कवयित्री पूजा सूद डोगर के साथ संक्षिप्त बातचीत
(देवभूमि समाचार)
कवयित्री पूजा सूद डोगर वर्तमान में शिमला में रहती हैं और चित्रकला से भी इनका गहरा लगाव है. इन्हें अपने माता-पिता से साहित्यिक संस्कार प्राप्त हुए. अनुभूति और संवेदना के धरातल पर नारी मन के सहज भावों की अभिव्यक्ति इनके काव्य लेखन की प्रमुख विशेषता है! प्रस्तुत है, राजीव कुमार झा के साथ इनकी संक्षिप्त बातचीत…
प्रश्न: आप शिमला की कवयित्री हैं. अपने कविता लेखन के बारे में बताएं. कविता लेखन की शुरुआत कब और कैसे हुई.
उत्तर: जी हॉं, शिमला की हसीन वीदियों से मैं, पूजा सूद डोगर, सबको अभिवादन करती हूँ। मन के भावों का शब्दों से संवादन करना मुझे विरासत में मिला है। मेरे नाना जी, श्री बद्री प्रसाद सूद एक उच्च कोटि के कवि व लेखक थे। मेरी मॉं, श्रीमती कमलेश सूद, आज की सुप्रसिद्ध कवियत्री एवं लेखिका, सदा ही मेरी प्रेरणा का स्रोत और मार्गदर्शक रही हैं। मैंने अपनी पहली कविता 10 मई, 1994 को लिखी थी। जो देखा, सोचा और महसूस किया, उसे शब्दों की डोरी में पिरोकर भावों की कलम से काग़ज़ पर उकेरने का सफ़र उसी दिन से शुरु हुआ जो आज तक निरंतर चल रहा है।
प्रश्न: अपने घर परिवार शिक्षा और वर्तमान जीवन के बारे में बताएं.
उत्तर: मेरा जन्म हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के एक खूबसूरत शहर पालमपुर में हुआ। मैंने केन्द्रीय विद्यालय पालमपुर से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। एस. डी कॉलेज बैजनाथ से स्नातक, देव समाज कॉलेज चंडीगढ़ से बी. एड और पत्रोचार से एम.ए ( अंग्रेज़ी ) में की है। मेरे पिता, डॉ विनोद कुमार सूद कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर से अस्सिटेंट डॉयरेक्टर और मॉं केन्द्रीय विद्यालय से मुख्याध्यापिका सेवानिवृत्त हुए। वर्तमान में मैं शिमला में रहती हूँ। पति, अक्षय डोगर एक व्यवसायी हैं और बेटी, अंशिता डोगर व बेटा, अर्श डोगर शिक्षारत हैं। एक गृहिणी होने के साथ-साथ विभिन्न साहित्यिक मंचों से जुड़ी हूँ जहॉं कवि-सम्मेलनों में निरंतर भाग लेती हूँ और प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ- कहानियॉं प्रकाशित होती हैं। विमेन टी. वी. इंडिया से भी जुड़ी हूँ जिसके साप्ताहिक कार्यक्रम ‘नारी कलम’ में कविता पाठन के साथ-साथ मंच संचालन का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ है।
प्रश्न: आपने किन लोगों लेखकों कवियों को पढ़ा है और इन महान लेखकों के साहित्य में समाज के लिए क्या संदेश समाहित है?
उत्तर: सूरदास, कबीरदास, रहीम के साथ-साथ रविंद्रनाथ टैगोर, रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंशराय बच्चन, मैथिलीशरण गुप्त, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा को वर्षों से पढ़ती आ रही हूँ। हिंदी साहित्य में इन सब का योगदान अनुपम, अद्वितीय और अतुलनीय है जो सदियों तक अपना परचम लहराता रहेगा। इन सभी महान लेखकों ने साहित्य और समाज को एक-दूसरे का पूरक बनाया है। भारत में साहित्य का समाज से रिश्ता वेदों और उपनिषदों के काल से है। रामायण, गीता, अभिज्ञान शाकुन्तलम् आदि हमारे देश के गौरवमयी साहित्य को दर्शाते हैं। सूरसागर, साखी, गीताजंलि, मधुशाला, कुरुक्षेत्र, दीपशिखा आदि समाज का प्रतिबिंब हैं। एक साहित्यकार चाहे लेखक हो या कवि, समाज को सदा साथ लेकर चलता है और समाज की समस्याओं को उजागर करके, कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाकर, सदा समाज का हितकर ही होता है। समाज में समयानुसार व आवश्यकतानुसार बदलाव लाकर एक दिशा देना साहित्य और साहित्यकार का उद्देश्य होता है, यही हमारे देश के महान लेखकों ने किया है।
प्रश्न: हिमाचल प्रदेश की भाषा और इसके लोक साहित्य के बारे में बताएं?
