सामाजिक वातावरण की कल्पना करना बेकार है। जो लोग चाहते हैं कि हरेक का जीवन शांति और सुखद माहौल में व्यतीत हो लेकिन खुराफाती लोगों की करतूतों के कारण यह संभव नहीं हो पाता। यही खुराफाती लोग धर्म, जात-पात व अन्य प्रकार के मुद्दों को लेकर समाज के बीच उन्माद फैलाने का काम करते रहते हैं ताकि किसी न किसी तरह अशांति का माहौल बना रहे। यह एक समुदाय में ही नहीं हर समुदाय के भीतर देखने को मिलेगा।
हाल ही में दिल्ली के जहांगीरपुरी का उदाहरण लें तो मामूली-सी बात को हनुमान जयंती पर निकाली जा रही शोभा-यात्रा के दौरान दो समुदायों के बीच जिस प्रकार का टकराहट का माहौल बना वह पूरे समाज व देश के लिए घातक साबित हो सकता है। छोटी-सी चिंगारी से पूरी आग भड़क सकती है यदि चिंगारी को पहले ही बुझा दिया जाए तो आग भड़कने का सवाल ही नहीं उठता।
हिंसा का माहौल जानबूझकर पैदा करने से अनेकों लोग आहत होते हैं। जान-माल की क्षति होती है। बेकसूर लोग हिंसा की आड़ में मारे जाते हैं या कानूनी शिकंजे में फंस जाते हैं। उन्माद फैलाने वाले साफ बच निकलते हैं। यही नहीं एक जगह हिंसा फैलती है तो दूसरे शांत क्षेत्रों में भी भड़काऊ लोग माहौल बिगाड़ने का प्रयास करते हैं।
हिंसा का वातावरण बनाकर किसी समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सकता। हिंसा कब और कहां एकदम फैल जाए पता नहीं चलता। वैसे कई बार तो पूर्वनियोजित तरीके से भी उपद्रव फैलाया जाता है। और कभी मामूली बात को उत्पाती लोग तूल देकर। किसी भी प्रकार की हिंसा फैलाने वालों को सबक सिखाने के लिए ऐसा सख्त से सख्त कानून बनाया जाना चाहिए कि भविष्य में इस प्रकार का कदम उठाने की जुर्रत कोई न कर सके।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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