दूसरों की खुशी को ही अपनी खुशी समझें
सुनील कुमार माथुर
33, वर्धमान नगर, शौभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)
मनुष्य आज के भौतिक युग में अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूलता जा रहा है । वह चंद चांदी के सिक्कों की चकाचौंध में अपने भाई बहिन, माता पिता तक को भूल गया है । इन सभी रिश्तों को ताक पर रखकर मात्र धन दौलत के पीछे अंधा होकर दौड रहा हैं । यही उसके लिए पहली प्राथमिकता बन गयी है । वह यह भी जानता है कि मनुष्य इस नश्वर संसार में खाली हाथ आया है और खाली हाथ ही वापस जायेगा फिर भी वह धन दौलत का पीछा नहीं छोड़ पा रहा हैं । यह एक दुख की बात है ।
आज का इंसान दूसरे की तरक्की को देख कर जल रहा हैं । वह दूसरों को अपने मुकाबले अधिक सुखी नहीं देख सकता । अगर इंसान दूसरों की खुशी देखकर खुद भी खुशी रहे तो उसे डाक्टर के यहां चक्कर लगाने की जरूरत नहीं है चूंकि वह दूसरों की प्रगति देखकर खुश है तो न तो उसे कोई भी चिंता होगी और न ही किसी प्रकार की बीमारी । मगर दूसरों की प्रगति और तरक्की उससे देखी नहीं जाती है और फिर वह बीमार पड जाता है और फिर डाक्टरों के यहां चक्कर काटने पडते हैं । इतना ही नहीं धन और समय भी बर्बाद होता है ।
परमात्मा ने हमें यह मानव जीवन दिया है तो फिर इसे खुशहाल रखें । दूसरों के सुख को अपना सुख और दूसरों के दुख को अपना दुःख समझ कर जो इंसान रहता है वह कभी भी दुःखी व चिंतित नहीं रहेगा और उसका जीवन आनंदमय व खुशहाल रहेगा । जो व्यक्ति इस मूल मन्त्र को समझ गया समझो वह सब कुछ समझ गया । मगर हमारे अन्दर का लोभ , मोह , लालच, क्रोध व अंहकार हमें आगे नहीं बढने दे रहा है । जब तक हम इन विकारों का त्याग नहीं करेंगे तब तक हम सुखी जीवन व्यतीत नहीं कर सकते ।
यह जीवन तो क्षण भंगुर है न जाने यह पानी का बुलबुला कब फूट जाये । अगर हम दूसरों के साथ वही व्यवहार करें जो हम अपने प्रति चाहते है और हर व्यक्ति के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करें, शांति के साथ बातचीत करें, दूसरों की मदद करें, व्यवहार में शालीनता बरते तो हर कोई हमारा भाई , बंधु व मित्र बन जायेगा । अतः कहीं स्वर्ग है तो फिर इस धरती पर ही है अन्यथा कुछ भी नहीं है ।
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