साहित्य लहर

कविता : देख तो सही

राज शेखर भट्ट

मुझे तुझसे कितना प्यार है, पास आकर…
…देख तो सही।
मुझसे दूर जाना है – जा, तन्हा अकेले जीकर…
…देख तो सही।

आसमान में है काली चादर, हवाओं में सूनापन और जीना भी है।
जी ले, भूल जा मुझे, मगर यादों को ज़रा रोककर…
…देख तो सही।

छोड़ दिया तूने, तोड़ दिया तूने, तो हिचकियां क्यों आने लगीं बेशुमार।
याद तो नहीं करती ना… न कर, बस दिल से निकालकर…
…देख तो सही।



वो लम्हे, जब दिन और रात में अंतर नहीं था और अब भी नहीं है, लेकिन।
वो आगाज़ था-ये अंज़ाम है, फिर से इश्क़ में फिसलकर…
…देख तो सही।

घाव मुझे मिलते थे तो दर्द की लकीरें, तेरे चेहरे पर होती थी ‘राज’।
जा गिन अपनी धड़कनों को और किसी से दिल लगाकर…
…देख तो सही।

Written Date : 23.02.2020©®

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राज शेखर भट्ट

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