बाल कविता : चालाकी

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राज शेखर भट्ट

जंगल में पंचायत हुयी, सरपंच थे जिसके शेर बाबू।
शिकायत बहुत ही ज्यादा थी और शिकायती भी थे बेकाबू।

लोमड़ी के सब आरोप, चालाकी से भोजन चुराने के थे।
अपनी चालाकी से सबको, उल्लू बनाने के थे।

लोमड़ी के विरूद्ध शिकायतें, शेर बाबू ने सारी सुनी।
लोमड़ी ने मन ही मन में, चालाकी की चादर बुनी।

शेर ने भी चालाकी की और लोमड़ी को जाने दिया।
आगे राह में चार गधों के बीच, भोजन भी रखवा दिया।

आगे जाकर लोमड़ी ने, गधों को बातों में लगा दिया।
अपनी चालाकी से उसने, भोजन भी उनका खा लिया।

पीछे से शेर बाबू ने देखा, लोमड़ी की पोल खुल गयी।
उसकी चालाकी की चादर, एक पल में ही धुल गयी।

फिर हो गयी पंचायत और सजा भी उसको मिल गयी।
काल कोठरी मिली लोमड़ी को, जंगल की जनता खिल गयी।

बच्चों बुराई के लिए, चालाकी का दामन ना पकड़ो।
अच्छाई का चोला पहनो, स्वयं बुराई को ना जकड़ो।

Written Date : 07.04.2014©®

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