सफलता का शोर

सफलता का शोर, हर कोई उसकी सफलता की कहानी अपनी ही जुबानी कहते हैं। इसलिए कहा जाता है कि अपने मन की बात हर जगह उजागर नहीं करनी चाहिए। जहां जितनी आवश्यकता हो उतना ही बोले। अपने लक्ष्य सफलता से पहने गौण ही रखे तो बेहतर है। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
एक दिन एक अखबार के विज्ञापन पर लिखे वाक्य पर नजर पडी तो मन प्रफुल्लित हो गया। लिखा था कि मेहनत इतनी खामोशी के साथ कि सफलता शोर मचा दें। वाक्य काफी सटीक और प्रेरणादायक लगा तो उसे हृदय में आत्मसात कर लिया। वैसे भी इंसान को जीवन में हर समय कुछ न कुछ नया सीखते रहना चाहिए।
अगर मोबाइल युग में बात करें तो व्यक्ति को हर समय अपडेट रहना चाहिए। लेकिन हम हिन्दुस्तानी ऐसा नही करते हैं। हम काम कम और प्रचार अधिक करते है। यही वजह है कि जब तक हम सफलता की मंजिल तक पहुंचने वाले होते है कि हम से पहले कोई और बाजी मार जाता है।
प्रायः यह देखा गया है कि प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले विधार्थी, बुद्धिजीवी लोग जिन्हें हम चतुर और चालाक कहते है वे कभी भी अपनी योजनाओं का प्रचार प्रसार नहीं करते हैं। अपितु इतनी खामोशी के साथ मेहनत करते है कि वे बिना बाधा अपने लक्ष्य को हासिल कर लेते है और जब उन्हें अपार सफलता प्राप्त होती है तब वही सफलता उनकी प्रगति, उन्नति का डंके की चोट पर शोर मचाती है.
हर कोई उसकी सफलता की कहानी अपनी ही जुबानी कहते हैं। इसलिए कहा जाता है कि अपने मन की बात हर जगह उजागर नहीं करनी चाहिए। जहां जितनी आवश्यकता हो उतना ही बोले। अपने लक्ष्य सफलता से पहने गौण ही रखे तो बेहतर है। चूंकि आज का जमाना कोपी पेस्ट का जमाना है। अतः सावधान रहें, सतर्क रहें।