उत्तर: हिमाचल प्रदेश में 12 जिले हैं। हर जिले की अपनी भाषा और बोलियॉं हैं। जैसे कांगड़ा में कांगड़ी बोली जाती है, चम्बा में चम्बयाली, मण्डी में मण्डयाली, कुल्लु में कुल्लवी, सिरमौर में सिरमौरी। राजकीय कार्यों की भाषा हिंदी है। लोक साहित्य किसी भी देश या प्रदेश की संस्कृति और सभ्यता का दर्पण होता है। हिमाचल के लेखकों ने यहॉं के लोक साहित्य के मोतियों को लोककथाओं और लोक गाथाओं के रूप में अथक परिश्रम से एक डोरी में पिरो कर सहेज कर रखा है। इन्हें लोकगीतों में भी गाया जाता है और कई पुस्तकें भी जनपद बोलियों में प्रकाशित हैं।
प्रश्न: साहित्य लेखन के अलावा अपनी अन्य अभिरुचियों के बारे में बताइए?
उत्तर: मुझे चित्रकला में अभिरुचि है जो शायद लेखन से भी पहले की है। हर तरह की पेंटिंग की है मैंने – पेंसिल से लेकर क्रेयॉन, वॉटर कलरिंग से लेकर फैब्रिक और ऑयल पेंटिंग तक। मैंने विद्यार्थी जीवन में एक पेंटिंग बनाई थी जिसे बनाने में मुझे तीन महीने लगे थे और रोज़ तीन-चार घंटे उस पर काम करती थी। आपको बताना चाहूँगी मेरे काव्य संग्रह “बंद किवाड़ों से झॉंकती धूप” का आवरण मैंने और मेरी बेटी अंशिता ने मिलकर बनाया था जिसकी आज तक सराहना होती है। साथ ही मेरे दूसरे एकल काव्य संग्रह ( जो अभी प्रकाशन में है) का आवरण भी हम दोनों ने ही तैयार किया है। प्रकृति संग समय बिताना, पेड़-पौधे लगाना, संगीत सुनना मुझे पसंद है। खाने में नए-नए प्रयोग करना मुझे अच्छा लगता है।
प्रश्न : अपने काव्य संग्रह बंद किवाड़ों से झाॉंकती धूप के बारे में बताएं.
उत्तर : “बंद किवाड़ों से झॉंकती धूप” मेरा पहला काव्य संग्रह है जो 2018 में प्रकाशित हुआ है। इसमें 101 कविताएँ संग्रहित हैं। मैं कविताएँ डॉयरी में लिखकर छोड़ देती थी। श्री नरेश कुमार उदास जी और मेरी मॉं, श्रीमती कमलेश सूद निरंतर मुझे उन्हें प्रकाशित करके संग्रहित करने के लिए प्रेरित करते थे और उन्हीं की प्रेरणा और मार्गदर्शन से मैं अपना प्रथम काव्य संग्रह प्रकाशित करवा सकी। इसमें मैंने समाज के, प्रकृति के, नारी जीवन के और मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण किया है। मिटटी का घरौंदा, नदी के पत्थर, बेटियॉं, आओ हे कृष्ण!, अमर शहीदों के नाम, क्षितिज के उस पार, तीन सोपान, बंजारों का सफर, रुकना मत तुम, गुम होते शब्द, व्यथा धरती की, कहॉं चला मानव, आदि कुछ प्रमुख कविताएँ हैं।
प्रश्न : कविता लेखन में अपनी संवेदना और अनुभूतियों के बारे में क्या कहना चाहती हैं?
उत्तर: कवि एक सामाजिक प्राणी है। अत: लेखन के प्रति उसका बहुत बड़ा दायित्व होता है। कलम पकड़ लेने से या शब्दों को कोरे काग़ज़ पर उकेरने से ही कविता लेखन नहीं होता है। मन में उठते भावों को अल्फ़ाज़ों का जामा पहना कर कलम संग रिश्ता निभाना ही सही मायने में कविता लेखन की राह पर ले जा सकता है। अपनी संवेदना और अनुभूतियों को कुछ पंक्तियों में व्यक्त करना चाहूँगी :
“अल्फ़ाजों को पहना जामा, मैं औ’ क़लम रिश्ता निभाएँ,
साहित्य अलंकारों का गहन अवलोकन हम यूँ कर जाएँ,,
बिखेर दूँ लेखन के सब रंग कोरे काग़ज़ पर जो यूँही मैं,
मन की तरंगों में खाकर हिचकोले, सृजन नित करूँ मैं,,
भावों की भंगिमाएँ स्वत: मेरे अंतर्मन को जब-जब संवारे,
नि:शब्द सी मेरे हर शब्द में गूँज उठें तब यूँही वो सकारे।”
प्रश्न : सोशल मीडिया पर साहित्य काफी लोकप्रिय हो रहा है.आप भी इस पर निरंतर सक्रिय हैं.इसके सकारात्मक प्रभावों के बारे में आप अपने विचारों से अवगत कराएं.
