बाल कहानी : अभिमान

बाल कहानी : अभिमान, आज उसने सबके सामने स्वीकार किया कि अभिमान में आकर मैं पढना ही भूल गया। नतीजन वार्षिक परीक्षा में पिछड गया। इसी के साथ ही साथ उसने यह भी शपथ ली कि भविष्य में … #सुनील कुमार माथुर , जोधपुर
शशिधर, नरेश, चेतन व सुनील एक ही स्कूल में एक साथ एक ही कक्षा में पढते थे। उनमें इतना प्रेम था कि लोग उन्हें मित्र कम भाई ज्यादा समझते थे। इसी कक्षा में संदीप भी पढता था जो शशिधर से ईर्ष्या करता था, चूंकि शशिधर बहुत ही कम बोलता था और स्कूल का प्रतिभाशाली विधार्थी था। जब जब परीक्षा परिणाम आता तो शशिधर के सर्वाधिक अंक आते।
अर्ध्द वार्षिक परीक्षा से पूर्व शशिधर की तबियत खराब हो गयी जिसके कारण वह परीक्षा में इस बात अधिक अंक न ला सका। लेकिन इस बार संदीप के उसकी आशा से भी अधिक अंक आये। अब तो उसमें अभिमान आ गया और सबकों कहने लगा कि देखों मैंने इस बार कितनी मेहनत की जिसकी वजह से शशिधर को भी इस बार अंकों में पीछे रख दिया।
अभिमान में वह इतना अंधा हो गया कि वार्षिक परीक्षा तक उसने पढाई भी नहीं की और कोरा अभिमान में आकर हवा में उडने लगा। इधर शशिधर की तबियत ठीक हो गयी और उसने जमकर दिन – रात मेहनत की व परिणाम स्वरूप वार्षिक परीक्षा में वह स्कूल में प्रथम स्थान पर व योग्यता सूची में भी पहले नंबर पर रहा। वही संदीप हर विषय में पिछड गया और उसका सारा अभिमान चूर – चूर हो गया।
आज उसने सबके सामने स्वीकार किया कि अभिमान में आकर मैं पढना ही भूल गया। नतीजन वार्षिक परीक्षा में पिछड गया। इसी के साथ ही साथ उसने यह भी शपथ ली कि भविष्य में वह अंहकार, अभिमान से दूर रहकर नियमित रूप से अध्ययन करूंगा और भविष्य में हर बार अधिकाधिक अंक हासिल करने के लिए कडी मेहनत करूंगा।
तभी चेतन ने संदीप को शाबाशी देते हुए कहा कि मित्र ईर्ष्या हमारा सबसे बडा शत्रु हैं। शांति, धैर्य, सहनशीलता, ईमानदारी और कठोर परिश्रम के बल पर ही इंसान अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल कर सकता है।
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