गिरगिट यूं ही बदनाम है…
गिरगिट यूं ही बदनाम है… अपने मुख से कभी भी अप्रिय भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और न ही व्यवहार में अनैतिक व्यवहार करे। हमारी भाषा में शालीनता होनी चाहिए और व्यवहार में नैतिक मूल्यों कि शालीनता झलकनी चाहिए। जोधपुर (राजस्थान) से सुनील कुमार माथुर की कलम से…
रंग बदलने के मामले में गिरगिट यूं ही बदनाम हैं। असल में गिरगिट से अधिक रंग इंसान बदलता हैं। हम आर्थिक रूप से गरीब हो सकते हैं मगर इंसान को व्यवहारिक रूप से गरीब नहीं होना चाहिए। व्यवहार में हमारे पास दया, करुणा, ममता, वात्सल्य, परोपकार, संयम, धैर्य, सहनशीलता जैसा अमूल्य धन अपार मात्रा में होना चाहिए। अतः जीवन में व्यवहार में हमें अपनी गरीबी को उजागर नहीं करना चाहिए अपितु उपरोक्त गुणों के माध्यम से अपनी अमीरी का प्रदर्शन करना चाहिए।
अगर हम व्यवहार में इन गुणों का इस्तेमाल आपसी बोलचाल में नहीं कर पाते है तो फिर हमारा जीना भी कोई जीना हैं। अगर हम क्रोध, अंहकार, घमंड में आकर व्यवहार करे तो फिर हमारे में और पशुओं में कोई अंतर नहीं हैं। जब ईश्वर ने हमें यह मानव जीवन दिया हैं तो फिर मानवीय गुणों को जीवन में अंगीकार कर अपना व्यवहार करना चाहिए।
अपने मुख से कभी भी अप्रिय भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और न ही व्यवहार में अनैतिक व्यवहार करे। हमारी भाषा में शालीनता होनी चाहिए और व्यवहार में नैतिक मूल्यों कि शालीनता झलकनी चाहिए। चूंकि हमारे यह मानवीय मूल्य ही हमारे सर्वश्रेष्ठ आभूषण है जो हमें मान सम्मान, इज्जत, पद, प्रतिष्ठा दिलाते हैं। लेकिन आज का इंसान तो बात बात में झूठ बोलता है। इतना ही नहीं अपनी कहीं हुई बात से भी मुकर जाता हैं। कहने का तात्पर्य यह हैं कि इंसान गिरगिट की तरह रंग बदलता हैं और बदनाम गिरगिट को करता हैं।
अतः बेकार की गपशप करने के बजाय चुप रहना ही बेहतर है। चूंकि बेकार की बकवास करके हम अपनी ही साख को गिराते हैं। अतः कम से कम बोले और अधिक से अधिक श्रेष्ठ चिंतन करते रहना चाहिए। आपके श्रेष्ठ मानवीय गुणों के कारण ही हर कोई आप पर आसानी से विश्वास कर लेते हैं। अन्यथा इस कलयुग में भाई भाई का दुश्मन बना हुआ हैं। कहने का मतलब यह हैं कि अपनी वाणी पर संयम रखें ।
कभी भी उलजलूल बातें न करें। जब भी बोले तब वाणी से अमृत बरसना चाहिए यानि अनमोल वाणी निकलनी चाहिए जो सबको प्रिय लगे और सर्वमान्य भी हो। कभी भी ऐसी भाषा न बोले जिससे संदेह पैदा हो, विवाद पैदा हो। जब हम सोच समझ कर बोलते हैं। आदर सूचक भाषा का इस्तेमाल करते हैं तब चारों ओर खुशी का माहौल रहता हैं। वहीं सही मायने में आनन्दमय जीवन जीने का मजा आता हैं।
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