उत्तर: सोशल मीडिया आज के समय की मॉंग है। और ठीक कहा आपने… सोशल मीडिया पर साहित्य काफी लोकप्रिय हो रहा है। मैं भी इस पर निरंतर सक्रिय हूँ। कई मंचों से इसी की वजह से जुड़ पाई हूँ। आज साहित्य जगत में अगर मेरी कोई पहचान है तो केवल सोशल मीडिया की वजह से। कल तक कोई नहीं जानता था, पर आज एक नाम है, पहचान है। साहित्य जगत जानने लगा है, लेखन की सराहना करने लगा है, तो सिर्फ और सिर्फ सोशल मीडिया की वजह से अन्यथा मेरा नाम और काम दोनों सीमित दायरे में बंधकर रह जाते। आज मैं किसी भी लेखक या कवि की रचना कभी भी पढ़ सकती हूँ और अपनी रचना भी सबके साथ सांझा कर सकती हूँ। सच कहूँ तो सोशल मीडिया वो उपवन है जो हर फूल, हर कली को खिलने और महकने का अवसर देता है।
प्रश्न : इतने सालों से कविता लेखन करते इस कला और इसकी सृजनात्मकता के बारे में आप क्या सोचती हैं?
उत्तर: मेरा मानना है कि लेखन मात्र शब्दों को काग़ज़ पर उकेर देना ही नहीं है अपितु मन की तरंगों को, भावों की भंगिमाओं को, सुख-दु:ख की विधाओं को, समाज की और जनमानस की पीड़ाओं को अभिव्यक्त करना ही कविता लेखन है। कविता कल्पना की डोरी को पकड़े रखती है, शब्दों का दामन भी जकड़े रखती है, पर सृजकों में अपना वजूद नित दर्शाती ही रहती है। भावों से शब्द गुने जाते हैं, उन्हीं शब्दों से पंक्तियाँ बुनी जाती हैं और उन्हीं पंक्तियों से उलझ-सुलझ कर, सुरों सी निखर कर जो उभरती है, कविता कहलाती है।
प्रश्न: कविता लेखन से जुड़ी अपनी आत्मिक अनुभूतियों के बारे में बताएं ?
उत्तर: कविता लिखते समय मैं अपने मन के भावों, उमंगों, तरंगों के साथ-साथ सभी सुप्त विधाओं को अपनी कल्पना की जादुई छड़ी से जगाती हूँ तो वो शब्द बनकर आगे-पीछे, ऊपर-नीचे सरसराते हैं, कभी-कभी कुछ बुदबुदाते हैं और फिर एक इंद्रधनुष बन काग़ज़ पर निखर आते हैं। पर कई बार यथार्थ के कठोर धरातल पर पटक भी देते हैं। कविता लेखन के समय विषय का सजीव चित्रण अगर ऑंखों के समक्ष हो, तो मेरी कविता शांतचित्त होकर चुपचाप काग़ज़ पर उतर आती है।
प्रश्न:कविता लेखन की यथार्थवादी शैली में लिखी जाने वाली नारीवादी कविता लेखन ने नारी मन के रोमांस और उसकी स्वच्छंदता को कुंठित करके रख दिया है.
उत्तर: मेरा मानना है कि नारीवादी कविता नारी की स्थिति, विचारों और सिद्धांतों को व्यक्त करने का एक ऐसा स्त्रोत है जो सदियों से उस के मन में उठ रहे सवालों का उत्तर ढूँढने में मदद करती है। नारी के मन के रोमांस और उसकी स्वच्छंदता को भले ही इस यथार्थवादी शैली ने किनारे पर धकेल दिया हो, परन्तु खुद को सवालों के घेरे से निकालने के लिए नारीवादी कविता लेखन आज की आवश्यकता है।
“जीवन में अकथित हैं कुछ आंशिक सत्य, पर बेज़ुबान नहीं… बस मौन हूँ मैं,
समेट रही हूँ कहीं अंतस्थ अंधियारे को, मन में भर आक्रोश… हॉं, बेचैन हूँ मैं…!”
प्रश्न: कविता में भावाभिव्यक्ति से जुड़ी अपनी प्राथमिकताओं के बारे में बताएं ?
उत्तर: मेरी कविताओं की भावाभिव्यक्ति हौसलों की उड़ान उड़ने से लेकर उम्मीदों का कारवॉं बनाने तक की है।
राह में आने वाली हर नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलना ही मेरी प्राथमिकता रहती है। पहलू चाहे कोई भी हो, भावों और भावनाओं को कविताओं में उकेरना ही मेरी प्रथमता रहती है। प्रेम, श्रृंगार, वीर रस, व्यंग्य, एहसास, पीड़ा, संवेदना, सब भाव बिखरते हैं मेरे कविता लेखन में। भावों की अभिव्यक्ति के बिना कविता तो ऐसे जैसे आत्मा के बिना शरीर।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »राजीव कुमार झाकवि एवं लेखकAddress »इंदुपुर, पोस्ट बड़हिया, जिला लखीसराय (बिहार) | Mob : 6206756085Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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